Allahabad High Court Denies Intervention in Suspension of Kushinagar DPO Over Sexual Harassment Allegations यौन उत्पीड़न के आरोपी डीपीओ के निलंबन आदेश में हस्तक्षेप से इनकार, Prayagraj Hindi News - Hindustan
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यौन उत्पीड़न के आरोपी डीपीओ के निलंबन आदेश में हस्तक्षेप से इनकार

Prayagraj News - इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुशीनगर के जिला कार्यक्रम अधिकारी शैलेंद्र कुमार राय के निलंबन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। राय को यौन उत्पीड़न के आरोप में निलंबित किया गया है। कोर्ट ने उन्हें चार...

Newswrap हिन्दुस्तान, प्रयागराजSat, 7 June 2025 02:48 AM
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यौन उत्पीड़न के आरोपी डीपीओ के निलंबन आदेश में हस्तक्षेप से इनकार

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुशीनगर के जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) शैलेंद्र कुमार राय के निलंबन में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। राय को यौन उत्पीड़न के आरोप में निलंबित किया गया है। कोर्ट ने राय को चार सप्ताह के भीतर सक्षम अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दाखिल करने का निर्देश दिया है। साथ ही प्राधिकरण को दो महीने के भीतर तर्कसंगत और लिखित आदेश पारित करने को कहा गया है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने दिया है। डीपीओ ने याचिका दायर कर अपने निलंबन आदेश को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया कि महिला कर्मचारी के बयान कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा में नहीं आते।

आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) का गठन विधि के अनुसार नहीं हुआ। विस्तृत जांच प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और उन्हें न तो शिकायतकर्ता से जिरह का अवसर मिला, न ही रिपोर्ट की प्रति दी गई। आईसीसी की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि डीपीओ ने एक महिला कर्मचारी को उसके शरीर को लेकर मोटा कहा, कई बार सैर का प्रस्ताव दिया और स्कूटी पर सैर की बात की। ये टिप्पणियां और व्यवहार पीड़िता के लिए असहज व अपमानजनक थे। पीड़िता ने समिति के समक्ष अपने बयान में इन घटनाओं की पुष्टि की। याची के वकील ने दलील दी कि आईसीसी का गठन अधिनियम, 2013 की धारा 4 के अनुरूप नहीं किया गया क्योंकि इसमें कोई एनजीओ सदस्य या यौन उत्पीड़न मामलों में प्रशिक्षित विशेषज्ञ नहीं था। इसके अलावा, उ उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन और अपील) नियम, 1999 के तहत विस्तृत जांच प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ। प्रतिवादी पक्ष की ओर से अधिवक्ता ने दलील कि याची की टिप्पणियां बॉडी शेमिंग के अंतर्गत आती हैं, जो यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आ सकती हैं। उन्होंने कहा कि यदि याची को जिरह करनी थी तो उन्हें समिति को इसके लिए आवेदन देना चाहिए था। साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि जांच रिपोर्ट की प्रति याचिकाकर्ता को प्रदान की गई थी। कोर्ट ने कहा कि बॉडी शेमिंग समाज में अस्वीकार्य है और कहा कि वह यह निर्णय नहीं देगा कि आरोपित आचरण यौन उत्पीड़न है या नहीं, क्योंकि यह मामला अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष विचाराधीन रहेगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निलंबन कोई दंड नहीं, बल्कि जांच की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए एक प्रशासनिक उपाय है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अपील के निर्णय तक आईसीसी की सिफारिशों के आधार पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी और राय को नियमित निर्वाह भत्ता मिलता रहेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा और विश्वास बनाए रखने के लिए ऐसे मामलों में त्वरित और न्यायसंगत प्रक्रिया ज़रूरी है।

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