बोले मिर्जापुर : पार्किंग की सुविधा नहीं और अतिक्रमण का भी दर्द
Mirzapur News - बरियाघाट मोहल्ला, जो कभी व्यापार का केंद्र था, अब गंदगी और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है। निवासी सफाई, सीवर, और बिजली की समस्याओं के बारे में शिकायत कर रहे हैं। यहां के घाट पर गंदगी फैली हुई...

शहर की पुरानी बसावटों में शुमार ‘बरियाघाट मोहल्ले का अपना इतिहास है। अंग्रेजी शासन में गंगा के जरिए कोलकाता से आने वाले व्यापारिक जहाज यहीं रुकते थे। यहीं से मिर्जापुर की आर्थिक नब्ज चलती थी, लेकिन आज यहां के लोग रोजमर्रा की सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। मोहल्ला कभी नगर का प्रवेश द्वार हुआ करता था, अब बदहाली के द्वार पर खड़ा है। साफ-सफाई, सीवर, रोशनी, सड़क जैसी सुविधाएं मोहल्लावासियों के लिए सपना हो गई हैं। निवासी कहते हैं कि इन सुविधाएं के न होने से मोहल्ले ने अपनी पहचान खो दी है। बरियाघाट को कभी ‘बरीर घाट यानी झाड़ियों वाला घाट कहा जाता था।
यह वह मोहल्ला है, जहां ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रमुख अधिकारी लॉर्ड मार्कक्वेस वेलेस्ले ने व्यापार की दृष्टि से गंगा किनारे पुनर्गठन कराया था। यहीं से शहर के पहले बाजार ‘वेलेस्लेगंज की नींव पड़ी। नगर के कोटघाट से कपास और कसरहट्टी से पीतल के बर्तन जहाजों से कोलकाता भेजे जाते थे। कोलकाता से पीतल के बर्तन और कपास आदि लंदन के साथ ही अन्य पश्चिमी देशों को ईस्ट इंडिया कंपनी निर्यात करती थी। यह इलाका रामबाग, घंटाघर और रैदानी कॉलोनी जैसे मोहल्लों के बीच बसा है, जो मिर्जापुर के सबसे पुराने और प्रमुख मोहल्लों में गिने जाते हैं। अब यही इलाका गंदगी, अतिक्रमण, सीवर का उल्टा बहाव और टूटी-फूटी सड़कों से जूझ रहा है। नगर पालिका की अनदेखी का शिकार है। नगर के बरियाघाट स्थित श्रीपंचमुख महादेव मंदिर पर 'हिन्दुस्तान' से चर्चा में मोहल्लेवासियों ने समस्याएं गिनाईं और अधिकारियों से समाधान की गुहार लगाई। विपिन कुमार ने बताया कि सफाई की स्थिति यह है कि झाड़ू सिर्फ एक बार सुबह लगती है, दिन भर कूड़ा सड़कों पर फैला रहता है। नाली चोक है, गंदगी से बच्चे बीमार पड़ते हैं। महिलाएं सुबह-सुबह घर से बाहर निकलना भी नहीं चाहती। विनोद कुमार कसेरा ने कहा कि मोहल्ले में गंदगी और नालियों की स्थिति को लेकर शिकायत आम है। गर्मी और बरसात में हालत और बिगड़ जाती है। नालियां दोनों तरफ चोक हैं। इससे पानी बहने की जगह घरों के दरवाजों तक लौट आता है। बारिश में जलजमाव से लोगों को दिक्कतें होती हैं। मोहल्ले में साफ-सफाई की कोई निगरानी नहीं होती। स्ट्रीट लाइटें भी खराब: मोहल्ले में स्ट्रीट लाइटें जरूर लगी हैं, लेकिन उनमें से कई खराब हैं। रात होते ही मोहल्ले के कई हिस्से अंधेरे में डूब जाते हैं। चोरी और छेड़खानी जैसी घटनाओं का डर बना रहता है। नगर का महत्वपूर्ण मोहल्ला होने के बावजूद छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान नहीं किया जा रहा है। बरियाघाट में पंचमुखी महादेव का मंदिर है। मंदिर में दर्शन पूजन के लिए भोर में