बोले मथुरा: यशोदा मां का दिया दर्जा लेकिन सम्मान है अधूरा
Mathura News - मथुरा की आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने 1975 से बच्चों के पोषण, महिलाओं के स्वास्थ्य और ग्रामीण शिक्षा में योगदान दिया है। हालांकि, उन्हें कम वेतन, डिजिटल कार्यों का दबाव और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़...

मथुरा। बच्चों के पोषण, महिलाओं के स्वास्थ्य और ग्रामीण शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने वालीं आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की सेवा 1975 से शुरू की गई। मथुरा समेत पूरे प्रदेश में लाखों आंगनबाड़ी कार्यकत्री अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां भी हैं, जिनका समाधान होना बहुत जरूरी है। उनका वेतन कम है लेकिन उनका कार्य कम महत्वपूर्ण नहीं है। कम वेतन पर भी पूरी मेहनत के साथ काम करती हैं। महंगाई के दौर में उन्हें अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण में कठिनाई होती है, लेकिन वो अपने कार्य में कोताई नहीं बरतती हैं। कई बार समय पर वेतन न मिलने की समस्या से भी जूझती हैं।
वर्तमान में उनके सामने कई नई समस्याएं हैं। इनमें से सात समस्याएं ऐसी हैं, जो उनके सामने परेशानी उत्पन्न कर रही हैं। जिसको लेकर उन्होंने बीते दिनों डीएम कार्यालय पर प्रदर्शन कर एक ज्ञापन भी सौंपा था। ज्ञापन के माध्यम से उन्होंने कहा कि उन पर तेज स्पीड के इंटरनेट वाले मोबाइल नहीं हैं लेकिन डिजिटल कार्य को कहा जा रहा है, ऐसे में वे इस कार्य को कैसे कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों पर फोटो प्रमाणित ऑनलाइन डिजिटल कार्यों को जबरन थोपा जा रहा है। उनके पास उन्हें 5 जीबी पूर्ण क्षमता वाले मोबाइल उपलब्ध कराएं जाएं, उसके बाद सरकार ऑन लाइन कार्य करने की अपेक्षा करे। आंगनबाडियों को ईकेवाईसी से मुक्त कराया जाए। पुष्टाहार की धनराशि को लाभार्थी के सीधा खाते में दिया जाए। मोबाइल रिचार्ज का रुपया 3 वर्ष से नहीं मिला है, उसे दिलाया जाए। पीएलआई का रुपया एक वर्ष से नहीं प्राप्त हुआ है, उसे दिलाया जाए। आंगनबाड़ी केन्द्रों के भवनों का किराए का रुपया एक वर्ष से प्राप्त नहीं हुआ है, उसे दिलाया जाए और आंगनबाडी केन्द्रों के बच्चों को ग्रीष्मकालीन अवकाश प्राइमरी स्कूलों की तरह दिये जाने की मांग की। काम की स्थिति से मानसिक तनाव में हैं आंगनबाड़ी आंगनबाड़ियों ने मुख्य समस्या डिजिटल कार्यों को बताया। कहा कि आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को फोटो प्रमाणित ऑनलाइन डिजिटल कार्यों को जबरन थोप जाने की परेशानी झेलनी पड़ रही है। विभाग द्वारा धमकाए जाने से मानसिक तनाव है। डिजिटल कार्य के लिए उन पर 5जी के मोबाइल नहीं हैं। प्रशासन यह जानता है, इसके बावजूद ऑनलाइन कार्य करने का दबाव डाला जाता है। चेहरा प्रमाणीकरण की समस्या आंगनबाड़ियों के समक्ष लाभार्थियों का चेहरा प्रमाणीकरण भी समस्या है। बताया गया कि गर्भवती और जच्चा या धात्री महिलाएं जो लाभार्थी होती हैं, उनके चेहरा प्रमाणीकरण बहुत जरूरी हैं। अगर ऐसा ना किया जाए तो उनको पोषाहार नहीं मिल सकता। कई बार इन महिलाओं तक पोषाहार केवाईसी के कारण पहुंच नहीं पाता और इसकी शिकायत लोग ऑनलाइन पोर्टल पर कर देते हैं। अगर शिकायत की सुविधा लाभार्थियों के लिए है तो आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के लिए भी तो होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि चेहरा प्रमाणीकरण या केवाईसी के दौरान ओटीपी और लिंक