बोले पूर्णिया : कटाव लील लेता है घर, नदी बहा ले जाती है हमारे अरमान
महानंदा नदी के कछार पर बसे सिल्ला रघुनाथपुर गांव के लोग कटाव के संकट से जूझ रहे हैं। 1987 की बाढ़ के बाद से 200 परिवारों में से अब केवल 18-20 परिवार बचे हैं। प्रशासन की अनदेखी और पुनर्वास की कमी के...
नदी के कछार पर बसे कटाव पीड़ितों की जिंदगी एक तरफ जहां हाशिए पर है वहीं इनकी दारुण दास्तान झकझोर देने वाली है। यहां के लोगों की जिंदगी अब एक ऐसी कहानी बन गई है जिस पर हर साल कुछ ना कुछ रिपोर्ट बनती है लेकिन स्थायी समाधान नहीं होता। वैसे तो यहां की समस्या काफी पुरानी है, परंतु वर्ष 1987 की बाढ़ के बाद से महानंदा नदी के कछार पर बसे सिल्ला रघुनाथपुर गांव के कटाव पीड़ित नदी की बर्बरता का शिकार हैं। 1987 के आसपास इस गांव में लगभग 200 परिवार निवास करते थे। नदी का कटान तेज होता गया और इन गरीबों के घर महानंदा की गोद में समाता चला गया। जैसे-जैसे इन लोगों का आवास खत्म होता गया वैसे-वैसे इन लोगों ने अपना अस्थाई आवास बनाना शुरू किया। ऐसे में उनकी जिंदगी घुमंतू भोटिया से भी बदतर होकर रह गई। अभी इस गांव में 18 से 20 परिवार ही मात्र बचे हैं। फिर कटाव का सीजन आ गया है। डर बना हुआ है कि उनका घर भी कटाव में खत्म हो गया, तो जाएंगे कहां? संवाद के दौरान सिल्ला रघुनाथपुर के लोगों ने अपनी परेशानी बताई।
02 सौ परिवारों पर वर्षों से कटाव का संकट
70 फीसदी लोग हर साल करते हैं पलायन
01 सौ 75 से अधिक परिवार हुए तितर-बितर
पूर्णिया जिले के सबसे दूरस्थ बैसा प्रखंड के पूर्वी दिशा से होकर बहने वाली महानंदा नदी के किनारे बसे दर्जनभर गांव भीषण नदी कटाव की चपेट में आने से अपना अस्तित्व खो चुके हैं। वहीं कई गांव ऐसे हैं जिनका अस्तित्व कभी भी समाप्त हो सकता है। ऐसे ही गांव में शामिल हैं बैसा प्रखंड के कनफलिया पंचायत अन्तर्गत सिल्ला रघुनाथपुर। जिसका अस्तित्व अब खत्म होने के कगार पर है। लोग इसके अस्तित्व को बचाने के लिए जदोजहद कर रहे हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधि व ग्रामीण आक्रोशित हैं। इसको लेकर ग्रामीणों ने नदी किनारे एकजुट होकर सौतेलेपन का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है इस गांव में कभी सैकड़ों परिवार रहा करते थे, वहां आज बस गिनती के परिवार ही बच गए हैं। ऐसे परिवार में अधिकतर मजदूर वर्ग शामिल थे। जिन्हें इस भीषण कटाव का दर्द इस कदर झेलना पड़ा कि वे आज विस्थापित होकर कहीं और आश्रय लेकर किसी तरह जीवन गुजर बसर कर रहे हैं।
सौतेलेपन का आरोप
सिल्ला रघुनाथपुर गांव के जो बचे हुए कुछ परिवार हैं, उन्होंने सीधे तौर पर प्रशासन व क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों पर सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया है। बताया गया कि साल 1984 से महानंदा नदी अपना उग्र रूप धारण कर कटाव करती आ रही है। शुरुआती दौर में कटाव धीमा था। जिसे देखकर लोगों ने सोचा भी नहीं था कि यही नदी आगे चलकर हमारे जीवन में उधम मचा देगी। हर साल हो रहे कटाव को देखने के लिए तो न जाने इस स्थल पर कितनी बार सांसद एवं विधायक से लेकर जिला पदाधिकारी तथा अनुमंडल पदाधिकारी भी आए। परंतु सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला। जो थोड़ा बहुत काम बाढ़ व भीषण नदी कटाव के शुरू होने के बाद फ्लड फाइटिंग के रूप में किया गया वो सिर्फ खानापूर्ति ही साबित हुआ क्योंकि नदी कटाव रुका ही नहीं और आज इस क्षेत्र के दशा इसके दर्द को बखूबी बयान कर रही है।
