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शांति चाहिए तो क्षमा करना सीखें

हमारा अस्तित्व इस बात पर निर्भर करता है कि हम यह समझें और महसूस करें कि हम सब एक परिवार हैं, तभी इस दुनिया में शांति आ सकती है। यह शांति आएगी कैसे? शांति की ओर पहला कदम क्षमा है।

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, संत राजिंदर सिंहTue, 3 June 2025 08:03 AM
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शांति चाहिए तो क्षमा करना सीखें

शांति चाहिए तो क्षमा करना सीखें: शांति सभी चाहते हैं, लेकिन इसे पाना आसान नहीं है। इसे पाने के लिए हमें दूसरों को क्षमा करना आना चाहिए। क्षमा से करुणा आती है और करुणा से शांति।

इस मुश्किल समय में हमें मानवता, शांति और भाई-चारे की बहुत जरूरत है। हमारा अस्तित्व इस बात पर निर्भर करता है कि हम यह समझें और महसूस करें कि हम सब एक परिवार हैं, तभी इस दुनिया में शांति आ सकती है। यह शांति आएगी कैसे? शांति की ओर पहला कदम क्षमा है। अगर हमें अपनी दुनिया में शांति का अहसास करना है, तो हमें अतीत को भूलना सीखना होगा और उन लोगों को माफ करना होगा, जिन्होंने हमारे साथ गलत किया है।

हमें बदला लेने की भावना को क्षमा और करुणा से बदलना चाहिए। हमें क्रोध और घृणा से खुद को शुद्ध करना चाहिए और उसकी जगह प्रेम और क्षमा को अपनाना चाहिए। हम इसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं? मैं आपको एक समाधान बताता हूं, जो सदियों से कारगर रहा है। अध्यात्म के माध्यम से हमें करुणा, क्षमा और शांति मिल सकती है।

हमारा असली स्वरूप हमारी आत्मा है। यह मान्यता है कि हमारी आत्मा ईश्वर के साथ एक है। हमें यह अहसास होना जरूरी है कि हम केवल शरीर और मन नहीं हैं, बल्कि एक आत्मा हैं, जो हमारे शरीर में निवास करती है। हम खुद को एक शरीर के रूप में सोच सकते हैं, जिसका कोई नाम है या हम किसी खास देश के नागरिक हैं। लेकिन हमें यह पहचानना है कि इन बाहरी नामों और बाहरी लेबलों के पीछे हम सभी आत्माएं हैं, एक ही सृष्टिकर्ता का हिस्सा हैं।

इस प्रकार हम सभी एक परिवार के सदस्य हैं। जब हम इस दृष्टिकोण को विकसित करते हैं, तो हम उन बाधाओं को तोड़ना शुरू कर देते हैं, जो एक इनसान को दूसरे से अलग करती हैं। हम महसूस करने लगते हैं कि हम सभी आत्मा के स्तर पर जुड़े हुए हैं। जब हम अपनी एकता और जुड़ाव का अनुभव करते हैं, तो हम एक-दूसरे की परवाह करने लगते हैं। हम एक-दूसरे की मदद और सेवा करना चाहते हैं। हमारे पड़ोसी के बच्चों की भूखी चीखें हमें उतनी ही पीड़ा पहुंचाएंगी, जितनी हमारे अपने बच्चों की चीखें। हम सड़क पर बेघर आदमी को अपने बेघर दादा के रूप में देखेंगे और हम उसकी मदद करने के लिए प्रेरित होंगे। हमारी दृष्टि व्यापक होगी और हम सभी मनुष्यों की पीड़ा के प्रति करुणा रखेंगे और उनकी मदद करना चाहेंगे। जब हम किसी की मदद करते हैं तो हमारे भीतर करुणा उपजती है और यह करुणा हमें शांति देती है। हम इस महान दृष्टि को कैसे विकसित कर सकते हैं? हम आध्यात्मिक रूप से जाग्रत होकर ऐसा कर सकते हैं। हम ईश्वर के आंतरिक प्रकाश और ध्वनि पर ध्यान की सरल तकनीक के माध्यम से अपनी आध्यात्मिक प्रकृति के प्रति जाग्रत होते हैं। उलटने की यह प्रक्रिया हमें घृणा को धोने और उसकी जगह प्रेम और शांति लाने में मदद करती है। मौन में बैठकर और अपना ध्यान भीतर की ओर लगाकर, हम अपनी आत्मा से जुड़ते हैं, और अपने भीतर मौजूद प्रेम, शांति और आनंद को महसूस कर पाते हैं। ऐसा करके हम प्रेमपूर्ण, दयालु, शांत और उदार इनसान बन जाते हैं।

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