कोसी में कटाव को रोकने के लिए टेट्रापॉड का पहली बार हो रहा आजमाइश
कोसी नदी में कटाव रोकने के लिए पहली बार टेट्रापॉड का प्रयोग किया जा रहा है। पुल्टेगौड़ा और चतरा में 4000 किलोग्राम वजन के टेट्रापॉड लगाए जा रहे हैं। यह तकनीक जलधारा के वेग को तोड़कर कटाव रोकने में...

वीरपुर एक संवाददाता। कोसी नदी की तेज धारा और तटबंधों पर बढ़ते खतरे को देखते हुए परकोपाइन के बाद हाई लेवल कमेटी की अनुशंसा से नेपाल प्रभाग में पहली बार टेट्रापॉड को आजमाया जा रहा है। कोसी में कटाव रोकने की दिशा में नई तकनीकि एवं समाधान की दिशा में नई पहल की जा रही है। नेपाल प्रभाग के पुल्टेगौड़ा और चतरा इलाके में पहली बार 4000 किलोग्राम वजन टेट्रापॉड लगाये जा रहे हैं। यह टेट्रापॉड विशेष रूप से नदी की धारा को तोड़ने और तटबंध की मजबूती सुनश्चिति करने में सक्षम माने जाते हैं। पुल्टेगौड़ा एक संवेदनशील प्वाइंट है, यहां हर साल कोसी नदी का हमलावर रुख रहता है।
हर साल बाढ़ सुरक्षात्मक कार्य यहां कराये जाते है। तेजी से हो रहे कटाव को रोकने में ट्रेटापॉड कितना कारगर होता है यह अभी देखना है, अगर यह सफल रहा तो कोसी में कटाव को रोकने के लिए इसे व्यापक स्तर पर शुरू किया जा सकता है। क्या है टेट्रापॉड और क्यों है यह खास: टेट्रापॉड एक चार पैरों वाला विशेष संरचनात्मक ब्लॉक होता है, जो जलधारा के वेग को तोड़कर कटाव को रोकने में कारगर होता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि गिरने के बाद भी इसका आकार और संतुलन नहीं बदलता। चार पैर होने के यह अधिक स्थायत्वि प्रदान करता है। इसका वजन भी इसके सफलता में सहायक होता है। चार हजार किलोग्राम के आसपास वजन होने के कारण यह नदी के बहाव को पीछे धकेलने में कारगर होता है। पूर्व में महाराष्ट्र एवं उतर प्रदेश मे इसका प्रयोग सफल रहा है। पूर्वी कोसी तटबंध के कुसहा डिवीजन के कार्यपालक अभियंता मनोज कुमार सहनी कहते हैं कि साल 2023 में गंडक नदी परियोजना (गोरखपुर, उत्तर प्रदेश) में टेट्रापॉड का सफल उपयोग सफल रहा था। वहां की सफलता को देखते हुए अब इसे कोसी नदी में भी आजमाया जा रहा है। यह तकनीक भले ही खर्चीली हो पर परकोपाइन में बार-बार मरम्मत कार्य के रूप में होने वाली खर्च से राहत दिला सकती है। इसके माध्यम से संभावित बाढ़ और कटाव से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। गौरतलब है कि कोसी नदी के 61 वर्षों के इतिहास में पहली बार टेट्रापॉड का उपयोग तटबंधों और स्परों की सुरक्षा के लिए किया जा रहा है। पिछले वर्ष 2024 में 28 सितम्बर को कोसी नदी का जलस्तर 56 साल के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 6.61 लाख क्यूसेक तक पहुंच गया था, जिसके चलते कोसी बराज के ऊपर से पानी बहने लगा था। इसके बाद जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव संतोष कुमार मल्ल ने कोसी बराज समेत तटबंधों और स्परों का निरीक्षण किया था। इस निरीक्षण के बाद कोसी हाई लेवल कमेटी ने विभन्नि क्षेत्रों में बाढ़ पूर्व सुरक्षा उपायों को लेकर अपनी रिपोर्ट विभाग को सौंपी थी। प्रयोगशाला स्तर पर होगी शुरुआत: पूर्वी कोसी तटबंध के कुसहा डिवीजन के कार्यपालक अभियंता मनोज कुमार ने बताया कि नेपाल स्थित पुल्टेगौड़ा के स्पर संख्या 12 में टेट्रापॉड का प्रयोगशाला स्तर पर उपयोग प्रस्तावित है। यह स्थान दो धाराओं के संगम स्थल पर स्थित है, जहां जल वेग अत्यंत तीव्र होता है। ऐसे में टेट्रापॉड के माध्यम से बाढ़ के समय उत्पन्न दबाव में लगभग 1600 मीटर की लंबाई में इन टेट्रापॉड्स को स्थापित किया जा रहा है। इंजीनियरों का मानना है कि यह तकनीक पारंपरिक पत्थर या ईंट-जड़ाई की तुलना में अधिक कारगर साबित होगी। टेट्रापॉड की अनूठी आकृति पानी की दिशा को तोड़कर ऊर्जा को कम करती है, जिससे कटाव को रोका जा सकता है। इससे बाढ़ में नुकसान कम होगा इस संबंध में मुख्य अभियंता वरुण कुमार ने बताया कि यह तकनीक बिहार और कोसी नदी के लिए पहला प्रयोग है। महाराष्ट्र और यूपी में वर्षों से सफल प्रयोग में है। कोसों नदी लिए मात्र एक बिंदु पर इसकी मंजूरी मिली है। जिसे विभागीय समय-सीमा के तहत पूरा कर लिया जायेगा।
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