बोले गोंडा : बाढ़ से बचाने के पुख्ता हों इंतजाम, खानापूर्ति नहीं
Gonda News - गोंडा जिले में घाघरा और सरयू नदी का जलस्तर बढ़ने से हर साल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में सैकड़ों गांवों के लोग परेशान होते हैं। बाढ़ के कारण उनका जीवन नरक जैसा हो जाता है। सरकारी प्रयासों के बावजूद स्थायी...

जिले में घाघरा व सरयू नदी का जलस्तर बढ़ने के बाद हर साल दो तहसीलों के सैकड़ों गांव बाढ़ से प्रभावित होते हैं। निचले इलाकों के लोग बाढ़ की विभीषिका को याद कर चिंतित हो जाते हैं। हर साल बाढ़ आने पर अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने लगते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बाढ़ का दंश झेलना हमारी किस्मत में लिख गया है। जिसको कोई मिटाने वाला नहीं है, जबकि सरकार हर साल बाढ़ से बचाव के लिए करोड़ों रुपये व्यय करती है। जिले के तरबगंज और करनैलगंज क्षेत्र के सैकड़ों गांवों के हजारों घरों में बाढ़ का पानी हमेशा बर्बादी लाता है।
लोगों की मानें तो बंधा जिला प्रशासन के लिए धंधा बन चुका है। हिन्दुस्तान के बोले गोंडा कार्यक्रम में उमरी बेगम क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित लोगों ने कहा कि हमारे लिए बाढ़ मुसीबत बनकर आती है और अफसरों के लिए आपदा में अवसर बन जाती है। तभी तो हर साल सरकार के पैसे खर्च करने के बावजूद पक्का व मजबूत बंधा नहीं बना पाते हैं। गोंडा। सरयू नदी से सटे तरबगंज और करनैलगंज, नवाबगंज क्षेत्र के सैकड़ों गांव बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं। जिनसे हजारों आबादी प्रभावित होती है। वहीं हर साल उमरी बेगमगंज क्षेत्र के ऐली परसौली, सोनौली मोहम्मदपुर, गढ़ी, जबरन नगर सहित अन्य गांवों की 50 हजार आबादी बाढ़ से परेशान होती है। हिन्दुस्तान के बोले गोंडा कार्यक्रम में आकाश, रीना, मुकेश, नीलम, सुरेश सिंह, जय सिंह सहित अन्य लोगों ने बताया कि जिले के जिम्मेदार अधिकारियों के बंधा धंधा बन चुका है। लोग राहत सामग्री वितरण और बचाव के नाम पर शासन से करोड़ो रूपये का बजट हर साल डकार जाते हैं। लोगों ने बताया कि घाघरा में जैसे ही जलस्तर बढ़ने लगता है, वैसे ही हम लोगों की सांसे ऊपर नीचे होने लगती है। लोग अपने मकान के सामानों को लेकर ऊंचे स्थानों की ओर जगह बनाने लगते है। कहा कि दर्जन भर गांवों के लोगों का बाढ़ से नारकीय जीवन नजर आता है। लोगों ने संवाद में बताया कि रातों रात बाढ़ का पानी गांवों में घुसने से रखे सभी सामान हर साल खराब हो जाते है। घरों में रखे गेहूं, चावल, कपड़े सब पानी में डूब जाते हैं। गढ़ी, जबरन नगर, परास पुरवार के लोगों ने कहा कि बाढ़ से हमारे जानवरों का भूसा पानी में बह जाता है। जिससे हमारा काफी नुकसान होता है। लोगों ने बताया कि हमारे साथ हमारे पाले जानवर भी बाढ़ का शिकार होते हैं। कई लोगों के जानवर बाढ़ में बह जाते हैं। जिसकी कोई सूचना नही दर्ज होती है। वहीं, स्कूलों में पानी भर जाने से बच्चों की शिक्षा बंद हो जाती है। बाढ़ पीड़ितों को अंधेरे में गुजारनी पड़ती है रात हर साल बाढ़ आने के साथ ही बाढ़ पीड़ितों को दुश्वारियां झेलनी पड़ती हैं । लोगों का कहना है कि दिन तो कट जाता है लेकिन रात अंधेरे में गुजारनी पड़ती है। क्योंकि बाढ़ के दौरान बिजली कुछ ही जगहों पर रहती है। बाकी सभी इलाकों में आपूर्ति बंद कर दी जाती है। इससे अधिकांश गांवों के लोगों को अंधेरे में रहना पड़ता है। ऐली परसौली, सोनौली मोहम्मदपुर, गढ़ी जबरनगर,परासमझवार व पुरवार क्षेत्र के करीब 50 मजरे ऐसे हैं जो बाढ़ के पानी से किसी न किसी स्तर पर प्रभावित हैं। इनमें अधिकांश परसपुर धौरहरा बांध के दक्षिणी क्षेत्र में हैं। दर्जनों गांवों में पानी भर जाता है। इन सभी गांवों में बाढ़ के कारण अंधेरा रहता है। स्वास्थ्य सेवाएं भी बेहाल बाढ़ के कारण