तथ्य छुपाने पर हाईकोर्ट की सख्ती, यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड पर लगाया 15 हजार का हर्जाना
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने तथ्यों को छिपाकर निगरानी याचिका दाखिल करने पर यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड पर एक्शन लिया है। उच्च न्यायालय ने 15 हजार रुपये का हर्जाना लगाकर याचिका खारिज कर दी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने तथ्यों को छिपाकर निगरानी याचिका दाखिल करने पर यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड पर 15 हजार रुपये का हर्जाना लगाकर याचिका खारिज कर दी। यह मामला बरेली के एक मकान व इमामबाड़े के पास की 17 दुकानों की वक्फ डीड का था। न्यायाधीश जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ने यह फैसला यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल पुनरीक्षण (निगरानी) याचिका पर दिया। इसमें विवादित संपत्तियों के लिए मुतवल्लियों की तैनाती के वक्फ ट्रिब्यूनल के वर्ष 2024 के एक फैसले को चुनौती देकर रद्द करने का आग्रह किया गया था।
दरअसल, यह मामला बरेली में 1934 में शुरू हुआ, जिसमें नवाब मोहम्मद हुसैन खां ने अपनी कोठी और वहां स्थित इमामबाड़े के पास की 17 दुकानों की वक्फ डीड की थी। उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी ने वक्फ डीड को चुनौती देकर सिविल जज बरेली की अदालत में दीवानी दावा दाखिल किया। जहां, 1952 में इस वक्फ डीड को शून्य घोषित किया गया। इसके बाद भी यह विवाद चलता रहा। बाद में नवाब की अकेली वारिस हुमा जैदी ने वक्फ कमिश्नर के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। जनवरी 2025 में हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन के आदेश पर रोक लगा दी।
इसी बीच, शिया वक्फ बोर्ड ने फरवरी 2025 में शिया वक्फ बोर्ड की वर्ष 2024 के फैसले को चुनौती देकर लखनऊ पीठ में यह निगरानी याचिका दाखिल की थी। इसमें, बोर्ड ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा हुमा जैदी के मामले में दिए गए आदेश का जिक्र नहीं किया। इस पर कोर्ट ने कहा बोर्ड द्वारा सारवान तथ्यों को छिपाने का दोषी होने का यह स्पष्ट मामला है, निगरानी कर्ता के इस आचरण की सराहना नहीं की जा सकती। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने निगरानी याचिका को 15 हजार हर्जाने के साथ खारिज कर दिया। हर्जाने की यह रकम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा की जाएगी।