Ravi Pradosh Vrat Katha on 8 May 2025 read the story of Pradosh Katha in hindi shiv ji ki aarti of Lord Shiva 8 मई को रवि प्रदोष व्रत, पढ़ें प्रदोष व्रत की कथा और शिव जी की आरती, एस्ट्रोलॉजी न्यूज़ - Hindustan
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8 मई को रवि प्रदोष व्रत, पढ़ें प्रदोष व्रत की कथा और शिव जी की आरती

Pradosh Katha in hindi: इस साल 8 जून, 2025 के दिन रविवार को ज्येष्ठ माह के रवि प्रदोष का व्रत रखा जाएगा। रवि प्रदोष का व्रत बिना कथा सुनें ये कहे अधूरा माना जाता है। इसलिए जरूर पढें रवि प्रदोष की व्रत कथा-

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 7 June 2025 06:15 PM
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8 मई को रवि प्रदोष व्रत, पढ़ें प्रदोष व्रत की कथा और शिव जी की आरती

Pradosh Katha in hindi, 8 मई को रवि प्रदोष व्रत: 8 मई को ज्येष्ठ माह का दूसरा प्रदोष व्रत रखा जाएगा। रवि प्रदोष के दिन व्रत रखा हो या न रखा हो, इस दिन रवि प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करना अति पुण्यदायक माना जाता है। रविवार की शाम के समय शिव पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा। ऐसे में सुबह या शाम में रवि प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन रवि प्रदोष व्रत की कथा की पाठ करने से भगवान शिव जी की कृपा बनी रहती है।

पढ़ें प्रदोष व्रत की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई सहारा नहीं था। इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। वह खुद का और अपने पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आयी। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।

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एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए, वैसा ही किया गया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं।

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शिव जी की आरती

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ॐ जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव…॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ॐ जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥ ॐ जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय शिव…॥

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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