झुग्गी-झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर
ग्रामीणों ने बताया कि साल 2017 के भीषण बाढ़ व नदी कटाव की तबाही के बाद तीन साल बाद 2020, 2021 एवं 2022 में जो नदी कटाव हुआ उससे सभी लोगों का आशियाना पूरी तरह से उजड़ गया है और न चाहते हुए कई लोग आज भी पंचायत भवन परिसर में झुग्गी झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर हैं। हालांकि सिल्ला रघुनाथ पुर के दर्जनों ग्रामीण ने इसको लेकर दिसम्बर 2023 में जिला पदाधिकारी को तो फरवरी 2024 को अनुमंडल पदाधिकारी बायसी को आवेदन देते हुए उसकी प्रतिलिपि क्षेत्रीय सांसद, विधान पार्षद व विधायक को भी दिया। परंतु इस स्थल पर आज तक पुनर्वास अथवा कटवा निरोधक कार्य नहीं हुआ। ग्रामीणों ने प्रशासन व जनप्रतिनिधियों पर सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए बताया कि जब नदी किनारे कटाव निरोधक कार्य को लेकर विभागीय स्तर पर मापी आदि का कार्य किया जा रहा था तब आसजा से लेकर सिल्ला रघुनाथ पुर होते हुए चुनामाड़ी तक की मापी ली गयी। जब कार्य प्रारंभ हुआ तो चुनामाड़ी के शेष भाग पर ही कार्य हो रहा है। जिसको देखकर ग्रामीणो को लगने लगा कि पूरी तरह से उनकी अनदेखी की जा रही है।
शिकायत:
1. कटाव से त्रस्त हैं नदी के कछार पर बसे गांव के लोग
2. कटाव पीड़ितों के पुनर्वास के लिए सरकार ने नहीं की व्यवस्था
3. स्थायी घर की भी नहीं की जाती है व्यवस्था
4. कटाव पीड़ितों के गांव में कटाव के रोकने की भी व्यवस्था नहीं
5. रोशनी की व्यवस्था नहीं होने के कारण रात हो जाती है अंधेरी
सुझाव:
1. कटाव रोकने के लिए पर्याप्त व्यवस्था जरूरी
2. कछार पर बसे कटावग्रस्त गांव में रोशनी की हो व्यवस्था
3. सरकार कटाव पीड़ितों की करे पुनर्वास की मुकम्मल व्यवस्था
4. कटाव पीड़ितों की बच्चों की हो अलग से पढ़ाई की व्यवस्था
5. कटाव पीड़ितों के जीवन शैली में सुधार के लिए मिले विशेष पैकेज
सुनिए हमारी पीड़ा
1. अधिकारी एवं विभागीय कर्मचारी आते हैं और फोटो खिंचवाते हैं और जो जाते हैं, फिर न आते हैं और काम होता ही नहीं है। हम लोग इससे परेशान होकर रह गए हैं अब हम लोगों के पास कोई रास्ता नहीं दिखता।
-देवी लाल
2. कटाव निरोधक कार्य को लेकर डीएम, एसडीओ, सांसद,विधायक को एक साल पहले भी आवेदन दिया गया पर यहां काम न होकर कहीं और कार्य हो रहा है। ग्रामीण के साथ सौतेला व्यवहार है।
-अनिल कुमार साह
3. जल्द से जल्द अगर कटाव निरोधक कार्य नहीं किया गया तो जो दस पंद्रह परिवार इस गांव में बचे हैं, उनका भी अस्तित्व पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। इसके लिए बचाव कार्य पहले से होना चाहिए।
-गोविंद कुमार शर्मा
4. नदी किनारे रहना शायद अभिशाप है। अधिकारी हो या फिर जनप्रतिनिधि कहते तो बहुत कुछ हैं और करते कुछ नहीं। क्योंकि उन्हे हम पीड़ितों से कोई हमदर्दी नहीं है।
-वीरेंद्र कर्मकार
5. गरीब होने के कारण ही अनदेखी की जा रही है, क्योंकि आसपास कई जगहों पर थोड़ा बहुत कार्य होता रहा है और इस गांव को बचाने के लिए कोई निरोधक कार्य नहीं किया जा रहा है।
-मुकेश कर्मकार
6. दिन रात मेहनत मजदूरी कर तिनका तिनका जोड़कर आशियाना बनाते हैं और कटाव की चपेट में आ जाता है। जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति सुधरने की जगह बिगड़ती ही चली जाती है।
