Challenges Faced by Tamkulia s Turi Community Bamboo Crafting for Survival बोले जमुई : जमीन देकर हमें बसाया जाए, सामान बेचने को मिले बाजार, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
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बोले जमुई : जमीन देकर हमें बसाया जाए, सामान बेचने को मिले बाजार

जमुई जिले के तमकुलिया गांव में तुरी समाज के लोग बांस से सूप, डलिया, और अन्य वस्तुएं बनाकर जीवन यापन कर रहे हैं। हालांकि, इनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है और नई पीढ़ी पुश्तैनी धंधे से विमुख हो रही है। सरकार...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरSat, 31 May 2025 11:15 PM
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बोले जमुई : जमीन देकर हमें बसाया जाए, सामान बेचने को मिले बाजार

जमुई जिले के बरहट प्रखंड के तमकुलिया गांव के वार्ड नंबर 5 में बसी है तुरी समाज के दर्जनों घरों की आबादी। यह समुदाय बांस से विभिन्न प्रकार की सामाग्री बनाकर जीविकोपार्जन करता है। बांस का उपयोग हस्तशिल्प, वाद्ययंत्र, फर्नीचर, बर्तन, कागज, कपड़े, अगरबत्ती और अन्य वस्तुओं को बनाने में किया जाता है। इसी बांस से सूप और टोकरी भी बनाई जाती है। छठ के समय सूप की अधिक डिमांड होती है। वहीं लग्न के समय भी इनकी बनाई सामग्री की मांग होती है। तुरी समाज के लोगों का आज भी अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। बांस से बनाए सामान बेच कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। संवाद के दौरान इन्होंने अपनी परेशानी बताई।

03 सौ घर हैं बरहट में तुरी समाज के

25 सौ की है आबादी, नहीं हुआ विकास

02 सौ से 250 रुपये प्रतिदिन कमाते हैं

प्रखंड की बरहट पंचायत के तमकुलिया गांव के वार्ड नंबर 5 में तुरी समाज के लोग रहते हैं। आजादी के पूर्व से इस गांव के लोग बांस से बने सूप, डलिया, चटाई, पंखा आदि बनाकर जीविकोपार्जन कर रहे हैं। आज इस गांव के 250-300 घरों में लगभग 2500 की आबादी इसी पुश्तैनी धंधे में लगी है। अपने काम में यहां के लोग इतने निपुण हैं कि आंख बंद करके भी आसानी से सूप-डलिया बना देते हैं। इस गांव के कारीगर द्वारा बांस से सूप, दौरा, डलिया, चटाई की डिमांड पूरे जिले में है। इतना ही नहीं, पर्व से महीनों पूर्व जिले के व्यापारी यहां घर-घर जाकर एडवांस पैसे दे जाते हैं और बदले में इन मजदूरों द्वारा बनाए सूप-डलिया लेकर जाते हैं। दुर्गा पूजा से लेकर छठ तक यहां के लोग अपने धंध् में इतना व्यस्त रहते हैं कि इन्हें फुर्सत नहीं मिलती। दरअसल, इन तीन महीनों की कमाई ही इन लोगों के साल भर खाने का जरिया होता है।

कम होती है कमाई, दिया जाए प्रशिक्षण

ग्रामीण लालो तुरी, अंजनी कुमारी, संपतिया देवी, अनिल तुरी, अंजनी देवी, ललिता देवी, रेखा देवी, मालो देवी सहित दर्जनों ने कहा कि दिन-रात की मेहनत के बाद 200-250 रुपए से ज्यादा नहीं कमा पाते। अब बाजार से बांस लाना पड़ता है। एक बांस की कीमत 150-200 रुपए तक है। दिनभर की मेहनत के बाद 200-250 से ज्यादा कमाई नहीं हो पाती है। यही कारण है कि अब नई पीढ़ी पुश्तैनी धंधे से विमुख हो रही है। यहां कुशल कारीगर हैं। यहां बांस से बने फर्नीचर की बाजार में डिमांड हो सकती है। अब बाजार में बांस से बने सोफा सेट, कुर्सी, टेबुल की डिमांड बढ़ रही है। यहां के कारीगर इतने कुशल हैं कि यदि उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए तो बांस से बनने वाली इन वस्तुओं के निर्माण में भी ये पारंगत हो सकते हैं। इससे जहां इनकी आमदनी बढ़ेगी वहीं लोगों को रोजगार मुहैया होगा।