क्षेत्र में लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ समुचित नहीं मिल पाता है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में स्वास्थ शिविर लगाए जाते हैं। जिसको बेहतर करने की आवश्यकता है। वह केवल खानापूर्ति बनकर दिखावा साबित होता रहा है। संवाद में कहा कि बाढ़ में पानी भर जाने से लोगों को सीएचसी तक जाने में अक्षम रहते है। इसलिए बंधे पर ही चौबीस घंटे स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सकों की ड्यूटी लगाई जानी चाहिए। विद्यालयों में लग जाते हैं ताले हिन्दुस्तान के बोले गोंडा मुहिम में संवाद में बताया कि तरबगंज और करनैलगंज के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में दर्जनों स्कूलों पर ताला लग जाता है। लोगों ने कहा कि आधा जुलाई बीतते ही बाढ़ का पानी बढ़ने लगता है। अगस्त, सितम्बर तक बाढ़ से हाहाकार की तबाही में बहुत लोगों की जिंदगियां बदहाल हो जाती है। विद्यालयों में बच्चे पढ़ नही पाते, घर में रहना दुश्वार हो जाता है। कमाई चौपट हो जाती है। सरकार के मंत्री और अफसर निरीक्षण करते रहते हैं। व्यवस्था जस की तस हर साल नजर आती है। लोगों ने कहा कि अगर हम बीते सालों में बाढ़ के दौरान की फोटो निकालें तो प्रशासन की तैयारी, लंच पैकेट वितरण, लैया चूरा और दवा कोट वितरण पर सिमट जाती है। पानी में बह जाता है जानवरों का भूसा अहिरन पुरवा के राजू ने बताया कि उनके गांव तक बाढ़ का पानी पहुंच जाता है। पानी घरों के अंदर प्रवेश करने से खाद्य सामग्री बेकार हो जाती है। जानवरों का भूसा पानी में बह जाता है। कहा कि दस जानवर पाल रखे हैं। इसलिए अपने खाने-पीने के साथ ही इनकी भी व्यवस्था करने को दिक्कत होती है। बाढ़ में अफसर बांटते हैं भूसा तरबगंज तहसील क्षेत्र के गांवों में बाढ़ के दौरान पशुओं के चारे का इंतजाम अफसर करते हैं। बाढ़ पीड़ितों के पशुओं को भूसा भी दिया जाता है। ऐली परसौली, जबरनगर में ट्राला व ट्रक से भूसा का वितरण ग्राम प्रधान के नेतृत्व में जरूरतमंदों को किया जाता है। प्रशासन पशुओं के खाने की व्यवस्था के साथ ही उनके स्वास्थ्य की जांच के लिए पशु चिकित्सा कर्मचारियों की तैनाती की जाती है। प्रस्तुति : सच्चिदानंद शुक्ल, रवींद्र सिंह, रंजीत तिवारी बोले लोग -------------------- लोग हर साल बाढ़ का दंश झेलते हैं। लेकिन इस समस्या का स्थाई निदान नहीं किया जाता है। इसकी वजह से साल दर साल बाढ़ की चपेट में आकर लाखों की फसलों का नुकसान होता है। -सुरेन्द्र सिंह बाढ़ की वजह से फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है जबकि भरपाई के नाम पर सिर्फ ऊंट के मुंह में जीरा की तरह सहायता राशि प्रदान की जाती है। यह नहीं होना चाहिए। -योगेश बांध को पक्का बनाया जाए। इससे बाढ़ की समस्या से काफी हद तक निजात मिल जाएगी लेकिन बांध बांधने में घोर लापरवाही होती है। इसकी वजह से स्थानीय लोगों को बाढ़ का दंश झेलना पड़ता है। - राकेश यादव घाघरा का जलस्तर बढ़ने के साथ ही निचले इलाकों में रहने वाले लोगों की धड़कनें भी तेजी से बढ़ने लगती है। हर साल की तरह बाढ़ की दुश्वारियां उनकी आंखों में साफ नजर आने लगती है। - चंद्र प्रकाश सिंह बोले जिम्मेदार --------------------------- बाढ़ से बचाव व सुरक्षा के लिए तैयारियां की जा रही हैं। कटान को रोकने के लिए बोल्डर मंगाए गए हैं। बाढ़ से बचाव के कार्यों के तैयारियों की बराबर समीक्षा की जा रही है। - जयसिंह, एक्सईएएन, बाढ़ खंड हर साल बाढ़ प्रभावितों की मदद की जाती है। प्रशासन भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करता है। हर विभाग को बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की दुश्वारियों को कम करने के लिए काम करना चाहिए। - राजेंद्र प्रताप सिंह, ब्लाक प्रमुख, बेलसर
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