बोले हजारीबाग : नहर की हो जाए मरम्मत तो जेठ में भी खेतों में लहलहाएगी फसल
हजारीबाग जिले में सिंचाई व्यवस्था की बदहाली ने किसानों की कमर तोड़ दी है। गोंदा डैम, जो 1952 में किसानों की जीवनरेखा के रूप में बना था, आज खुद उपेक्षा

हजारीबाग । आजादी के बाद जिले में हजारों करोड़ों रुपए सिंचाई के नाम पर खर्च किए गए, लेकिन किसानों के खेत तक पानी नहीं पहुंच पाया। इसका खामियाजा तीन लाख से अधिक किसानों को भुगतना पड़ रहा है। वर्ष 1952 में गोंदा डैम का निर्माण 125 एकड़ क्षेत्र में हुआ था, लेकिन आज यह मात्र 30 से 35 एकड़ क्षेत्र में सिमट कर रह गया है। गोंदा डैम से पांच साल पूर्व 10 करोड़ रुपए खर्च कर पक्की नहर का निर्माण कराया गया, लेकिन नहर खेतों से ऊंचाई पर होने के कारण खेतों में पानी नहीं पहुंच पाता है। इसके कारण किसानों को खेती-किसानी के लिए जो सुविधा मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल पा रही है।
गोंदा डैम से पानी निकासी का पंप सेट पिछले पांच माह से बंद पड़ा है। जिले में दो लाख 68 हजार किसान प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना से पंजीकृत हैं, जबकि अभी भी हजारों किसान ऐसे हैं जो इस योजना से पंजीकृत नहीं हैं। वे रबी सीजन में दलहन, तिलहन के साथ टमाटर, धनिया और हरी सब्जियों की खेती करते हैं। सिंचाई सुविधा नहीं होने के कारण हर साल उनकी रबी फसल से लेकर आलू और हरी सब्जियों की खेती प्रभावित होती है। अपनी पूंजी और कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें हर साल आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। जिले के लाखों किसानों के समक्ष सिंचाई की समस्या अब भी बनी हुई है। खेती-किसानी के विकास के लिए बुनियादी सिंचाई व्यवस्था की गई ओर कोई बड़ी राजनीतिक और प्रशासनिक पहल नहीं की गई है। सिंचाई विभाग के अधिकारियों का तर्क है कि जिले में पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सिंचाई सुविधा बहाल नहीं हो पाई है। इसके अलावा सिंचाई के प्राकृतिक स्रोत, जैसे बड़ी नदियां, जिले में नहीं हैं। जिले में 81.7 प्रतिशत सतही जल है, जबकि 17.3 प्रतिशत भूगर्भीय जल है। आज भी 90 प्रतिशत लोग कुएं और हैंडपंप पर निर्भर हैं।कृषि विभाग के अनुसार जिले में रबी सीजन की खेती के लिए गेहूं और चना बीज का वितरण हो चुका है और खेती शुरू हो चुकी है, लेकिन इसमें सिंचाई की समस्या आड़े आ रही है। इसका जवाब कृषि विभाग के पास नहीं है। खेतों तक पानी कैसे पहुंचे, इसके लिए जिले में बिरसा किसान सिंचाई योजना सहित कितनी योजनाएं संचालित की जा रही हैं, इसका आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। मोनो क्रॉपिंग योजना के प्रति कृषि विभाग उदासीन : जिले में मोनो क्रॉपिंग योजना को लागू करने की योजना है, जिससे किसानों को दलहन, तिलहन की खेती और मटर-आलू की पैदावार से अधिक आमदनी हो सके। इस योजना को लागू करने को लेकर राज्य सरकार गंभीर है। लेकिन जिला कृषि कार्यालय इस योजना को लेकर पूरी तरह उदासीन है। रबी फसल के लिए लक्ष्य निर्धारित : कृषि विभाग के अनुसार जिले के 16 प्रखंडों में 15,500 हेक्टेयर भूमि पर रबी सीजन में गेहूं लगाए जाने का लक्ष्य रखा है। इस सीजन में कई इलाकों में दलहन और तिलहन की खेती होती है। रबी वर्ष 2024-25 में 500 हेक्टेयर में मक्का, 17,000 हेक्टेयर में चना, 2,500 हेक्टेयर में मसूर, 2,500 हेक्टेयर में मटर, और 1,000 हेक्टेयर में अन्य दलहन फसल का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जिले में कुल 23,000 हेक्टेयर में दलहन फसल और 9,500 हेक्टेयर में तिलहन फसल का लक्ष्य है। प्रस्तुति: कौशल/अजय सिंचाई की कमी से किसानों को हो रहा है नुकसान रबी सीजन में जिले के किसान गेहूं, चना, मसूर, मटर, राई, सरसों और गरमा धान की खेती करते हैं। वर्ष 2024-25 में 15,500 हेक्टेयर में गेहूं और 23,000 हेक्टेयर में दलहन फसल का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन सिंचाई की कमी के कारण किसानों को खेती में लगातार नुकसान हो रहा है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में पंजीकरण के बावजूद तीन लाख किसानों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। न सिंचाई है, न बीज की