Sitapur Temple built by husband in memory of wife is popular among loving couples यूपी के इस जिले में है अनूठा मंदिर, साथ जीने-मरने की कसमें खाने आते हैं प्रेमी जोड़े, Uttar-pradesh Hindi News - Hindustan
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यूपी के इस जिले में है अनूठा मंदिर, साथ जीने-मरने की कसमें खाने आते हैं प्रेमी जोड़े

सीतापुर के इस मंदिर का निर्माण रिटायर्ड फौजी रामेश्वर दयाल मिश्रा ने अपनी पत्नी आशा देवी की याद में करवाया था।

Ritesh Verma राजीव गुप्ता, सीतापुरMon, 5 May 2025 07:52 PM
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यूपी के इस जिले में है अनूठा मंदिर, साथ जीने-मरने की कसमें खाने आते हैं प्रेमी जोड़े

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक ऐसा मंदिर है, जहां प्रेमी युगल दूर-दूर से आते हैं। साथ जीने और मरने की कसमें खाते हैं। मोहब्बत की निशानी के रूप में यह मंदिर एक फौजी ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था। मंदिर जिले के पिसावां ब्लॉक के फरीदपुर गांव में है, जहां आज भी इस अमर प्रेम की कहानी गूंजती हैं। एक ऐसी प्रेम कहानी, जो शाहजहां और मुमताज की याद दिलाती है।

कहानी है भारतीय सेना के जवान रहे रामेश्वर दयाल मिश्रा की। उन्होंने पत्नी आशा देवी की याद में मिसाल पेश करने वाला अनोखा और भव्य मंदिर बनवाया है। फरीदपुर गांव के निवासी रामेश्वर दयाल मिश्र की शादी 1957 में आशा देवी के साथ हुई थी। वो अपनी पत्नी आशा देवी से बेपनाह मोहब्बत करते थे। दोनों का प्रेम इतना गहरा था कि लोग उनकी मिसाल दिया करते थे। 1967 में रामेश्वर सेना में भर्ती हुए। 2007 में 30 जनवरी को आशा देवी का निधन हो गया। पत्नी के निधन ने मिश्रा को अंदर से तोड़ दिया। जीवन पर्यंत पत्नी की एक फोटो साथ लेकर चलते रहे।

जब भी मिश्र कार से कहीं जाते तो खुद ड्राइव करते और पास वाली सीट पर किसी को बैठने नहीं देते थे। इस सीट पर हमेशा पत्नी की फोटो रखते थे। सेना में रहते हुए मिश्रा नियमित रूप से आशा को पत्र लिखते थे। पत्नी के निधन के एक साल बाद ही 2008 में मिश्रा ने गांव के बाहर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर में देवी-देवताओं के साथ आशा देवी की तीन मूर्तियां भी स्थापित कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा कराई। मंदिर में हर दीवार पर आशा देवी की तस्वीर टंगी हुई है। दो तस्वीरें ऐसी भी हैं, जिसमें आशा और मिश्रा साथ हैं।

2012 में रामेश्वर दयाल मिश्रा की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी लेकिन उनकी प्रेम कहानी आज भी जीवंत है। प्रेमी जोड़े मंदिर में आकर अपनी मोहब्बत की कसमें खाते हैं, साथ जीने-मरने के वादे करते हैं। मिश्रा के तीन बेटे हैं। एक डॉक्टर है, जबकि दो बेटे फौज में हैं। मिश्रा के निधन के बाद मंदिर उपेक्षा का शिकार हो गया है। मिश्रा के जीवनकाल में मंदिर में साफ-सफाई और पूजा-पाठ होता था। अब मूर्तियों को भी सफाई की दरकार है।