युवा पीढ़ी कर रही पलायन :

अब यहां के युवा पीढ़ी अपने पुश्तैनी धंधा से विमुख हो रहे हैं। इसका कारण यह है कि अब बांस से बने सुप दौरा का डिमांड घर में कम होने लगा है। इसके बाद उससे पर्याप्त आमदनी नहीं हो पाती। अब यहां के पुरुष दूसरे काम करने लगे हैं। दूसरे काम में ढोल बजाना तथा पेंटिंग करना मुख्य है। अब युवा पीढ़ी काम के लिए पलायन को विवश हैं। हां महिलाएं अपने पुश्तैनी धंधा को आगे बढ़ा रही है।

शिकायत

1. पहले जंगल से बांस लाने के लिए वन विभाग से परमिट दिया जाता था। अब बंद कर दिया गया। बांस की किल्लत हो गई। कार्य प्रभावित रहा है।

2. तुरी समुदाय के जीवन स्तर में सुधार और विकास के लिए सरकार कोई समुचित संसाधन उपलब्ध नहीं करा रही है। इसके कारण हालत दयनीय है।

3. तुरी समुदाय बांस का बर्तन बनाने का कार्य में माहिर होते हैं। प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना का भी लाभ नहीं मिल पाया है। सुविधा से भी वंचित हैं।

4. तुरी जाति 1935 तक अनुसूचित जन जाति समुदाय में थी। लेकिन, हालत में सुधार नहीं हो पाया। सरकारी सुविधाएं नहीं मिल पा रही है।

5. वन प्राणियों की श्रेणी में शामिल रहे तुरी जाति परिवार वन आधारित कार्यों से जुड़े है। बांस का बर्तन बनाकर उसे बेचना ही इनका पुश्तैनी काम है।

सुझाव

1. तुरी एक अनुसूचित जाति है जो पारंपरिक रूप से बांस से टोकरी, सूप, पंखा आदि बनाकर जीविकोपार्जन का संसाधन बनाते हैं। सरकार रोजगार को बढ़ावा दे।

2. सरकारी नौकरियों के लिए विशेष विचार के पात्र हैं। सरकार समुचित संसाधन मुहैया कराएगी तो आरक्षण का लाभ प्राप्त कर जीवन स्तर में सुधार ला सकते हैं।

3. तुरी समुदाय के लोग भूमिहीन हैं। सरकार जमीन का परवाना देकर सरकारी स्तर पर पक्का मकान की सुविधा प्रदान प्रदान करे।

4. तुरी समुदाय के लोगों की अपनी विशिष्ट संस्कृति, रीति-रिवाज और परंपराएं से जुड़े होते हैं। आज भी उपेक्षित जीवन जी रहे हैं। जीवन के उत्थान के लिए योजना का लाभ मिले।

5. तुरी समुदाय के लोग सुदूर गांव और जंगली क्षेत्र में भी निवास करते हैं। पारंपरिक व्यवसाय में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।

इनकी भी सुनिए

तमकुलिया गांव में कुशल कारीगर हैं। स्थानीय कारीगरों के पास बांस को विभिन्न फर्नीचर में बदलने की क्षमता है। बशर्ते उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाए।

-नीतेश्वर आजाद

बांस से सूप, दौरा बनाना हमलोगों का पुश्तैनी धंधा है। किंतु अब इससे उतनी आमदनी नहीं हो पाती। यही कारण है कि अब नई पीढ़ी के लोग इस धंधे से विमुख हो रहे हैं।

-ललिता देवी

इस धंधे से 200-250 रुपए की कमाई हो पाती है। इस पैसे से बच्चों को पढ़ाएंगे या चूल्हा जलाएंगे। यदि सरकार द्वारा इसे उद्योग का रूप दिया जाए तो सब दिन काम मिल सकता है।