लाभार्थी के मोबाइल पर जाता है, जिसके बाद आगे की प्रक्रिया की जाती है। लेकिन आजकल ऑनलाइन फ्रॉड की समस्याएं बढ़ गई हैं, साइबर अपराधी खुद को आंगनबाड़ी कार्यकत्री बताकर ओटीपी और लिंक भेजते हैं, जिसके बाद लोगों के खातों से पैसे साफ हो जाते हैं। आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के सामने पहले से ही बड़ी-बड़ी समस्याएं थीं, लेकिन ऑनलाइन कार्य आने से उनके सामने सीखने, समझने, करने की समस्या के साथ पर्याप्त संसाधनों का अभाव भी परेशानियां पैदा कर रहा है। -अंजना शर्मा आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के लिए भी शिकायत करने की सुविधा मिली चाहिए। हम आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों का योगदान गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। -सरिता चौधरी ग्रामीण क्षेत्रों में लाभार्थियों का ऑनलाइन सत्यापन, ई-केवाईसी, पोषण ट्रेकर फीडिंग आदि कार्य आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के लिए कठिन बन गए हैं। कहीं नेटवर्क तो कहीं ग्रामीणों को समझा पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। -ललिता न्यूनतम मानदेय में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों से सरकार भारी काम ले रही है। इसके अलावा उन्हें शिक्षा, स्वास्थ, पंचायतीराज आदि विभाग के भी तमाम कार्य सौंप दिए जाते हैं। उन्हें विभिन्न अभियानों में जिम्मेदारी भी सौंप दी जाती है। -ऊषा देवी आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की मांगों पर कभी कोई ध्यान नहीं देता है। कई बार प्रशासन को ज्ञापन दिया है, लेकिन आज तक उनका समाधान नहीं हुआ है। गत दिनों भी जिलाधिकारी को सात सूत्रीय मांगपत्र दिया था। इस पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई है। -रश्मि चौधरी आंगनबाड़ियों के सामने कई चुनौतियां आती हैं। कई समस्याएं भी आती हैं, लेकिन उनका समाधान नहीं हो पाता है। सरकार को और प्रशासन को इस और ध्यान देना चाहिए। -अर्चना किराए के भवनों में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों को पिछले एक वर्ष से किराए का रुपया भी प्राप्त नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में भवन स्वामियों के दबाब में कार्य किया जाना परेशानी भरा रहता है। सरकार को जल्द ही किराए का भुगतान करना चाहिए। -सुंदरी आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को एक वर्ष से पीएलआई का रुपया प्राप्त नहीं हुआ है। इसके कारण उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। सरकार को उनके पीएलआई सहित अन्य बकाये के पैसे का अविलंब भुगतान कराया जाना चाहिए। -सुधा आंगनबाड़ियों के सामने ई-केवाईसी की समस्या बड़ी चुनौती बन गई है। इसमें ग्रामीण महिलाओं के आधार से लिंक मोबाइल नंबर और उस पर जाने वाले ओटीपी महिलाएं आसानी से बताती नहीं हैं। उन्हें इससे मुक्त कर दिया जाए। -प्रीति डीएम द्वारा सरकार को ज्ञापन देकर लाभार्थियों के पुष्टाहार की धनराशि सीधे लाभार्थी के खाते में भेजने की मांग की थी। इससे आंगनबाड़ियों की बड़ी परेशानी कम होगी। वहीं पैसा वितरण में पारदर्शिता हो जाएगी। -हेमवती अगर सरकार आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों से ऑनलाइन कार्य करने की अपेक्षा कर रही है तो सरकार को उन्हें 5जी सिम सपोर्ट करने वाले मोबाइल फोन उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इससे कार्य को ठीक और आसानी से कर पाएंगी। -कमलेश शर्मा
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