बोले कटिहार: कटिहार में जूता उद्योग की हो स्थापना तो बने उम्मीद की राह
कटिहार में मोची समाज की कहानी पीढ़ियों के संघर्ष और टूटती उम्मीदों की है। ये लोग गरीबी और समय की चुनौतियों से जूझते हुए अपने पारंपरिक हुनर को बचाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। नए अवसरों की तलाश में,...

बोले कटिहार: कटिहार में जूता उद्योग की हो स्थापना तो बने उम्मीद की राह
मोची समाज की परेशानी
प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, मोना कश्यप
हर सुबह जब शहर की रफ्तार तेज होती है, कटिहार के किसी कोने में एक मोची अपने झोले से औजार निकालता है-कभी पेड़ की छांव में, कभी रेलवे स्टेशन के किनारे। उसके हाथ पुराने जूते को नया जीवन देते हैं, पर उसका अपना जीवन समय और गरीबी के थपेड़ों से थका हुआ है। पीढ़ियों से चला आ रहा यह हुनर अब बोझ बनता जा रहा है। नई पीढ़ी इस विरासत से दूर भाग रही है। दिल कहता है-अगर इन्हें अवसर मिले, स्थायी दुकान हो, आधुनिक प्रशिक्षण मिले, तो शायद ये हाथ सिर्फ जूते नहीं, अपना भविष्य भी संवार सकें।
कटिहार के मोची समाज की कहानी सिर्फ एक पेशे की नहीं, बल्कि पीढ़ियों की तपस्या, संघर्ष और अब टूटती उम्मीदों की भी है। कुरसेला, समेली, फलका, कोढ़ा, बरारी, कदवा और मनसाही प्रखंडों में फैली इस बिरादरी की सुबह उस वक्त होती है, जब बाकी दुनिया नींद में होती है। पेड़ की छांव, सड़क किनारे या रेलवे प्लेटफॉर्म-जहां जगह मिली, वहीं ये अपना हुनर सजाकर बैठ जाते हैं।
इनके हाथों में हुनर है-घिसे हुए जूते को नया बनाने का, टूटी चप्पल को फिर से पहनने लायक करने का, बदरंग जूतों को चमकाने का। लेकिन इन मेहनतकश हाथों को आज तक वो पहचान और सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार हैं। सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी से भी कम आमदनी में गुजारा कर रहे ये लोग आज भी अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
लोगों ने सुनाया अपना दर्द
‘बोले कटिहार’ संवाद के दौरान जब इनकी बातों को सुना गया, तो उनमें छिपा दर्द आंखों से छलक पड़ा। कई बुजुर्गों ने बताया कि यह काम उन्होंने अपने बाप-दादाओं से सीखा है, और अब इसे मजबूरी में आगे ढो रहे हैं। आज का युवा इस पेशे को अपनाने में हिचकता है, क्योंकि इसमें ना तो इज्जत है, ना ही आमदनी। मजबूरी में कुछ नौजवान दिल्ली-पंजाब की ओर पलायन कर रहे हैं, तो कुछ शहरों के चौराहों और ट्रेनों में टूल-किट लेकर अपनी सेवा देने को मजबूर हैं। हालत ऐसी है कि परिवार पालने के लिए अब महिलाओं को भी इस मेहनत में कंधे से कंधा मिलाकर साथ देना पड़ रहा है। कुछ परिवार बैग मरम्मत और चेन लगाने का काम सीखकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन स्थायी दुकान और प्रशिक्षण की कमी उनके सपनों को उड़ान नहीं दे पा रही है।
आगे बढ़ने का मिलना चाहिए हक
