The Unsung Heroes of Cleanliness Challenges Faced by Sanitation Workers in Sitapur बोले सीतापुर-संसाधन और कर्मचारी मिले तो बन जाए बात, Sitapur Hindi News - Hindustan
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बोले सीतापुर-संसाधन और कर्मचारी मिले तो बन जाए बात

Sitapur News - सीतापुर में सफाईकर्मियों की समस्याएं गंभीर हैं। शहर की बढ़ती आबादी के साथ सफाईकर्मियों की संख्या कम है, जिससे स्वच्छता प्रभावित हो रही है। सुरक्षा उपकरणों की कमी और सामाजिक उपेक्षा का सामना करना पड़...

Newswrap हिन्दुस्तान, सीतापुरMon, 16 June 2025 04:30 PM
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बोले सीतापुर-संसाधन और कर्मचारी मिले तो बन जाए बात

सीतापुर। शहर को एक स्वच्छ और स्वस्थ शहर बनाने के लिए सफाईकर्मियों का योगदान अमूल्य है। उनकी समस्याओं को अनदेखा करना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि पूरे शहर के स्वास्थ्य और सेहत के लिए भी नुकसानदेह है। शहर के 30 वार्डों की करीब चार लाख की आबादी को साफ सुथरा माहौल देने की जिम्मेदारी इन्हीं सफाईकर्मियों के कंधों पर है। आज हर सामाजिक और राजनैतिक मंचों से इन सफाईकर्मियों के योगदान की चर्चा आम है। बावजूद इसके जिले इन गुमनाम नायकों के सामने समस्याओं का अंबार है। जिससे न केवल उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा और स्वास्थ्य खतरे में है, बल्कि पूरे शहर की स्वच्छता भी दांव पर लगी है।