-दौलती देवी

25 वर्षों से काम कर रहे हैं। आज तक कुछ नहीं कर पाए। पति पेंटर का काम करते हैं तो दोनों वक्त का चूल्हा जल पाता है।

-रीता देवी

हमलोगों की मजदूरी में वृद्धि की जाए। दिन भर की मजदूरी अगर 400-500 नहीं होगी तो घर कैसे चलेगा।

-सुनीता देवी

बाजार से बांस लाकर सूप-डलिया बनाना हमलोगों का पुश्तैनी धंधा है। इसके अलावा भी कुछ काम मिल जाए तो अलग से आमदनी हो सकती है। 200 रुपए में कुछ नहीं हो पाता है।

-हेमंती देवी

पिता को देखकर हम भी बांस से सूप-डलिया बनाने सीख गए। अब इसी से जिंदगी कट रही है। कुछ नया रोजगार मिलता तो अच्छा था।

-अंजनी देवी

काम नहीं जानते हैं तो कैसे परिवार चलेगा। या तो सरकार प्रशिक्षण दे या कुछ नया रोजगार दे, ताकि हमलोग भी अपने परिजनों का पेट भर सकें।

-पूजा कुमारी

नया रोजगार चाहिए। सब दिन काम नहीं कर पाएंगे। बच्चों को पढ़ाना है। सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होती है।

-अंजनी देवी 1

पूरा काम नहीं जानते हैं। इसलिए 200 भी नहीं कमा पाते हैं। हमलोगों को नया काम चाहिए। कब तक 200 रुपए में काम करते रहेंगे।

-पूजा देवी

सालों भर काम नहीं मिलने के कारण पति ढोलक बजाते हैं और हम घर पर बांस से सूप-दौरा बनाते हैं। तब किसी तरह घर चल पाता है। अब बच्चे इस काम को नहीं करना चाहते, क्या करें।

-सुंदरी देवी

उम्र बढ़ गई है। बांस तोड़ नहीं पाते हैं। अब पेट कैसे भरेगा इस बात की चिंता है। बूढ़ी होने पर भी बांस का काम करना मजबूरी है। नहीं तो खाना भी नहीं मिलेगा।

-रेखा देवी

बांस से सूप-डलिया बनाकर किसी तरह बच्चे की परवरिश कर रहे हैं। अब बच्चे पढ़ने लायक हुए हैं, उसे पढ़ा नहीं पाते हैं। सरकार हमलोगों को भी नया रोजगार दे ताकि हम अपने बच्चों को पढ़ा सकें।

-संपतिया देवी

कब तक यह काम करते रहेंगे, इससे पेट भरना मुश्किल हो गया है। हमलोगों को सरकार बेहतरीन प्रशिक्षण दे और रोजगार के लिए लोन दे तो इसी धंधे को नया तरीके से कर सकते हैं।

-सबिया देवी

व्यवसाय का संभावित बाजार तो है किन्तु हम गरीब कहां से कर सकते हैं। अब अगर सरकार बेंत से कुर्सी, सोफा बनाने का प्रशिक्षण दे तो हमारे बच्चे उसे कर सकते हैं। सरकार हम ग्रामीणों के लिए प्रशिक्षण व बाजार दे।

-पारो देवी

सरकार नया व्यवसाय करने के लिए ऋण दे। अब बाजार में बांस से बने सुंदर सुंदर फर्नीचर उपलब्ध है। जिले में बांस की खेती पर जोर दे। हम कारीगरों को प्रशिक्षण दे।

- फुलवा देवी

बोलीं प्रतिनिधि

पंचायत द्वारा गांव में विकास किया जा रहा है। गांव में गली, नाली, चौपाल बनाया गया है। इनके प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था नहीं है। पंचायत द्वारा इन लोगों के लिए हाट बनाया जा सकता है किन्तु जमीन उपलब्ध नहीं है। स्थानीय प्रशासन व जिला प्रशासन से मिलकर उनलोगों की समस्याओं के बारे में जानकारी दी जाएगी ताकि इनका वर्षों पूर्व का व्यवसाय का फिर से जीवित किया जा सके। साथ ही इन परिवारों को प्रशासन द्वारा जो भी सहयोग मिलने वाला होगा, उसपर भी कार्य किया जाएगा।

