Ganga A Sacred River Facing Neglect and Insecurity for Devotees बोले कटिहार, गंगा घाट पर स्थायी बैरिकेडिंग और गोताखोरों की हो नियमित तैनाती, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
Hindi NewsBihar NewsBhagalpur NewsGanga A Sacred River Facing Neglect and Insecurity for Devotees

बोले कटिहार, गंगा घाट पर स्थायी बैरिकेडिंग और गोताखोरों की हो नियमित तैनाती

गंगा केवल जलधारा नहीं, करोड़ों लोगों की मां है। मनिहारी घाट पर श्रद्धालु गंदगी और असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। सुरक्षा व्यवस्था की कमी और अंतिम संस्कार के दौरान शोषण के कारण श्रद्धालुओं में निराशा...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरSun, 15 June 2025 07:10 PM
share Share
Follow Us on
बोले कटिहार, गंगा घाट पर स्थायी बैरिकेडिंग और गोताखोरों की हो नियमित तैनाती

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप गंगा सिर्फ जलधारा नहीं, करोड़ों जनमानस की मां है- जो जन्म देती है, शुद्ध करती है, मोक्ष का द्वार खोलती है। मनिहारी घाट पर जब श्रद्धालु गीली आंखों और भीगे मन से मां गंगा की शरण में पहुंचते हैं तो उनके भीतर आस्था, शांति और आत्मबल का भाव उमड़ता है। लेकिन ये भाव तब कराह में बदल जाते हैं, जब मां की गोद में उन्हें असुरक्षा, गंदगी और उपेक्षा मिलती है। यह सिर्फ घाट की बदहाली नहीं, श्रद्धा के साथ किए जा रहे अन्याय की पीड़ा है - जहां आस्था डगमगाती है और विश्वास असहाय होकर प्रश्न करता है: क्या मां की गोद भी अब सुरक्षित नहीं गंगा सिर्फ नदी नहीं है, करोड़ों लोगों की मां है।

हर सुबह, सूरज की पहली किरणों के साथ जब मनिहारी घाट पर श्रद्धालु ‘गंगे च यमुने चैव... का उच्चारण करते हुए जल में उतरते हैं तो लगता है जैसे आत्मा पवित्र हो रही हो। लेकिन इसी गंगा की गोद में जब कोई हादसा होता है तो चीत्कारें गूंजती हैं और तब ये घाट सवाल बन जाता है – क्या आस्था के साथ इतना अन्याय। मनिहारी का गंगा घाट पूर्वोत्तर भारत, नेपाल और बंगाल तक के लोगों की आस्था का केंद्र है। अररिया, फारबिसगंज, सहरसा, सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग, गुवाहाटी, मालदा से रोजाना बड़ी संख्या में लोग गंगा स्नान को आते हैं। पर्व-त्योहारों पर यह संख्या 50 हजार तक पहुंच जाती है। लेकिन विडंबना देखिए – जहां लोगों को आत्मिक शांति मिलनी चाहिए, वहीं उन्हें असुविधा, डर और अपमान का सामना करना पड़ता है। घाट पर नहीं है बैरिकेडिंग की व्यवस्था घाट पर न तो कोई बैरिकेडिंग है, न ही गोताखोर तैनात हैं। सुरक्षा के नाम पर शून्य व्यवस्था है। कोई गहरे पानी में बह जाए तो बचाने वाला कोई नहीं होता। महिलाओं के लिए बने चेंजिंग रूम में बदबू और गंदगी इस कदर है कि वे मजबूरी में खुले में कपड़े बदलने को विवश होती हैं। महिला पुलिस का कोई अता-पता नहीं, जिससे अकेली महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं। श्रद्धालु जिस सड़क से घाट तक पहुंचते हैं, वह खुद एक पीड़ा का अनुभव है – टूटी हुई सड़कें, रास्ते में बिखरे बोल्डर और कोई संकेत नहीं। पार्किंग की कोई समुचित व्यवस्था नहीं, बैठने के लिए एक भी बेंच नहीं। जो बुजुर्ग कांपते पांवों से मां गंगा की शरण में आए हैं, वे छांव के लिए एक पेड़ की तलाश करते रह जाते हैं। शवदाह के दौरान शोषण से होता है स्वागत जब कोई परिजन अंतिम यात्रा पर आता है तो घाट पर उनका स्वागत शोक के साथ शोषण करता है। दाह संस्कार के नाम पर डोमराजा 10-20 हजार रुपये की मांग करता है, जबकि सरकार ने इसकी तय राशि मात्र 550 रुपये रखी है। ग़म में डूबे परिवार बहस नहीं करते – वे चुपचाप दे देते हैं, क्योंकि वे उस क्षण अपने प्रियजन की आत्मा की शांति चाहते हैं। गंगा मैया की गोद