-निताई कुमार
7. नदी कटाव में सबकुछ खोने के बाद बहुत मुश्किल से जीवन गुजर बसर करते हैं। खासकर बच्चों के लिए उस वक्त जीना मुश्किल हो जाता है। हमारी जिंदगी निरर्थक होकर रह गई है।
-रूबी देवी
8. नदी कटाव रोकने को लेकर सरकार एवं जनप्रतिनिधि शायद कभी कुछ सही ढंग से करना ही नहीं चाहते इसलिए तो ये समस्या वर्षों से झेलते आ रहे हैं। काश! हमारे दर्द को ये लोग समझ पाते।
-बोनी देवी
9. जब भी वोट का समय होता है तो जनप्रतिनिधि ऐसे वायदे करते हैं जिसे सुनकर यही लगता है कि हमारा मसीहा आ गया है। लेकिन चुनाव खत्म होते ही कोई कुछ नहीं करता ।
-इंद्रावती देवी
10. इस गांव मे हुए भीषण कटाव के बाद सभी विस्थापित परिवार पंचायत भवन परिसर की खाली जमीन पर आश्रय लेकर हैं। शेष परिवार को बचाने के लिए निरोधक कार्य नहीं हुआ तो पूरा सिल्ला रघुनाथ पुर गांव का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।
-मो हासिम
बोले जिम्मेदार
विधानसभा क्षेत्र की मुख्य तीन नदियों महानंदा, कनकई व परमान नदी के किनारे कटाव निरोधक कार्य लगभग 17 करोड़ की राशि से होना है। पहली बार जियो बेग या बम्बू पाइलिंग की जगह लिप्ट्स के पेड़ों का प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लगभग 26 फीट लंबाई और लगभग 18 फीट गहरा होगा। उम्मीद है कि पहली बार इस तरह प्रयोग बेहतर होगा और कटाव रुकेगा। जिस जगह पर अभी कार्य हो रहा है वहां 800 मीटर कार्य होना था पर 450 मीटर का ही कार्य विभाग द्वारा किया जा रहा जिससे कटाव की स्थिति बनी रहने की संभावना है। इसको लेकर लगातार विभाग के संपर्क में है। जो भी कार्य हो रहा है वह संभवतः इसी महीने के अंत तक हो जाना है। जहां कटाव निरोधक कार्य नहीं हो पा रहा है वहां विभाग ने फ्लड फाइटिंग कार्य किए जाने का आश्वासन दिया है।
-अख्तरुल इमान, विधायक, अमौर
बॉटम स्टोरी :
उपधाराएं सूखने से कोशकीपुर में आई खुशहाली
पूर्णिया। तीन जिलों पूर्णिया, कटिहार और भागलपुर की सीमा से सटे पूर्णिया जिले के कोशकीपुर गांव के कटाव का इतिहास दशकों पुराना रहा है। एक जमाना था जब इस गांव होकर कोसी की चपल धारा चलती थी। हर साल कटाव और बाढ़ से लोग विस्थापित होते थे और भगोड़ा जैसी जिंदगी जीते थे। बाढ़ और कटाव जैसी प्राकृतिक आपदा से इस इलाके में गरीबी का आलम रहा करता था। हर साल घर तोड़कर भागने और दूसरे जगह बसने की जुगत में यहां के लोगों की जिंदगी आम लोगों की जिंदगी से ज्यादा खराब हो जाती थी। उस जमाने में ना कोई कटावरोधी कार्य होता और ना ही पुनर्वास की व्यवस्था होती, ऐसे में लोगों की जिंदगी भागम भाग वाली बनी रहती थी। हालांकि हाल के दो दशक से कोसी की कई उप धाराएं सूख गई तो स्थानीय लोगों को जान में जान आई है। कल तक जहां बेबसी की जिंदगी थी। आज वहां सब्जी, तरबूज एवं ककड़ी की खेती काफी ज्यादा होने लगी तो लोग खुशहाल हुए हैं। कहा जाता है कि उस समय बाढ़ और कटाव पीड़ितों के लिए सिर्फ राहत कार्य चलते थे। स्थानीय लोग बताते हैं कि जब यह गांव नदी में समा रहा था तो एक बड़े रसूखदार आदमी का बड़ा मकान 2 महीने तक नदी के बीच में रह गया था और लोग उसे कौतूहल पूर्वक देखने आते थे और नदी के बीच विशाल मकान को टापू कह रहे थे।
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