छोटे बच्चों को डांटना-डपटना बंद कीजिए
पश्चिम बंगाल में हाल ही में सातवीं क्लास में पढ़ने वाले एक बच्चे ने इसलिए खुदकुशी कर ली, क्योंकि उसकी मां ने सबके सामने उसको डांट दिया था। बच्चा अपने पीछे एक सुसाइड नोट छोड़ गया है, जिसमें उसने लिखा है, मां मैंने चोरी नहीं की। बच्चे के ये आखिरी शब्द दिल को झकझोर कर रख देने वाले हैं…

पश्चिम बंगाल में हाल ही में सातवीं क्लास में पढ़ने वाले एक बच्चे ने इसलिए खुदकुशी कर ली, क्योंकि उसकी मां ने सबके सामने उसको डांट दिया था। बच्चा अपने पीछे एक सुसाइड नोट छोड़ गया है, जिसमें उसने लिखा है, मां मैंने चोरी नहीं की। बच्चे के ये आखिरी शब्द दिल को झकझोर कर रख देने वाले हैं। दरअसल, उस बच्चे पर एक मिठाई की दुकान से चिप्स के पैकेट चुराने का आरोप लगा था। कहा जाता है कि दुकानदार की गैर-मौजूदगी में उसने दुकान से चिप्स के पैकेज उठा लिए थे। बाद में पूछताछ करने पर बच्चे ने कहा कि दुकानदार के न रहने पर उसने पैकेट उठाए जरूर थे, पर उसके दाम वह बाद में चुका देता। मगर दुकानदार ने बच्चे को मारा-पीटा और सबके सामने माफी मंगवाई। बच्चे की मां को जब पता चला, तो उन्होंने भी बच्चे को सबसे सामने डांटा। इससे वह बच्चा इतना आहत हो गया कि घर लौटते ही उसने कीटनाशक पी ली और अपनी जान दे दी।
यह घटना उन मां-बाप के लिए किसी सबक से कम नहीं है, जो बात-बात पर सबके सामने अपने बच्चों को बुरी तरह डांट देते हैं। उनको समझना चाहिए कि उम्र के इस पड़ाव पर बच्चे बहुत ही कोमल और संवेदनशील होते हैं। वे हरेक बात को अपनी बेइज्जती से जोड़ लेते हैं। कई बार वे ऐसा कदम उठा लेते हैं, जिसके बाद परिजनों के पास पछताने के अलावा कोई और रास्ता नहीं होता। इसीलिए, माता-पिता को बच्चों के साथ पेश आने में बहुत सतर्कता बरतनी चाहिए। बच्चों को समझाएं, डाटें नहीं। अगर डांटना बहुत जरूरी हो, तो अकेले में ऐसा करें।
निस्संदेह, आज के दौर में बच्चों की परवरिश बिल्कुल आसान काम नहीं है, क्योंकि इसमें अभिभावकों से धैर्य और वक्त की मांग होती है, जो उनके पास होता नहीं। बच्चों को अच्छे या बुरे की अहमियत समझाना बहुत जरूरी है, लेकिन प्यार और अपनेपन के साथ। हर बात पर उन्हें डांटना या पीटना ठीक नहीं है। बच्चों की भावनाओं का ख्याल रखना बेहद जरूरी होता है। उनके कोमल मन को समझना भी बहुत जरूरी है। हर बार वे गलत हों, ऐसा जरूरी नहीं है। कई बार बच्चे सच बोल रहे होते हैं, तब भी उन्हें गलत मान लिया जाता है। परिवार को सही और गलत के निर्णय पर पहुंचने से पहले कई बार सोचना होगा। हर बात पर बाल मन का इस तरह तिरस्कार करना सही नहीं कहा जा सकता। हमें बच्चे की मानसिक स्थिति के अनुसार फैसला लेना चाहिए और उन्हीं की नजर से चीजों को देखना चाहिए। मगर दुर्भाग्य से हम ऐसा नहीं करते, जिसकी परिणति पश्चिम बंगाल जैसी घटनाओं के रूप में सामने आती है।
अमित बैजनाथ गर्ग, पत्रकार
समझाने के लिए कभी-कभी डांट भी जरूरी
ऐसी बात नहीं है कि अभिभावक अपने बच्चों के साथ हमेशा दुर्व्यवहार ही करते हैं या उसे डांटते-पीटते रहते हैं। बल्कि, आज के समय में माता-पिता पहले से अधिक संवेदनशील हैं और बच्चों की परवरिश भी बेहतर करते हैं। लगभग सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे खुश, संतुलित और अच्छे बनें।
देखा जाए, तो बच्चों की परवरिश पहले से बेहतर हो रही है। अब माता-पिता अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताते हैं, उन्हें खुलकर बात करने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इसके अलावा, वे बच्चों को विभिन्न प्रकार की गतिविधियों और अवसरों में शामिल करने की कोशिश करते हैं, ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके। अब माता-पिता अपने बच्चों के साथ एक दोस्त की तरह संबंध बनाने की कोशिश करते हैं, जिससे बच्चे अपनी समस्याओं को खुलकर बताने लगे हैं। माता-पिता बच्चों को अपनी रचनात्मकता और प्रतिभा को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे उनकी सिर्फ स्कूली पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं करते, बल्कि उन्हें विभिन्न प्रकार के कौशल और ज्ञान भी सिखाते हैं। वे बच्चों को अपनी छोटी-छोटी जिम्मेदारियों को संभालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिससे वे स्वतंत्र और जिम्मेदार नागरिक बन सकें। माता-पिता अब बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति भी अधिक जागरूक हो रहे हैं और उन्हें तनाव व चिंता से निपटने में मदद करते हैं। कुल मिलाकर, आज के मां-बाप अपने बच्चों के विकास के लिए अब अधिक जागरूक और समर्पित हो रहे हैं।
हां, असंवेदनशीलता की इक्का-दुक्का घटनाएं भी सामने आती हैं, मगर उनको अपवाद के तौर पर ही लिया जाना चाहिए। वैसे भी, बच्चों को कभी-कभी डांटना भी जरूरी होता है। इसे यूं समझिए कि जब से स्कूलों में शिक्षकों की पिटाई एक तरह से प्रतिबंधित कर दी गई है, अभिभावक अपने बच्चों के कहीं अधिक शरारती होने की शिकायत करने लगे हैं। यह जरूर है कि बालमन संवेदनशील होता है , लेकिन कभी-कभी अगर हल्की-फुल्की पिटाई हो भी गई, तो उसे सकारात्मक सोच के साथ स्वीकार करना चाहिए। अब तो माता-पिता इसका भी ख्याल रखते हैं कि खुद बच्चे के सामने एक आदर्श उदाहरण बनकर पेश आएं। बच्चे, हम जो कहते हैं, उससे ज्यादा हम जो करते हैं, उससे सीखते हैं। यह बात खास तौर पर उनकेे जीवन के शुरुआती वर्षों में सच होती है। लिहाजा, माता-पिता भी यह समझने लगे हैं कि उनका बच्चा बड़ा होकर अच्छा इंसान तभी बनेगा, जब वे खुद अच्छे इंसान की तरह पेश आएंगे।
आनंद कुमार जैन, टिप्पणीकार
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