में आस्था लिए आने वाले ये लोग व्यवस्था से बस यही पूछते हैं कि क्या मां की शरण में भी डर, पीड़ा और लाचारी सहनी पड़ेगी। प्रशासन से अपील है – इस घाट को सिर्फ नहाने का स्थल नहीं, एक भावनात्मक स्थल समझें। गोताखोर तैनात हों, बैरिकेडिंग हो, महिला सुरक्षा, बैठने-स्नान की बेहतर व्यवस्था हो। क्योंकि मां गंगा सबकी हैं – लेकिन मां के आंचल को सुरक्षित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है। इनकी भी सुनिए गंगा स्नान को हर साल सपरिवार आता हूं, पर घाट की हालत देखकर मन दुःखी हो जाता है। न कोई साफ-सफाई, न सुरक्षा। लगता है जैसे प्रशासन की आंखों में ये घाट दिखता ही नहीं। इतनी भीड़ में कोई घटना हो जाए तो संभालने वाला कोई नहीं। – राकेश कुमार --- यहां गंगा मां की पूजा करने आता हूं, पर यहां की गंदगी और अव्यवस्था देखकर मन खिन्न हो जाता है। महिलाओं के लिए कोई सम्मानजनक व्यवस्था नहीं है। प्रशासन को चाहिए कि इस पवित्र स्थल को पर्यटन नहीं तो कम से कम सुरक्षित तो बनाए। – उदय कुमार --- मैंने कई बार देखा है कि लोग फिसल कर पानी में गिर जाते हैं। गोताखोर की कोई व्यवस्था नहीं है। बैरिकेडिंग होती तो हादसे रुक सकते थे। घाट की मरम्मत और सुरक्षा व्यवस्था बहुत जरूरी है। – मिथलेश कुमार --- गंगा मां को लोग मां कहते हैं लेकिन उनकी गोद में श्रद्धालु असुरक्षित महसूस करें, यह दुर्भाग्य है। घाट तक की सड़क टूट चुकी है। पार्किंग की कोई सुविधा नहीं। बाहर से आए लोग कटिहार की छवि को लेकर नाराज़ लौटते हैं। – मनोज मिश्रा --- हमारे यहां आस्था सबसे बड़ा बल है, लेकिन मनिहारी घाट की स्थिति से लगता है जैसे यह आस्था का अपमान हो रहा है। दाहसंस्कार के समय पैसे की वसूली बहुत दुखद है। सरकार को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए। – बजरंगी कुमार --- मनिहारी घाट पर जो श्रद्धालु आते हैं, वे केवल स्नान नहीं करने आते, वे भाव लेकर आते हैं। लेकिन घाट पर सुविधा और स्वच्छता के अभाव से वे निराश हो जाते हैं। घाट के नाम पर केवल नाम बचा है, व्यवस्था नहीं। – विकास कुमार महलदार --- मैंने अपनी आंखों से देखा है कि एक वृद्ध महिला कीचड़ में फिसल गई, कोई सहायता नहीं थी। यदि वहां महिला पुलिस और साफ रास्ता होता तो यह न होता। श्रद्धालु मां गंगा की शरण में डरते हुए क्यों आएं? – डब्लू कुमार --- घाट पर बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है। बुजुर्ग लोग नीचे मिट्टी में बैठने को मजबूर होते हैं। श्रद्धालुओं को तकलीफ न हो, इसकी जिम्मेदारी प्रशासन की है। हमें सिर्फ भावनाओं से नहीं, व्यवस्था से भी सम्मान चाहिए। – ओम कुमार --- पर्व-त्योहार के समय जो भीड़ होती है, उसमें बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है। घाट पर सीढ़ियां टूट चुकी हैं, कोई रोशनी नहीं है। हादसा कभी भी हो सकता है। ऐसे में सिर्फ भगवान ही भरोसा हैं। – अजय कुमार सिंह --- यहां दाह संस्कार करने आए लोग पहले ही गम में होते हैं, ऊपर से जब उनसे हजारों की वसूली होती है तो उनकी आत्मा और टूट जाती है। यह घाट नहीं, शोषण का स्थल बनता जा रहा है। – रमेश मिश्रा --- घाट पर महिलाएं खुले में कपड़े बदलने को मजबूर होती हैं। यह बेहद शर्मनाक है। कोई चेंजिंग रूम है भी तो गंदा पड़ा है। हमारी संस्कृति में मां गंगा को पवित्र माना गया है, लेकिन व्यवस्था ने इसे अपवित्र कर दिया है। – कन्हैया कुमार --- घाट के किनारे इतने गड्ढे हैं कि बच्चों को संभालना मुश्किल हो जाता है। कहीं ध्यान भटका नहीं कि हादसा हो सकता है। हर साल घाट की हालत और बिगड़ती जा रही है। कोई देखने वाला नहीं है। – विजय ठाकुर --- मुझे आश्चर्य होता है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग आते हैं, लेकिन यहां कोई प्राथमिक चिकित्सा केंद्र भी नहीं