बिहार के पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला की उम्रकैद की सजा बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में राजद के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के मामले में विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी है। कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी करने के पटना...

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में पटना में राजद के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के जुर्म में विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को दी गई आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने अपराधी से नेता बने शुक्ला और एक अन्य दोषी की शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा संबंधी याचिका खारिज कर दी। पिछले साल तीन अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने शुक्ला और मंटू तिवारी को मामले में दोषी ठहराया था। पीठ ने छह मई के आदेश में रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों को ध्यान में रखते हुए कहा कि हमें पिछले फैसले की समीक्षा करने के लिए कोई अच्छा आधार और कारण नहीं मिलता है।
नया फैसला हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। आत्मसमर्पण का आदेश कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी करने के पटना हाईकोर्ट के फैसले को आंशिक रूप से खारिज कर दिया और दोषी पूर्व विधायक शुक्ला और तिवारी को आजीवन कारावास की सजा भुगतने के लिए 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा। पीठ ने दोनों पर 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था। सूरजभान समेत पांच को संदेह का लाभ शीर्ष अदालत ने मामले में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह समेत पांच अन्य आरोपियों को संदेह का लाभ दिया और मामले में उन्हें बरी करने के हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। श्रीप्रकाश भी हत्या में शामिल था पिछड़ा वर्ग के प्रभावशाली नेता और भाजपा की पूर्व सांसद रमा देवी के पति बृज बिहारी की गोरखपुर के गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला द्वारा हत्या की घटना ने बिहार और यूपी की पुलिस को हिलाकर रख दिया था। श्रीप्रकाश को बाद में यूपी एसटीएफ ने मार गिराया। शीर्ष अदालत ने कहा कि बृज बिहारी और उनके अंगरक्षक की हत्या में मंटू तिवारी और मुन्ना शुक्ला के खिलाफ आरोप साबित हो चुके हैं। दो अन्य आरोपियों भूपेंद्र नाथ दुबे और कैप्टन सुनील सिंह की कार्यवाही के दौरान मृत्यु हो गई। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में हत्या मंटू तिवारी, रमा देवी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी देवेंद्रनाथ दूबे का भांजा है। भूपेंद्र नाथ और देवेंद्रनाथ दूबे भाई थे। राजद की तत्कालीन उम्मीदवार रमा देवी के खिलाफ सपा के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे देवेंद्र नाथ दुबे की 23 फरवरी, 1998 को मोतिहारी लोकसभा क्षेत्र के लिए पुनर्मतदान से एक दिन पहले हत्या कर दी गई थी। इस मामले में बृज बिहारी और अन्य को आरोपी बनाया गया था। मामला सात मार्च, 1999 को सीबीआई को सौंपा गया था और केंद्रीय एजेंसी ने पूर्व सांसद सूरजभान सिंह और तीन अन्य को अपराध के साजिशकर्ता के रूप में नामजद किया था। जांच एजेंसी ने आरोप लगाया था कि 13 जून, 1998 को बृज बिहारी की हत्या से पहले पटना के बेउर जेल में सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला, लल्लन सिंह और राम निरंजन चौधरी के बीच एक बैठक हुई थी। लोवर कोर्ट से उम्रकैद की सजा हाईकोर्ट ने 24 जुलाई, 2014 को सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था और निचली अदालत के 12 अगस्त 2009 के आदेश को खारिज कर दिया था। निचली अदालत ने सभी को दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
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