चार बजे से ही लोगों का आना जाना शुरू हो जाता है, रात ग्यारह बजे तक लोग दर्शन पूजन करते हैं। फिर भी स्ट्रीट लाइटें दुरुस्त नहीं कराई जा रही हैं। राकेश कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि बिजली विभाग और नगर पालिका के बीच समन्वय न होने से स्ट्रीट लाइटों का कनेक्शन नहीं किया जा रहा है। इससे दिक्कतें हो रही है। इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। असुविधाओं से जूझ रहे: मोहल्ले में मंदिर, स्कूल, दुकानें, अस्पताल, शिक्षा विभाग का दफ्तर है। एक कालीन कंपनी का कार्यालय और गोदाम भी है, लेकिन इन स्थानों तक पहुंचना मुश्किल होता है। सुबह 10 से शाम पांच बजे तक बरियाघाट मार्ग पर जाम लगा रहता है। निजी अस्पतालों में आने वाले मरीजों के तीमारदार अपने वाहनों को सड़क की पटरी पर खड़ा कर देते हैं। कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि हर दिन असुविधाओं से जूझना पड़ता है। यहां सब कुछ है, पर व्यवस्था नहीं है। प्रस्तुति: कमलेश्वर शरण/ गिरजा शंकर मिश्र सूझाव और शिकायतें 1. सुबह-शाम नियमित सफाई के साथ कूड़ा संग्रहण की मॉनिटरिंग हो। सफाईकर्मियों की उपस्थिति के लिए निगरानी तंत्र बनाया जाए। 2. अधूरी सीवर परियोजना की उच्च स्तरीय जांच हो, पाइप की ढलान सुधारकर जलनिकासी की उचित व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। 3. पूरे मोहल्ले की गली-नक्शे का सर्वे कर समतलीकरण और पक्की सड़क का निर्माण एक साथ किया जाए, टुकड़ों में नहीं। 4. सभी लाइटों की कार्यक्षमता की जांच हो। नगर पालिका और बिजली विभाग समन्वय स्थापित कर नियमित मेंटेनेंस की व्यवस्था करे। 5. मोहल्ले में चिह्नित स्थानों से अतिक्रमण हटाकर सामुदायिक पार्किंग योजना लागू की जाए, जिससे राहगीरों को राहत मिल सके। 1. मोहल्ले में सिर्फ एक बार झाड़ू लगती है, उसके बाद पूरे दिन कूड़ा फैला रहता है। नालियां जाम हैं और दुर्गंध से लोग परेशान हैं। 2. हाल ही में डाली गई सीवर लाइन की ढलान में गड़बड़ी है। परिणाम, गंदा पानी उल्टा बह रहा है और कई जगह काम अधूरा है। 3. गलियों में गड्ढे और ऊबड़-खाबड़ सड़कें हैं। इनसे दोपहिया वाहन चालकों और पैदल चलने वालों को जोखिम बना रहता है। 4. मोहल्ले की कई स्ट्रीट लाइटें खराब हैं। इससे रात में अंधेरा रहता है और असामाजिक गतिविधियों का खतरा बढ़ जाता है। 5. सार्वजनिक रास्तों पर ठेले, दुकानें और निजी निर्माण सामग्री से अतिक्रमण हैं। आपात स्थिति में वाहन निकालना कठिन हो जाता है। पार्किंग की व्यवस्था भी नहीं है। अतिक्रमण का दंश, पार्किंग की व्यवस्था नहीं मोहल्ले में अतिक्रमण बड़ी समस्या है। दुकानें, ठेले और निजी निर्माण सामग्री को सार्वजनिक स्थानों पर रख देने से दिक्कतें हो रही हैं। सड़कें संकरी हो गई है। राहगीरों को परेशानी होती है। मोहल्ले में कभी अतिक्रमण विरोधी अभियान नहीं चलाया जाता है। यही वजह है कि सड़क की पटरियों पर ठेले वालों का कब्जा हो गया है। पार्किंग के लिए कोई स्थान निर्धारित नहीं है। विभिन्न संस्थानों और चिकित्सालयों में आने वाले लोग अपना वाहन सड़क की