Jallianwala Bagh of Rajasthan, where 250 farmers were killed, one demand is still unfulfilled राजस्थान का 'जलियांवाला बाग', जहां मारे गए थे 250 किसान; हवेलियों पर मौजूद गोलियों के निशान दे रहे गवाही, Rajasthan Hindi News - Hindustan
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राजस्थान का 'जलियांवाला बाग', जहां मारे गए थे 250 किसान; हवेलियों पर मौजूद गोलियों के निशान दे रहे गवाही

1926 के कानपुर कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने इसे 'दूसरा जलियांवाला बाग' करार दिया था। वहीं सरदार वल्लभभाई पटेल ने बंबई की सभा में इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी।

Sourabh Jain लाइव हिन्दुस्तान, अलवर, राजस्थानWed, 14 May 2025 08:16 PM
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राजस्थान का 'जलियांवाला बाग', जहां मारे गए थे 250 किसान; हवेलियों पर मौजूद गोलियों के निशान दे रहे गवाही

राजस्थान में आज से ठीक 100 साल पहले यानी 14 मई 1925 को अलवर रियासत के नीमूचणा गांव में वह खौफनाक मंजर घटा था, जिसे इतिहास ने ‘राजस्थान का जलियांवाला बाग’ हत्याकांड कहा। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों पर ब्रिटिश हुकूमत ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी गई थी, जिसमें 250 से ज्यादा किसान मारे गए थे। सरकारी आंकड़ों में भले ही यह घटना धुंधली हो गई हो, लेकिन गांव की दीवारों पर आज भी गोलियों के निशान मौजूद हैं जो इस भीषण नरसंहार की मूक गवाही दे रहे हैं।

घटना की वजह को लेकर कहा जाता है कि दोहरे लगान के खिलाफ किसानों के द्वारा आंदोलन किया जा रहा था, इसी दौरान किसानों को सबक सिखाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत के इशारे पर अलवर रियासत ने गांव को घेरकर गोलियां चलवा दी थीं। इस बर्बर फायरिंग में 250 से अधिक किसान शहीद हो गए थे, जबकि 100 से ज्यादा घायल हुए थे। गांव के 150 से ज्यादा घर और मवेशी जलकर राख हो गए थे।

गांव में हुए नरसंहार की घटना के बाद अजमेर से निकलने वाले प्रमुख अखबारों ने इस नरसंहार को प्रमुखता से उठाया था। जनता के तीव्र विरोध और राष्ट्रीय दबाव के चलते अलवर रियासत को न केवल दोहरा लगान वापस लेना पड़ा था, बल्कि 'बेगा प्रथा' जैसी अन्य शोषणकारी व्यवस्थाएं भी समाप्त की गईं थीं।

1926 के कानपुर कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने इसे 'दूसरा जलियांवाला बाग' करार दिया था। वहीं सरदार वल्लभभाई पटेल ने बंबई की सभा में इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी।

नीमूचणा नरसंहार की घटना को हुए आज सौ साल हो गए हैं, हालांकि अबतक किसी भी सरकार के द्वारा किसानों की मांग पर इस ऐतिहासिक स्थल को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा नहीं दिया गया है। गांव के समाजसेवियों और ग्रामीणों ने कई बार सरकार से मांग की कि जलियांवाला बाग की तर्ज पर यहां भी शहीद स्मारक बनाया जाए।

वर्तमान में बानसूर के विधायक देवीसिंह शेखावत केंद्र और राज्य दोनों में सत्तारूढ़ पार्टी से हैं, जिससे गांववालों को उम्मीद है कि अब यह ऐतिहासिक बलिदान उपेक्षा की धूल को झाड़कर बाहर आएगा और देश को उसका भूला हुआ इतिहास फिर से याद दिलाया जाएगा।

रिपोर्ट- हंसराज