why muslim countries frightened of standing against israel amid tension with iran इजरायल के खिलाफ खड़े होने से कतरा रहे मुस्लिम देश, सता रहा है किस बात का डर?, Middle-east Hindi News - Hindustan
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इजरायल के खिलाफ खड़े होने से कतरा रहे मुस्लिम देश, सता रहा है किस बात का डर?

ईरान पर इजरायल के हमले की निंदा करने के लिए तो मुस्लिम देश तैयार हैं लेकिन ये देश इजरायल के खिलाफ एकजुट होकर खड़े होने से कतरा रहे हैं।

Ankit Ojha लाइव हिन्दुस्तानThu, 19 June 2025 03:17 PM
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इजरायल के खिलाफ खड़े होने से कतरा रहे मुस्लिम देश, सता रहा है किस बात का डर?

इजरायल और ईरान के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। इजरायल ने पहले ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमला किया था। इसके अलावा इजरायल ने ईरान के कई वैज्ञानिकों और सैन्य अधिकारियों को भी मार डाला। इसके बाद मुस्लिम देशों ने मिलकर इजरायल की निंदा तो की लेकिन कोई भी मजबूती से ईरान के साथ खड़ा नहीं दिख रहा है। केवल पाकिस्तान ने मुस्लिम देशों का इजरायल के खिलाफ आने का आह्वान किया है। ईरान ने यहां तक दावा कर दिया था कि अगर इजरायल परमाणु बम का इस्तेमाल करता है तो इसका जवाब उसकी तरफ से पाकिस्तान देगा। हालांकि पाकिस्तान ने तुरंत इस दावे से किनारा कर लिया। यहां तक कि उसने ईरान से जुड़ी सीमा को भी बंद कर दिया। इससे पाकिस्तान की दोहरी नीति भी सामने आ गई। यही नीति दुनिया के ज्यादातर मुस्लिम देशों की है। सऊदी अरब, कतर समेत लगभग 21 मुस्लिम देशों ने इजरायली हमले की निंदा कर दी लेकिन कोई भी खुलकर ईरान का साथ देने को तैयार नहीं है।

आपसी अनबन

मुस्लिम देश आपस में कभी एकजुट नहीं हो पाए। सऊदी अरब और ईरान में अनबन खत्म नहीं हुई है। कई ऐसे मुस्लिम देश भी हैं जो कि इजरायल के करीबी हैं। सऊदी अरब जैसे देश अमेरिका के करीबी माने जाते हैं। वहीं अमेरिका इजरायल का समर्थक है। ऐसे में कई मुस्लिम देश यह नहीं चाहते कि उनकी अमेरिका से दूरी बने। ईरान इस्लामिक क्रांति से पहले पश्चिम का सपोर्टर था। अमेरिका से उसकी करीबी थी। ईरान में जब इस्लामिक क्रांति हुई उसी साल मिस्र ने इजरायल को राष्ट्र की मान्यता देने और राजनयिक संबंध स्थापित करने का फैसला कर लिया। इसके बाद जॉर्डन ने भी इजरायल को राष्ट्र की मान्यता दे दी। बीते पांच साल में इजरायल के मोरक्को, सूडान, बहरीन और यूएई से भी राजनयिक संबंध शुरू हो गए हैं। ऐसे में विदेश नीति को लेकर ये मुस्लिम देश भी इतना बड़ा परिवर्तन अचानक नहीं कर सकते।

शिया-सुन्नी का मतभेद

मुस्लिम देशों के एकजुट ना होने की बड़ी वजह शिया और सुन्नी के बीच मतभेद भी बन जाता है। ईरान एक बड़ा शिया बहुल देश है। वहीं सऊदी अरब समेत ज्यादातर मुस्लिम देश सुन्नी बहुल हैं। अजरबैजान शिया बहुल होते हुए भी इजरायल का करीबी है। तुर्की जैसे देश वैसे तो दूसरे मुस्लिम देशों को नसीहत देते हैं कि इजरायल के साथ राजनयिक संबंध तोड़ दें। हालांकि उसके खुद के राजनयिक संबंध इजरायल के साथ बने हुए हैं। वहीं तुर्की ईरान के परमाणु कार्यक्रम का समर्थन नहीं करता है।

जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान तो सिर्फ भारत से तनातनी की वजह से इस समय ईरान को अहमियत दे रहा है। शीत युद्ध के समय से ही वह तुर्की और ईरान के करीब था। हालांकि बीच में उसकी करीबी अफगानिस्तान से बढ़ी थी। अब हाल यह है कि अफगानिस्तान और भारत दोनों पड़ोसियों से उसका तनाव है। ऐसे में वह अपनी अहमियत साबित करने के लिए ईरान के समर्थन में आवाज दे रहा है।

अमेरिका का विरोध मुश्किल

अरब देशों में अमेरिका का काफी दबदबा है। खाड़ी देशों में अमेरिका के हजारों सैनिक हैं और सै्य अड्डे भी हैं। अमेरिका इजरायल का खुलकर समर्थन कर रहा है। इजरायल के पास जो भी अमेरिकी हथियार पहुंच रहे हैं वे किसी ना किसी मुस्लिम देश से ही होकर जा रहे हैं। इसके बावजूद जॉर्डन जैसे देश इसका विरोध नहीं कर पा रहे हैं। 1967 के युद्ध से पहले अरब देश इजरायल और फिलिस्तीन के मामले में दखल देते थे। हालांकि इस युद्ध के बाद अब इस मामले में केवल ईरान समर्थित कुछ संगठन ही दखल देते हैं। उन्हें भी अमेरिका ने आतंकी संगठन मान रखा है। इसमें हिजबुल्लाह और हमास जैसे संगठन शामिल हैं। कतर जैसे देश में अमेरिका का बेस है। वह जब चाहे इसका इस्तेमाल कर सकता है। अरब के देशों के साथ अमेरिका के रणनीतिक संबंध हैं।

अमेरिका ने जब इराक पर हमला किया तो ईरान ने इसका विरोध नहीं किया था। सद्दाम हुसैन को फांसी हो गई लेकिन ईरान ने इसके खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। ओआईसी और अरब लीग जैसे संगठन भी मुस्लिम देशों के एकजुट करने में कामयाब नहीं हैं। ऐसे में ईरान अलग ही दिखाई दे रहा है। अगर अमेरिका से भी मतभेद बढ़े तो अमेरिका और इजरायल एक साथ ईरान पर हमला करेंगै और फिर उसके लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। सीरिया में ईरान समर्थित सरकार थी लेकिन तुर्की की मदद से इस सरकार को हटा दिया गया था। ऐसे में मुस्लिम देशों के आपसी मतभेद ही उन्हें साथ नहीं खड़ा होने देते। वहीं इजरायल को अमेरिका का साथ छोटे-छोटे मुस्लिम देशों के लिए बड़ी चुनौती हैं। शिया और सुन्नी मतभेद की वजह से इजरायल के हमले को इस्लाम के खिलाफ हमला भी नहीं साबित किया जा सकता। कुल मिलाकर इस्लामिक देशों का इजरायल के खिलाफ खड़ा होना नामुमकिन ही लगता है।

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