बोले फर्रुखाबाद: तरबूज बेभाव... कारोबारी खाए ताव
Farrukhabad-kannauj News - पांचालघाट की तरबूज मंडी में किसानों को उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। तरबूज की फसल तैयार करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे अन्ना मवेशियों और पानी की कमी। अब तरबूज की कीमत केवल पांच रुपये...
पांचालघाट की तरबूज की अस्थायी मंडी में रोजाना ही 40 से 50 ट्रैक्टर और 50 बैलगाड़ियों से तरबूज विभिन्न क्षेत्रों से आता है। सबसे अधिक तरबूज अस्थायी मंडी में यहीं से पहुंचता है। जो किसान तरबूज पैदा करते हैं वही कारोबार भी करते हैं। हालांकि इस बार तरबूज कारोबारी खासे विचलित हैं। क्योंकि उन्हें रेट ही सही नहीं मिल पा रहे हैं। लोगोंं ने बड़ी मेहनत के साथ दोतरफा मार के बीच फसल तैयार की। सोचा था कि अच्छा खासा मुनाफा हो जाएगा पर स्थिति विपरीत हो गई। शुुरुआत में जरूर तरबूज अच्छी स्थिति में था। अब तो तरबूज पांच रुपये किलो के हिसाब से बिक रहा है।
आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से चर्चा के दौरान तरबूज कारोबारी राधेश्याम कहते हैं कि गंगा और रामगंगा की रेती में पालेज तैयार करते समय भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा और जब फसल बिक्री की बारी आयी तो खून का घूंट पीना पड़ रहा है। औने पौने में तरबूज बेचना पड़ रहा है। क्योंकि यह फसल ज्यादा दिन तक रोकी नहीं जा सकती है। रामआसरे कहते हैं कि तरबूज को तैयार करते समय सबसे बड़ी दिक्कत अन्ना मवेशियों से रही। 24 घंटे निगरानी करनी पड़ती थी। जरा सी गफलत होने पर अन्ना मवेशी फसल उजाड़ देते हैं। सिंचाई को लेकर भी समस्या आ जाती है। गंगा की धारा कभी पास तो कभी दूर हो जाने से दिक्कतें आईं। संतोष कहते हैं कि अपने यहां बदायूं, हरदोई, शाहजहांपुर की गंगा की रेत में तैयार फसल की विभिन्न वैराइटियां जैसे आस्था, सेंचुरी, लकी, माधुरी की बिक्री होती है। सबसे अधिक लोग माधुरी वैराइटी के तरबूज को पसंद करते हैं। मगर इसके भी रेट अच्छे नहीं मिल पाएं हैं। पिछली बार जरूर ठीक ठाक कारोबार हो गया था। रियाज कहते हैं कि अस्थायी मंडी में जब तरबूज लाते हैं तो पार्किंग को लेकर दिक्कत आ जाती है। इसका समाधान होना चाहिए। जगदीश कहते हैं कि इस बार बीज ने भी दगा दे दिया। फसल भी अच्छी नहीं हो पायी। जिस हिसाब से फसल होनी चाहिए उस हिसाब से नहीं हुई है। इससे नुकसान बढ़ गया है। सत्यभान कहते हैं कि लागत निकालना भी मुश्किल पड़ गया। ऐसा बंदोबस्त होना चाहिए जिससे कि किसानों और कारोबारियां को फसल के अच्छे रेट मिल सकें। फसल की जो नाकदरी इस बार हुई है वैसी कभी नहीं हुई है। संतोष कहते हैं कि लागत निकालना मुश्किल हो रहा है। इस बार पानी की दिक्कतें भी रहीं। ऐसे में सीधे तौर पर फर्क पड़ा। कारोबारियों का कहना है कि हमें सरकारी स्तर से मदद मिलने चाहिए ताकि घाटे की स्थिति में हम पूरी तरह से बरबाद न हो जाएं।
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