मोची समाज ने साफ शब्दों में कहा कि हमें भी आगे बढ़ने का हक चाहिए। अगर जिले में जूता उद्योग की स्थापना हो और विश्वकर्मा योजना के तहत आधुनिक प्रशिक्षण मिले, तो हमारा जीवन बदल सकता है। महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। दर्द इस बात का भी है कि सरकारी योजनाएं कागजों तक सीमित हैं। उद्यमी योजना में शामिल होने के लिए जहां 60 हजार की आय होनी चाहिए, वहीं स्थानीय अंचल कार्यालय से एक लाख से अधिक की आय का प्रमाणपत्र बनाकर इन्हें योजना से बाहर कर दिया जाता है। नगर निगम से स्थायी दुकानें और आवास योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता। कटिहार का यह हुनरमंद समाज अब उम्मीद भरी नजरों से सरकार की ओर देख रहा है। अगर सही नीतियां और ईमानदार क्रियान्वयन हो, तो यह समाज न सिर्फ आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि जिले की आर्थिक तस्वीर भी बदल देगा। बस जरूरत है एक मजबूत कंधे की, जो इन जख्मों पर मरहम रख सके और सपनों को साकार कर सके।
200 रुपए से भी काम की आमदनी में जीवन यापन करने को है विवश
60 हजार रुपए सालाना आय उद्यमी योजना के लिए है निर्धारित
15 घंटे से अधिक काम करता है फिर भी आय पर्याप्त नहीं होती
सुझाव
1. जिले में जूता उद्योग की स्थापना की जाए ताकि मोची समाज को स्थायी रोजगार मिल सके।
2. विश्वकर्मा योजना के तहत जूता बनाने और मरम्मत का आधुनिक प्रशिक्षण दिया जाए।
3. नगर निगम द्वारा मोची समाज को स्थायी दुकानें आवंटित की जाएं।
4. मोची समाज की महिलाओं को भी हुनर आधारित प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जोड़ा जाए।
5. स्थानीय स्तर पर कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए ताकि इनकी लागत कम हो।
शिकायतें
1. सरकार की उद्यमी योजना में गलत आय प्रमाणपत्र बना दिए जाने से लाभ नहीं मिल पाता।
2. गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी सही समय पर नहीं मिलती।
3. स्थायी दुकान और शेड की सुविधा नहीं होने से खुले आसमान के नीचे काम करना पड़ता है।
4. डीजे और आधुनिक संगीत के चलते मृदंग बजाने वाले मोची समाज का परंपरागत काम खत्म हो रहा है।
5. रेलवे स्टेशन और सार्वजनिक स्थलों पर काम करने वालों को कोई पहचान पत्र या सुविधा नहीं मिलती।
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इनकी भी सुनें
सरकार हर बार वादे तो करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं होता। हम जैसे गरीब लोग अब उम्मीद करना छोड़ चुके हैं। न रोजगार है, न सुविधा। हमारे बच्चे भी बिना भविष्य के जी रहे हैं। बदलाव की जरूरत है।
गोविंद रविदास
हमारी बस्ती में अब भी सड़क और बिजली की व्यवस्था नहीं है। हर चुनाव में नेता आते हैं, वादे करते हैं, फिर भूल जाते हैं। गरीबी में जीवन काट रहे हैं। हमें भी सम्मान से जीने का अधिकार चाहिए।
दिनेश रविदास
गांव में शिक्षा की हालत बदतर है। बच्चों को अच्छी पढ़ाई नहीं मिलती। न किताब है, न शिक्षक आते हैं समय पर। सरकार को गरीबों की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए तभी भविष्य सुधरेगा।
राकेश रविदास
पिछले साल जो बाढ़ आई थी, उसमें हमारा घर बह गया। अभी तक मुआवजा नहीं मिला। अधिकारी सुनते नहीं। हम मजदूरी करके किसी तरह गुजर-बसर कर रहे हैं। कोई भी मदद को आगे नहीं आया।
सुबेल
सफाईकर्मियों के साथ समाज आज भी भेदभाव करता है। हम मेहनत करते हैं, फिर भी तिरस्कार झेलते हैं। समाज को सोच बदलनी होगी और सरकार को हमें अधिकार देने होंगे।
श्रवण रविदास
हमारे गांव में पीने के पानी की भारी किल्लत है। हैंडपंप खराब हैं, नल नहीं चलता। महिलाएं दूर-दूर से पानी लाती हैं। इस बुनियादी जरूरत पर ध्यान देना जरूरी है।
सुदामा रविदास
आज भी हमें अपने हक के लिए आवाज उठानी पड़ती है। आरक्षण की सुविधा सही तरीके से नहीं मिलती। अधिकारी सुनवाई नहीं करते। दलितों को आज भी बराबरी नहीं मिल पाई है।