उचित व्यवस्था। परिणामस्वरूप किसानों की मेहनत और पूंजी दोनों पर पानी फिर रहा है। सिंचाई की सुविधा मिलती तो कई गांव के किसान जेठुआ फसल उगाते और वे आर्थिक रूप से भी सबल हो सकते थे। उन्नत बीज का वितरण नहीं मोनो क्रॉपिंग योजना से किसानों को दलहन, तिलहन और सब्जियों की खेती में अधिक उत्पादन और आमदनी हो सकती है। राज्य सरकार इस योजना को लेकर गंभीर है और कृषि विभाग को किसानों को जागरूक करने की जिम्मेदारी भी दी गई है। लेकिन कृषि विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। न किसान जागरूक किए जा रहे हैं और न ही उन्नत बीजों का वितरण हो रहा है। कृषि विभाग की यह निष्क्रियता किसानों की आय को प्रभावित कर रही है और सरकार की नीतियों को विफल बना रही है। खेती के लिए कुएं पर हंै निर्भर सिंचाई विभाग का तर्क है कि जिले में पहाड़ी भूभाग होने और बड़ी नदियों के अभाव के कारण सिंचाई सुविधा बहाल करना कठिन है। लेकिन सवाल उठता है कि हजारों करोड़ खर्च होने के बावजूद जमीन पर कोई ठोस बदलाव क्यों नहीं आया? जिले में 81.7% सतही जल और 17.3% भूगर्भीय जल है, लेकिन अधिकांश किसान आज भी कुएं और हैंडपंप पर निर्भर हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि योजनाएं केवल कागजों तक ही सीमित रह गई हैं। डैम से पंप सेट भी महीनों से बंद पड़ा है, पर कोई पहल नहीं हो रही है। दर्जनों गांवों के खेत हैं सूखे जिले में सिंचाई के लिए भैरवा, सेवाने, लोटिया, बोधा, कोनार, पंचखेरो और बरही जलाशय परियोजनाएं शुरू की गई, लेकिन इनका लाभ किसानों तक नहीं पहुंचा। इन परियोजनाओं पर करोड़ों खर्च होने के बाद भी दर्जनों गांवों के खेत सूखे पड़े हैं। गोंदा डैम से जुड़ी नहरें भी अनुपयोगी बनी हुई हैं। विभागीय आंकड़ों की पारदर्शिता भी नहीं है जैसे कितने हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा है या कितने कुएं बने हैं, इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। तीनों प्रमुख विभाग कृषि, सिंचाई और प्रशासन सिर्फ एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते हैं। किसानाें ने कहा- डैम का गहरीकरण जरूरी गोंदा डैम निर्माण होने के बाद गहरीकरण नहीं किया गया है। इससे किसानों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है। इसके सिंचाई नहर का निर्माण खेत से ऊपर हो गया है, पानी नहीं मिल पाता है। इंद्र नारायण कुशवाहा खेत से नीचे नहर बन जाने के कारण खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाता है। नहर में जगह-जगह ब्रेकर की जरूरत है। साथ ही नहर के दोनों ओर का रास्ता जर्जर हो गया है, इससे भी परेशानी होती है: -महेश प्रसाद नहर में पानी निकासी के लिए पाइप नहीं होने के कारण खेत में पानी नहीं पहुंच पाता है। नहर में ब्रेकर की जरूरत है। लेकिन इसे नहीं लगाया गया है। इससे किसानों को परेशानी होती है। -नरेश प्रसाद नहर बनने के बाद आज तक उसकी साफ-सफाई नहीं हुई है, इस कारण किसानों को पटवन करने में काफी परेशानी होती है। नहर में जगह-जगह मिट्टी का जमाव हो गया है। - गंगा साव गोंदा डैम की जमीन को कई लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि डैम की जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराकर डैम का गहरीकरण कराएं। -शिवनारायण प्रसाद बरसात के मौसम में नहर से अनावश्यक रूप से पानी बहता है, जिसे देखने वाला कोई नहीं है। गोंदा डैम से सिंचाई सुविधा बहाल करने के लिए दो खलासी के पद स्वीकृत हैं, लेकिन इसकी नियुक्ति नहीं हुई है। -गणेश प्रसाद एक दशक पूर्व सलगावां गांव के किसान जेठुआ फसल उगाते थे। लेकिन वर्तमान में सिंचाई के अभाव में किसान खेती नहीं कर पाते हैं। इससे जेठ में उनकी जमीन परती रहती है। -रघु महतो गोंदा डैम का जीर्णोद्धार करना सबसे ज्यादा जरूरी है। डैम में कम पानी होने के कारण किसानों को खेती करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। -सुनील साव पंचायत में कोल्ड स्टोरेज बनाना जरूरी है। यहां टमाटर की खेती होती है। लेकिन कई बार उन्हें लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता है। कोल्ड स्टोरेज रहने से टमाटर को स्टोर करने में आसानी होगी। -नागेश्वर साव
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