Inspiring Journey of Baburam Singh A Father s Sacrifice for His Children s Dreams अभाव में रहकर भी दिलायी मुकाम: बाबूराम सिंह ने तीन बच्चों को बनाया डॉक्टर, Chapra Hindi News - Hindustan
Hindi NewsBihar NewsChapra NewsInspiring Journey of Baburam Singh A Father s Sacrifice for His Children s Dreams

अभाव में रहकर भी दिलायी मुकाम: बाबूराम सिंह ने तीन बच्चों को बनाया डॉक्टर

फादर्स डे के साथ लगायें कहानी संघर्ष, त्याग और समर्पण की एक जीवंत प्रेरणा है। खुद सीमित संसाधनों और आर्थिक तंगी के बीच जीवन गुजारते हुए भी उन्होंने अपने सपनों को अपने बच्चों के माध्यम से जीया - और...

Newswrap हिन्दुस्तान, छपराSat, 14 June 2025 10:57 PM
share Share
Follow Us on
अभाव में रहकर भी दिलायी मुकाम: बाबूराम सिंह ने तीन बच्चों को बनाया डॉक्टर

मढ़ौरा। एक संवाददाता मढ़ौरा के धेनुकी निवासी बाबूराम सिंह उन असाधारण पिता की मिसाल हैं जिनकी कहानी संघर्ष, त्याग और समर्पण की एक जीवंत प्रेरणा है। खुद सीमित संसाधनों और आर्थिक तंगी के बीच जीवन गुजारते हुए भी उन्होंने अपने सपनों को अपने बच्चों के माध्यम से जीया - और आज उनके तीनों बच्चे डॉक्टर बनकर उनके संघर्षों का अमिट पहचान बन गए हैं। पेशे से एक छोटे दवा दुकानदार बाबूराम सिंह ने कभी अपने हालात को अपने बच्चों की उड़ान में बाधा नहीं बनने दिया। उन्होंने वह सब कुछ किया जो एक पिता अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए कर सकता है।

इसके लिए चाहे उन्हें कभी खुद भूखे रहना पड़ा हो या इलाज के अभाव में पैर की चोट सहनी पड़ी हो लेकिन बच्चों की पढ़ाई के लिए उन्होंने हर कठिनाई को चुपचाप सह लिया। इन संघर्ष के दिनों में उन्होंने मढ़ौरा के जाने माने चिकित्सक डॉ सीएसपी सिंह के यहां कम्पाउंडरी भी की। इनकी बड़ी बेटी नलिनी रंजन ने 2013 में एसकेएमसीएच से एमबीबीएस किया और अब पटना के एनएमसीएच में शिशु रोग विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं। बेटा पुष्कर कुमार ने 2014 में अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस करने के बाद फिलहाल अमेरिका में इंटरनल मेडिसिन से पीजी कर रहे हैं, जहां उन्हें अमेरिकी सरकार की स्कॉलरशिप भी मिल रही है। वहीं सबसे छोटी बेटी शालिनी रंजन ने 2017 में बीएचयू से एमबीबीएस किया और फिलहाल वही इंटर्नशिप कर रही हैं। इस सफलता के पीछे खड़े हैं बाबूराम सिंह - एक पिता जिन्होंने कभी हार नहीं मानी। जो खुद टूटे पैर के दर्द को मुस्कान में छुपा लेते थे, लेकिन बच्चों के सामने कभी शिकायत नहीं की। वे हमेशा कहते थे कि “पढ़ाई के रास्ते में तकलीफें आएंगी, लेकिन बस चलते रहो।” आज जब उनके तीनों बच्चे डॉक्टर बन चुके हैं, तो यह सिर्फ उनके परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणादायक कहानी बन गई है कि एक पिता की मूक तपस्या किस तरह तीन चिकित्सकों के रूप में फलित हुई। इस फादर्स डे पर बाबूराम सिंह जैसे पिताओं को सलाम है। जिन्होंने अपनी जिंदगी के दीये बच्चों के भविष्य से जलाए।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।