है। हादसे के वक्त लोगों को खुद अपने साधन से इलाज के लिए ले जाना पड़ता है। यह लापरवाही है। – अजय यादव --- हर साल घाट पर आकर यही लगता है कि अगर कुछ हुआ तो किसके भरोसे? कोई गश्ती पुलिस नहीं, कोई सुरक्षाकर्मी नहीं। बच्चों और महिलाओं के साथ आना खतरे से खाली नहीं है। प्रशासन को नींद से जागना चाहिए। – अजय कुमार साह --- मुझे दुख इस बात का है कि घाट पर पूजा-पाठ तो होता है, लेकिन वहां का माहौल श्रद्धा से ज़्यादा अव्यवस्था भरा लगता है। गंदगी, दुर्गंध और कचरे के ढेर मां गंगा का अपमान कर रहे हैं। – रतन दास --- शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। बच्चे और बुजुर्ग खुले में जाने को मजबूर होते हैं। इतनी भीड़ होने के बावजूद मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। ये घाट नहीं, कष्ट का केंद्र बन गया है। – अजय कुमार --- बारिश के समय घाट तक पहुंचने में बेहद कठिनाई होती है। सड़क कीचड़ से भरी होती है, वाहन नहीं चल पाते। श्रद्धालुओं को पैदल ही फिसलते हुए जाना पड़ता है। यह किसी पर्यटन या धार्मिक स्थल की तस्वीर नहीं हो सकती। – चंदन कुमार --- घाट पर न तो साफ पानी है, न पीने के लिए प्याऊ। गर्मी के दिनों में पानी के लिए लोग इधर-उधर भटकते हैं। छांव में बैठने के लिए कोई जगह नहीं। प्रशासन अगर चाहे तो सब ठीक हो सकता है। – विवेक कुमार --- अक्सर देखा है कि लोग स्नान के दौरान गहरे पानी में चले जाते हैं और घबरा जाते हैं। यदि वहां गोताखोर या चेतावनी संकेत होते तो ऐसी घटनाएं रोकी जा सकती थीं। जीवन की सुरक्षा व्यवस्था सबसे पहले होनी चाहिए। – दिलीप तांती --- मैं प्रशासन से निवेदन करता हूं कि घाट की व्यवस्था ठीक की जाए। ये श्रद्धा का स्थल है, लापरवाही का नहीं। श्रद्धालु हर जाति-धर्म से आते हैं, सभी को सुविधा और सम्मान मिलना चाहिए। यह मां गंगा की सच्ची सेवा होगी। – संजय पंडित ----------------------- जिम्मेदार मनिहारी नगर क्षेत्र से होकर बहती मां गंगा हमारे लिए गौरव का विषय है। नमामि गंगे योजना के तहत मनिहारी गंगा घाट को बिहार के सबसे आधुनिक और सुविधायुक्त घाट के रूप में विकसित करने की दिशा में कार्य चल रहा है। हमारी प्राथमिकता है कि मनिहारी को एक प्रमुख तीर्थ स्थल का दर्जा मिले, जहां दूर-दराज़ से लोग गंगा स्नान और धार्मिक अनुभूति के लिए आएं। घाट पर साफ-सफाई, सुरक्षा, श्रद्धालुओं की सुविधा और सांस्कृतिक सौंदर्य का विशेष ध्यान रखा जाएगा। मनिहारी को आदर्श घाट बनाने के लिए हम पूरी प्रतिबद्धता से काम कर रहे हैं। राजेश कुमार उर्फ लाखो यादव, मुख्य पार्षद, मनिहारी नगर पंचायत शिकायत 1. घाट पर बैरिकेडिंग नहीं है और गोताखोरों की मौजूदगी नहीं होती, जिससे जान का खतरा बना रहता है। 2. महिलाओं को चेंजिंग रूम में गंदगी और असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। 3. घाट तक की सड़क जर्जर, रास्ते में बोल्डर और कोई संकेतक नहीं हैं, जिससे यात्री परेशान होते हैं। 4. बैठने, छांव, पार्किंग और साफ-सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। 5. अंतिम संस्कार के दौरान मुखाग्नि के लिए तय राशि से कई गुना अधिक वसूला जाता है, जिससे दुखी परिजन शोषण का शिकार होते हैं। सुझाव 1. गंगा घाट पर स्थायी बैरिकेडिंग और गोताखोरों की नियमित तैनाती की जाए, ताकि कोई दुर्घटना न हो। 2. महिला चेंजिंग रूम की साफ-सफाई और महिला पुलिस बल की तैनाती अनिवार्य रूप से की जाए। 3. घाट तक पहुंचने के लिए सड़क मरम्मत कराई जाए व बोल्डर हटाए जाएं। 4. श्रद्धालुओं के लिए बैठने की व्यवस्था, शेड और पेयजल की सुविधा सुनिश्चित की जाए। 5. डोमराजा द्वारा मनमानी वसूली पर रोक लगे और प्रशासन द्वारा निर्धारित दर का पालन सख्ती से कराया जाए।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।