जरूरत से कम कर्मचारियों, सुरक्षा उपकरणों की कमी और सामाजिक उपेक्षा जैसी कई समस्याएं उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गई हैं। सही मायनों में एक स्वच्छ शहर का सपना तभी साकार हो सकता है, जब उसे साफ रखने वाले हाथों को पर्याप्त सहारा और सम्मान मिले। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने शहर का साफ रखने के काम में आने वाली दुश्वारियों को लेकर चर्चा की, तो उन्होंने काम के दौरान आने वाली दिक्कतों पर खुलकर बात की। शहर की आबादी लगातार बढ़ रही है, लेकिन सफाईकर्मियों की संख्या उस अनुपात में कम है।आंकड़ों के अनुसार, सीतापुर शहर में सफाईकर्मियों की जो संख्या निर्धारित है, वास्तविक रूप में उससे कहीं कम कर्मचारी कार्यरत हैं। इस कमी का सीधा असर शहर की स्वच्छता पर पड़ता है। सफाईकर्मियों की कमी के बावजूद ये सफाईकर्मी पूरे शहर की सफाई का बोझ अपने कंधों पर उठाए हुए हैं। ऐसे में हर सड़क, गली-मोहल्ले और सार्वजनिक स्थान की नियमित और सफाई ठीक ढंग से संभव नहीं हो पाती। सफाईकर्मियों को अक्सर एक ही दिन में कई इलाकों की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। सुबह से शाम तक, वे एक जगह से दूसरी जगह दौड़ते रहते हैं, लेकिन काम इतना ज्यादा होता है कि वे किसी भी क्षेत्र को पूरी तरह से साफ नहीं कर पाते। उन्हें कचरा इकट्ठा करना होता है, नालियों की सफाई करनी होती है, सड़कों को साफ करना होता है, और यह सब कुछ बिना पर्याप्त विश्राम के करना पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है कि कहीं-कहीं कूड़े के ढेर लगे रहते हैं, नालियां जाम पड़ी रहती हैं, और सड़कों पर गंदगी पसरी रहती है। त्योहारों और विशेष आयोजनों के दौरान, जब शहर में गंदगी का स्तर बढ़ जाता है, तब इन कर्मियों पर दबाव और भी अधिक बढ़ जाता है। सुरक्षा उपकरणों की कमी सफाई कर्मचारियों को शारीरिक चुनौतियों से भी बढ़कर, सुरक्षा उपकरणों की कमी एक और गंभीर समस्या है। अधिकांश सफाईकर्मियों को बिना दस्तानों, मास्क, जूते और बाडी सूट के काम करना पड़ता है। वे सीधे कचरे के संपर्क में आते हैं, जिसमें नुकीली वस्तुएं, कांच के टुकड़े, मेडिकल वेस्ट और हानिकारक रसायन हो सकते हैं। इन खतरों के बावजूद, उन्हें नंगे हाथों से काम करने को मजबूर होना पड़ता है। इससे उन्हें स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से भी जूझना पड़ता है। साथ ही अन्य बीमारियों का भी खतरा रहता है। नालियों की सफाई करते समय, उन्हें अक्सर बदबूदार और दूषित पानी में उतरना पड़ता है। इसके अलावा बिना मास्क के काम करने से धूल, धुआं, और कचरे के कण सीधे उनके फेफड़ों में जाते हैं। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि इनको समय समय पर उपकरण दे दिए जाते हैं लेकिन यह लोग उनका उपयोग नहीं करते हैं। उपेक्षा और भेदभाव का शिकार इन भौतिक खतरों के अलावा सफाईकर्मियों को सामाजिक उपेक्षा और भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है। हमारे समाज में उनके काम को अक्सर हीन दृष्टि से देखा जाता है, जबकि सच्चाई यह है कि वे हमारे शहर को रहने लायक बनाने में ये अहम भूमिका निभाते हैं। वह कहते हैं कि उन्हें अक्सर अछूत माना जाता है, जिससे उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती है। इस सामाजिक व्यवहार के कारण वे अक्सर अपनी समस्याओं को खुलकर साझा करने से हिचकिचाते हैं। वे अपनी आवाज नहीं उठा पाते, क्योंकि उन्हें डर होता है कि ऐसा करने से उनकी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी या उन्हें अन्य प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ेगा। वे एक तरह से दोहरी मार झेल रहे हैं। एक तरफ काम का अत्यधिक बोझ और सुरक्षा की कमी, और दूसरी तरफ समाज की उपेक्षा। ठेके पर हो रहा काम शहर की अधिकांश सफाई व्यवस्था ठेकाकर्मी संभालते हैं, जिनकी नौकरी की सुरक्षा और भी कम हो जाती है। उन्हें नियमित वेतन, अवकाश, स्वास्थ्य सुविधाएं और पीएफ जैसी सुविधाएं नहीं मिलतीं, जो स्थायी कर्मचारियों को मिलती हैं। उन्हें अक्सर न्यूनतम मजदूरी से भी कम भुगतान मिलता है, और कई बार तो उनका वेतन भी समय पर नहीं मिलता। इस आर्थिक असुरक्षा के कारण उन्हें अपने परिवारों का भरण-पोषण करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उनके बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी इसका सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, आधुनिक उपकरणों की कमी भी उनकी समस्याओं को बढ़ाती है। आज भी कई जगहों पर सफाईकर्मी पारंपरिक तरीकों से ही काम कर रहे हैं। उनके पास आधुनिक और सुरक्षित उपकरण नहीं हैं, जिससे उनका काम और भी मुश्किल हो जाता है। वह बताते हैं कि अपने हक की आवाज उठाने पर तत्काल उनको नौकरी से हटाने की धमकी दी जाती है। बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नही जिले में सफाई कर्मियों को बुनियादी जरूरतों के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। उनके लिए विश्राम गृह, स्वच्छ पेयजल, और शौचालयों जैसी बुनियादी सुविधाओं की भी कमी होती है। बताते हैं कि उन्हें अक्सर खुले में ही भोजन करना पड़ता है और अपनी जरूरतों को पूरा करना पड़ता है। जिससे उनकी गरिमा और स्वास्थ्य दोनों पर असर पड़ता है। बताते हैं कि इसके अलावा सफाईकर्मियों को किसी भी तरह की स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। तमाम सफाईकर्मी अपने और अपने परिवार के लिए निजी संसाधनों पर निर्भर हैं। सफाई कर्मियों का कहना है कि कार्यस्थल पर किसी प्रकार की शिकायत निवारण प्रणाली का अभाव या उसका अप्रभावी होना भी एक बड़ी समस्या है। इसके अलाव ना ज्यादा तो कम से कम आयुष्मान योजना से ही जोड़ा जाए। जिससे इलाज को लेकर चिंताएं कुछ कम हों। इसके अलावा समय समय पर उनके स्वास्थ्य की जांच कराई जाए। शिकायतें समय से वेतन दिया जाए और हर साल वेतन बढ़ाया जाए। प्रतिदिन सफाईकर्मियों को अलग मास्क और दस्ताने नहीं दिए जाते। कचरा निस्तारण के लिए कभी अलग से प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। शहर के वार्ड और आबादी के अनुपात में सफाईकर्मियों की संख्या कम है। सफाईकर्मियों की कभी स्वास्थ्य की जांच नहीं कराई जाती है। सुझाव शहर की बढ़ती आबादी और कचरे की मात्रा के अनुपात में कर्मचारियों बढ़ाए जाएं। सफाई कर्मियों को जरूरी सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराए जाएं। कचरे के प्रबंधन और आधुनिक उपकरणों का उपयोग को लेकर प्रशिक्षित किया जाए। नियमित स्वास्थ्य जांच और स्वास्थ् सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। सामाजिक जागरूकता अभियान चलाए जाएं ताकि समाज में सफाईकर्मियों के प्रति सम्मान की भावना बढ़े। शिकायत निवारण प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए। प्रस्तुति - अविनाश दीक्षित

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