High Court serious on harassing the whole family over FIR against one member एक सदस्य के खिलाफ एफआईआर पर पूरे परिवार को परेशान करने पर हाईकोर्ट गंभीर, Uttar-pradesh Hindi News - Hindustan
Hindi NewsUP NewsHigh Court serious on harassing the whole family over FIR against one member

एक सदस्य के खिलाफ एफआईआर पर पूरे परिवार को परेशान करने पर हाईकोर्ट गंभीर

एक सदस्य के खिलाफ एफआईआर पर पूरे परिवार को परेशान करने पर हाईकोर्ट गंभीर हो गया है। पुलिस पर नाराजगी जताते हुुए हाईकोर्ट ने आजमगढ़ कोतवाली में दर्ज मामले में आरोपी की मां और भाई को राहत दे दी है।

Yogesh Yadav लाइव हिन्दुस्तान, प्रयागराज, विधि संवाददाता।Tue, 13 May 2025 09:52 PM
share Share
Follow Us on
एक सदस्य के खिलाफ एफआईआर पर पूरे परिवार को परेशान करने पर हाईकोर्ट गंभीर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की के अपहरण में परिवार के किसी सदस्य के खिलाफ एफआईआर होने पर पूरे परिवार को परेशान करने को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने आजमगढ़ कोतवाली के ऐसे ही मामले में आरोपी फैसल की मां इशरत जहां व भाई सलीम अहमद को राहत दी है। कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए कोतवाली पुलिस को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 35 का अनुपालन करते हुए उचित विवेचना करने और याचियों को गिरफ्तार न करने का निर्देश दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा एवं न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने याचियों के अधिवक्ता सुधीर कुमार सिंह को सुनकर दिया है।

कोर्ट ने कहा कि अपहरण में किसी नाबालिग की संलिप्तता की जांच होनी चाहिए। बीएनएसएस की धारा 35 (3) में कहा गया है कि पुलिस अधिकारी को उन सभी मामलों में नोटिस जारी करना चाहिए जहां धारा 35 (1) के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है। जांच की उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए क्योंकि याचियों को नाबालिग लड़की के अपहरण में सीधे शामिल होने के लिए गिरफ्तार नहीं किया गया है।

ये भी पढ़ें:शादी के तीसरे ही दिन जहर देकर पति की थी हत्या, अदालत ने सुनाई उम्रकैद की सजा

आजमगढ़ निवासी इशरत जहां के बेटे फैसल के विरुद्ध आजमगढ़ के थाना कोतवाली में बी एनएस की धारा 87 ,137 (2), 351(3) को एफआईआर दर्ज हुई। कोतवाली पुलिस इस एफआईआर के अनुक्रम में इशरत जहां, उसके बेटे सलीम अहमद और पिता आफताब को परेशान करने लगी। पुलिस की इस उत्पीड़नात्मक कार्यवाही के विरुद्ध इशरत और उसके बेटे सलीम अहमद ने यह याचिका दाखिल की थी।

कैट चेयरमैन के अधिकार पर सवाल

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की इलाहाबाद बेंच के क्षेत्राधिकार के मुकदमों की नई दिल्ली स्थित प्रधान पीठ के चेयरमैन द्वारा नजदीकी के आधार पर सीधे सुनवाई करने को विधायिका की मंशा के विपरीत ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि चेयरमैन ने धारा 25 व नियम 6 में मुकदमों के स्थानांतरण के अधिकार की गलत व्याख्या की है। प्रदेश के जो 14 जिले लखनऊ बेंच के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, उन्हें छोड़कर उत्तराखंड सहित पूरे प्रदेश के मुकदमों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार कैट की इलाहाबाद बेंच को है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कानपुर चकेरी प्रधान नियंत्रक डिफेंस एकाउंट विभाग में सीनियर एडीटर राजेश प्रताप सिंह की याचिका पर दिया है।

कोर्ट ने कैट की इलाहाबाद बेंच में वकीलों के आंदोलन के कारण न्यायिक कार्य न हो पाने और दिल्ली के नजदीक के जिलों के केस दिल्ली की प्रधानपीठ द्वारा सुने जाने के अधिकार पर उठे सवालों का केंद्र सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा है। साथ ही याची का स्थानांतरण कानपुर से पुणे करने के आदेश व कार्य से अवमुक्त करने के आदेशों पर रोक लगा दी है।

कोर्ट ने कहा कि कैट एक्ट की धारा 25 चेयरमैन को किसी केस को एक बेंच से दूसरी बेंच में स्थानांतरित करने का अधिकार है लेकिन नजदीकी जिलों के मुकदमों की सीधे सुनवाई करने का अधिकार नहीं है। यह क्षेत्राधिकार प्राप्त करने जैसा है।

याचिका में तबादला व कार्यमुक्त करने के आदेश की वैधता को चुनौती दी गई है। याची का कहना है कि वह आल इंडिया डिफेंस एकाउंट एसोसिएशन का निर्वाचित पदाधिकारी है। सरकारी नीति के अनुसार उसका स्थानांतरण नहीं किया जा सकता। याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता उदय चंदानी ने कहा ऐसे ही एक मामले में अनुराग शुक्ल के स्थानांतरण व कार्य मुक्ति आदेश पर न्यायाधिकरण ने रोक लगा दी है। वकीलों की हड़ताल के कारण कैट की इलाहाबाद बेंच में काम नहीं हो रहा है इसलिए हाईकोर्ट में सीधे याचिका की गई है। न्यायाधिकरण में सुनवाई न होने के कारण याची राहत विहीन हो गया है इसलिए सीधे हाईकोर्ट में याचिका की है।

हालांकि केंद्र सरकार के अधिवक्ता सौमित्र सिंह ने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की। कहा कि दिल्ली के आसपास के नजदीकी जिलों के मुकदमे प्रधानपीठ में सुने जा रहे हैं। चेयरमैन को इसका अधिकार है। प्रयागराज 700 किमी और मेरठ से दिल्ली 100 किमी है। एक मामले में आफिस व कैट लखनऊ में है लेकिन वादी दिल्ली में रहता है। जब दिल्ली में चेयरमैन मामले की सुनवाई कर सकते हैं तो सीधे हाईकोर्ट में याचिका क्यों की गई।

कोर्ट ने चेयरमैन की कानूनी शक्ति के प्रावधानों पर‌ विचार के बाद कहा कि स्थानांतरण अधिकार से क्षेत्राधिकार नहीं लिया जा सकता। साथ ही इस सवाल का जवाब मांगा है कि दूरी के आधार पर दूसरे न्यायाधिकरण के क्षेत्राधिकार के किसी मुकदमे की सुनवाई चेयरमैन कर सकते हैं या नहीं।