90 साल पुराना स्कूल आज भी जर्जर खपड्डैल भवन में है संचालित
अड़की प्रखंड के एदेलहुड़ंग गांव में 1935 में स्थापित राजकीय प्राथमिक विद्यालय, मालुटी आज भी जर्जर स्थितियों में चल रहा है। 90 साल बाद भी स्कूल के लिए भवन अधूरा है और बच्चों को जंगलों में दूर-दूर तक...

अड़की, प्रतिनिधि। जब पूरा इलाका जंगलों से अटा पड़ा था, रास्ते पगडंडियों तक सीमित थे, उसी समय वर्ष 1935 में अड़की प्रखंड अंतर्गत मदहातू पंचायत के एदेलहुड़ंग (नीचे मालुटी) गांव में शिक्षा की अलख जगाने के उद्देश्य से एक विद्यालय की स्थापना हुई थी। आज यह विद्यालय राजकीय प्राथमिक विद्यालय, मालुटी के नाम से जाना जाता है। लेकिन यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज 90 साल बाद भी यह स्कूल जंगली पत्थरों और मिट्टी से बने खपड़ैल दो कमरों में ही संचालित हो रहा है। स्कूल के बरामदे में ही बच्चों की पढ़ाई होती है। ग्रामीणों ने किया संघर्ष, लेकिन अधूरा रह गया सपना: वर्ष 2004 में एक नए भवन का निर्माण शुरू हुआ, परंतु गांव तक सड़क नहीं होने की वजह से निर्माण सामग्री वहां तक लाना बेहद कठिन था।
इसके बावजूद गांव के लोगों ने बिना किसी मजदूरी के स्वयं श्रमदान कर चार किमी दूर से ईंट, सीमेंट, गिट्टी और नदी से बालू ढो-ढोकर गांव तक पहुंचाया। महीनों की मेहनत के बाद भवन की दीवारें और छत लेवल तक का कार्य तो पूरा हुआ, लेकिन ढलाई के समय संवेदक ने काम बंद कर दिया। तब से आज तक अधूरा भवन यूं ही पड़ा है। आज उस अधूरे भवन के अंदर एक आम का पेड़ उग आया है, जिस पर फल भी लगे हैं। यह स्थिति सरकारी उपेक्षा का जीवंत प्रतीक बन चुकी है। गांव के लोगों ने श्रमदान कर बनाया रास्ता: गांव के लोगों ने तीन साल पहले श्रमदान कर ऊपर मालुटी से एदेलहुड़ंग तक पहाड़ काटकर रास्ता बनाया, लेकिन यह इतना कठिन है कि केवल ट्रैक्टर और कुछ साहसी बाइक चालक ही इस रास्ते पर चल पाते हैं। इसी रास्ते के कारण शिक्षक भी रोज स्कूल देर से पहुंचते हैं और कई बार जल्दी छुट्टी कर लौट जाते हैं। अधूरे शौचालय और किचन शेड का इंतजार: हाल ही में सरकार ने स्कूल के पास एक शौचालय और किचन शेड निर्माण का कार्य शुरू किया था, लेकिन दोनों कार्य अधूरे पड़े हैं। शौचालय निर्माण के बाद भी पानी की सुविधा नहीं होने के कारण उसका उपयोग नहीं हो पाएगा। किचन शेड भी अधर में लटका हुआ है। जर्जर भवन में संचालित हो रहा है स्कूल: हिन्दुस्तान की टीम जब विद्यालय पहुंची, तो अधूरे पक्के भवन से सटे जर्जर मिट्टी-पत्थर के खपड़ैल घर में स्कूल चलता मिला। कुल 14 नामांकित छात्रों में से सिर्फ 4 बच्चे उपस्थित थे। बरामदे में दरी बिछाकर पढ़ाई चल रही थी। चार में से एक बच्चा सो रहा था, बाकी तीन ब्लैकबोर्ड की ओर देख रहे थे। शिक्षक आते हैं 45 किमी दूर से: ग्राम प्रधान नथनियल भेंगरा बताते हैं कि शिक्षक खूंटी से प्रतिदिन 45 किलोमीटर की दूरी तय कर स्कूल आते हैं। खराब और जोखिम भरे रास्तों के कारण हर दिन उन्हें स्कूल पहुंचने में देर हो जाती है, और कई बार समय से पहले ही लौट जाते हैं। दूसरे गांवों में पढ़ने जाते हैं बच्चे: विद्यालय की बदहाल स्थिति के कारण एदेलहुड़ंग गांव के बच्चे चार से पांच किलोमीटर की जंगली और पहाड़ी दूरी तय कर बागड़ी और तुबिल के स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे अपने बच्चों को मुरहू या खूंटी में किराए पर रखकर पढ़ा रहे हैं। सरकार पर से अब टूटने लगा है ग्रामीणों का भरोसा: ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। अब ग्रामीण इसे अपनी नियति मान चुके हैं। 90 साल पुराने इस विद्यालय की दशा से यह साफ झलकता है कि झारखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्था कितनी उपेक्षित है। मदहातू पंचायत के एदेलहुड़ंग नीचे मालूटी में स्कूल भवन नहीं होने की जानकारी मिली है। यहां जल्द ही विद्यालय भवन का निर्माण कराया जाएगा, ताकि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले सके। गणेश महतो, बीडीओ, अड़की।
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