किसी भी तरफ पटरी पर खड़ा कर देते हैं। इससे अक्सर जाम लग जाता है। जाम में फंसे लोगों को गंतव्य तक पहुंचने में विलंब होता है। पास में ही वासलीगंज चौकी है, लेकिन पुलिस कर्मी इस समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। दिलीप कुमार पांडेय ने कहा कि अगर कोई दुर्घटना हो जाए तब इस मार्ग से निकलना मुश्किल हो जाता है। किसी को अस्पताल ले जाना हो तब गली से वाहन निकालना मुश्किल हो जाता है। विनोद कुमार कसेरा ने बताया कि गलियों की हालत इतनी खराब है कि दोपहिया वाहन भी संभल कर चलाना पड़ता है। ऊंची-नीची सड़कों से दुर्घटना की आशंका रहती है। मोहल्ले की हर गली ऊबड़-खाबड़ है। इन पर पैदल चलना मुश्किल है। डीएम के आए दिन निर्देश जारी करने के बाद भी टूटी सड़कों की मरम्मत नहीं कराई जा रही है। न पार्क और न खेल का मैदान मोहल्ले में न कोई पार्क है, न खेल का मैदान। बच्चे गलियों में ही क्रिकेट खेलते हैं और महिलाएं कभी किसी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठती हैं, कभी घरों में सिमटी रहती हैं। विवेक सिंह राजपूत ने कहा कि बच्चों के खेलने की कोई जगह नहीं है। बच्चों को मजबूरन देर शाम जब सड़क पर आवागमन कम हो जाता है तब वे बैटबाॅल लेकर घर से निकलते हैं। छुट्टियों में पूरे दिन घर में बैठने को बच्चे विवश हैं। मोहल्ले में कहीं थोड़ी सी जमीन ढूंढ़कर पार्क बनवा दिया जाए तब काफी राहत मिल जाएगी। बच्चों की सेहत में भी सुधार होगा। महिलाओं को बैठने और बातचीत करने के लिए जगह मिल जाएगी। घाट पर हमेशा रहती है गंदगी डाॅ. अरुण सिंह ने कहा कि बरियाघाट पर गंगा स्नान के लिए चार बजे भोर से ही लोगों की भीड़ जुट जाती है। इसके बावजूद घाट की बेहतर साफ-सफाई नहीं कराई जाती है। आम दिनों में घाट पर झाड़ू भी नहीं लगवाई जाती। गंदगी के बीच गंगा स्नान करने के लिए लोग विवश हैं। बरियाघाट से चंद कदम की दूरी पर नगर पालिका के सफाई कर्मी नगर का कूड़ा घाट के किनारे फेंक देते हैं। इससे गंगा भी मैली हो रही है। नगर क्षेत्र से इकट्ठा की गई पाॅलिथिन घाट के किनारे फेंक देनेे से हवा चलने पर गंगा में पहुंच जा रही है। नए सीवर सिस्टम का नहीं मिला लाभ रवींद्र कुमार गुप्ता ने कहा कि बरियाघाट में कुछ महीने पहले सीवर लाइन बिछाई गई। उम्मीद थी कि इससे जलनिकासी की दशा सुधरेगी, लेकिन हुआ उल्टा। गलियों में गड्ढे खोद दिए गए और ढंग से ढलान न होने से सीवर का पानी उल्टा बहने लगा। पानी वापस घरों की तरफ लौट रहा है। सोचिए! शौचालय से गंदा पानी घरों में घुस जाए तब क्या हालत होगी। कहा कि अभी सीवर डालने का काम भी अधूरा है। जगह-जगह खोदकर गड्ढे छोड़ दिए गए हैं। कई जगह पाइप बाहर निकली है। इससे आए दिन दुघर्टनाएं होती रहती हैं, इसके बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों ने इसे दुरुस्त कराना उचित नहीं समझा। नगर पालिका प्रशासन पूरी तरह इस मामले में बेखबर है। इसकी शिकायत करने के बावजूद निगरानी नहीं कराई जा रही है। जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
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