-जितनी देवी, मुखिया, बरहट

कहते हैं बीडीओ :

सरकार महादलित टोला में शिविर लगाकर उनकी समस्या से अवगत हो उसका समाधान कर रही है। इन लोगों के लिए भी विश्वकर्मा योजना तहत प्रशिक्षण दिलाने का प्रावधान है। इसके लिए इच्छुक लोग प्रक्रिया के तहत रजिस्ट्रेशन करा प्रशिक्षण ले सकते हैं। प्रशिक्षण के उपरांत रोजगार के लिए सरकार इन्हें ऋण भी उपलब्ध कराती है। इसके साथ ही कौशल विकास केन्द्र तथा अन्य एनजीओ के तहत भी प्रशिक्षण दिलाया जाता है।

-विजय कुमार, प्रभारी बीडीओ, बरहट

बोले जमुई असर

सदर अस्पताल में सीटी स्कैन की सुविधा शुरू

जमुई। गत 26 फरवरी को हिन्दुस्तान के बोले जमुई संवाद के दौरान सदर अस्पताल जमुई की समस्या को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसे संज्ञान में लेते हुए अब सदर अस्पताल में सीटी स्कैन की सुविधा उपलब्ध हो चुकी है। साथ ही अल्ट्रासाउंट भी चालू हो चुका है। साथ ही चार चिकित्सकों की भी नियुक्ति सदर अस्पताल में की गई है। इससे अस्पताल आने वाले मरीज और उनके परिजनों ने राहत की सांस ली है। साथ ही हिन्दुस्तान के बोले जमुई मुहिम का आभार व्यक्त किया है। 26 फरवरी 2025 को प्रकाशित खबर में मरीजों और उनके परिजनों ने अपनी परेशानी बताई थी। कहा था कि 21 लाख आबादी वाले इस जिले में एक भी अस्पताल में सीटी स्कैन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। जमुई सदर अस्पताल कहने को तो सदर अस्पताल है। मगर गंभीर मरीजों के लिए यहां समुचित व्यवस्था नगण्य है। इस के बड़ा कारण सदर अस्पताल में डाक्टरों, विशेषज्ञ डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है। ऐसी स्थिति में जिले की 21 लाख की आबादी को किसी तरह की स्वास्थ्य सुविधा मिल रही होगी यह सोचने की बात है। बरहट से इलाज कराने पहुंचे महेंद्र यादव ने बताया कि बाइक से गिर गए थे उनके सिर में चोट लगी है। सीटी स्कैन कराने को कहा गया। सदर अस्पताल आए तो यहां सीटी स्कैन की सुविधा नहीं है। अब उन्हें पटना जाकर सीटी स्कैन कराना होगा। वहीं मीना देवी ने बताया कि उन्हें पेट में दर्द है अल्ट्रा साउंड के लिए कहा गया है लेकिन यहां विशेषज्ञ नहीं होने के कारण अल्ट्रासाउंड नहीं किया जा रहा है। आप बीमार हैं या किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित होकर दयनीय स्थिति में है या फिर दुर्घटनाग्रस्त होकर आये हैं तब तो यह पूरी तरह से रेफरल अस्पताल की भूमिका में आ जाता है। और प्राथमिक उपचार के पश्चात रेफर कर दिया जाता है। मरीजों के 80 फीसदी से अधिक मामलों का इस अस्पताल में इलाज करने की जगह अन्य जगहों के लिए रेफर कर दिया जाता है। इससे मरीजों की परेशानी तो बढ़ती ही है उन्हें आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ती है। विदित हो कि जिले में सदर अस्पताल के साथ तीन रेफरल, चार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सहित तीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है लेकिन किसी भी जगह बेहतर उपचार की व्यवस्था नहीं है।

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