इतवारी रविदास
मैंने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए कर्ज लिया, लेकिन नौकरी नहीं मिली। अब कर्ज चुकाना मुश्किल हो गया है। गरीबों के लिए कोई रास्ता नहीं बचा। बहुत दुख होता है।
अनमोल रविदास
हम अपने पुरखों की जमीन पर रहते हैं, लेकिन आज तक पक्का कागज नहीं मिला। खतियान में नाम नहीं होने से कई योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। सरकार को इसमें सुधार करना चाहिए।
सत्यानंद रविदास
दैनिक मजदूरी करके पेट पालते हैं, लेकिन दिहाड़ी भी समय पर नहीं मिलती। कोई शिकायत करो तो सुनवाई नहीं होती। लगता है गरीबों की जिंदगी बस संघर्ष है और कुछ नहीं।
अनिल रविदास
हमारे मोहल्ले में आज भी कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। इलाज के लिए दूर शहर जाना पड़ता है। कई बार पैसे के अभाव में लोग इलाज नहीं करवा पाते। स्वास्थ्य व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए।
गणेश रविदास
मैंने जिंदगीभर मेहनत की, पर अब बूढ़ा होकर इलाज के लिए भी सरकार की तरफ देखना पड़ता है। पेंशन नहीं मिलती। वृद्धों के लिए कोई सहारा नहीं बचा है।
मदन दास
सरकारी योजनाओं की घोषणा तो होती है, लेकिन लाभ गरीबों तक नहीं पहुंचता। बिचौलिये और अफसर ही सब खा जाते हैं। ईमानदारी से क्रियान्वयन हो, तभी कुछ बदलेगा।
राजेंद्र रविदास
हमारे युवाओं में प्रतिभा है, पर अवसर नहीं। कोई खेल का मैदान नहीं, न ही प्रशिक्षण की सुविधा। अगर सरकार ध्यान दे, तो हम भी खेलों में आगे बढ़ सकते हैं।
राजा रविदास
गांव में नाली, सड़क और बिजली की हालत खराब है। हर बार शिकायत करते हैं, लेकिन कोई अधिकारी नहीं आता। ऐसा लगता है जैसे हमें जानबूझकर उपेक्षित किया जा रहा है।
शंभू रविदास
हमने कभी नहीं सोचा था कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमें बराबरी नहीं मिलेगी। अब समय है कि समाज और सरकार दोनों मिलकर बदलाव की शुरुआत करें।
सौरभ रविदास
मैंने अपने जीवन में भेदभाव और गरीबी दोनों देखी है। लेकिन अब चाहता हूं कि हमारे बच्चे एक बेहतर जीवन जिएं। इसके लिए शिक्षा और रोजगार की सुविधा मिलनी चाहिए।
अशोक राम
हमारे जैसे लोग अगर बीमार हो जाएं तो अस्पताल तक पहुंचना मुश्किल होता है। न गाड़ी है, न एम्बुलेंस आती है। गांवों में स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करना जरूरी है।
धर्मेंद्र
जिम्मेदार
मोची समाज के उत्थान के लिए जिला उद्योग केंद्र पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है। विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना के तहत जूता मरम्मत एवं निर्माण कार्य से जुड़े लोगों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। साथ ही उन्हें टूलकिट भी प्रदान की जा रही है। उद्यमी योजना में आय प्रमाणपत्र से जुड़ी समस्याओं की जानकारी मिली है, इसे जिला प्रशासन के साथ समन्वय कर सुलझाया जाएगा। हम सभी पात्र कारीगरों को स्वरोजगार से जोड़ने हेतु प्रेरित कर रहे हैं। यदि मोची समाज की ओर से समुचित आवेदन आते हैं, तो स्थायी दुकान और ऋण सहायता पर भी गंभीरता से विचार किया जाएगा।
डा. सोनाली शीतल, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केन्द्र, कटिहार
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