जेपी यूनिवर्सिटी में स्थापित होगी ‘परमहंस दयाल पीठ
राज्यपाल के निर्देश से जेपी यूनिवर्सिटी में परमहंस दयाल पीठ की स्थापना की मंजूरी मिली है। इससे आध्यात्मिक चेतना और शैक्षणिक शोध को नया मंच मिलेगा। यह निर्णय ब्रह्म विद्यालय आश्रम के वर्षों के प्रयासों...

आध्यात्मिक विचारधारा व शैक्षणिक शोध का मिलेगा नया मंच राज्यपाल के निर्देश से ब्रह्मविद्यालय आश्रम के वर्षों पुराने प्रयासों को मिली मंजूरी मढ़ौरा। एक संवाददाता जेपी यूनिवर्सिटी में अब आध्यात्मिक चेतना व शैक्षणिक शोध का एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। बिहार के राज्यपाल ने विश्वविद्यालय प्रशासन को ‘परमहंस दयाल पीठ की स्थापना हेतु आवश्यक कार्रवाई का निर्देश देकर इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है। इस निर्णय से न केवल छपरा स्थित ब्रह्म विद्यालय आश्रम की वर्षों की तपस्या सफल हुई है, बल्कि देश-विदेश में फैले परमहंस दयाल स्वामी अद्वैतानंद महाराज के लाखों अनुयायियों में भी हर्ष की लहर दौड़ गई है।
इसके लिए गत 21 मई को आश्रम के प्रतिनिधिमंडल ने स्वामी व्यासानंद और महाराज निर्मल प्रकाशानंद की अगुवाई में राज्यपाल से मुलाकात कर जेपी यूनिवर्सिटी में ‘परमहंस दयाल पीठ की स्थापना हेतु एक ज्ञापन सौंपा था। इसके आलोक में राज्यपाल ने अब विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र भेजकर औपचारिक कार्रवाई के निर्देश दे दिए हैं। आध्यात्मिक विरासत का शिक्षण संस्थान से जुड़ाव परमहंस दयाल स्वामी अद्वैतानंद महाराज छपरा के दहियावां गांव के मूल निवासी थे, जिन्होंने भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान तक जाकर प्रेम, ज्ञान और अद्वैत वेदांत का संदेश फैलाया। टेरी (खैबर पख्तूनख्वा, पाकिस्तान) में उन्होंने अंतिम समाधि ली। उनकी शिक्षा आज भी भारत और पाकिस्तान के हजारों अनुयायियों को दिशा देती है। जेपी यूनिवर्सिटी में उनके नाम पर बनने वाली स्टडी चेयर न केवल शोध छात्रों के लिए एक नया मंच तैयार करेगी, बल्कि युवाओं को भारत की समृद्ध आध्यात्मिक परंपरा से भी जोड़ेगी। शिक्षा और संस्कृति का संगम ब्रह्मविद्यालय आश्रम से जुड़े डॉ. बीके सिंह, डॉ. राहुल हरीश, सोनू सिंह, धर्मवीर सिंह, अशोक सिंह और जेपी सिंह सहित अन्य संतों और अनुयायियों ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि “अब छात्रगण परमहंस दयाल जी के जीवन, विचार और सामाजिक योगदान पर शोध कर सकेंगे, जिससे समाज को नयी दिशा मिलेगी।” यह पीठ भविष्य में धार्मिक सहिष्णुता, आत्मज्ञान और भारतीय दर्शन जैसे विषयों पर विशेष व्याख्यान, संगोष्ठी और शोध कार्यक्रमों का भी केंद्र बन सकती है। परमहंस दयाल पीठ की स्थापना केवल एक नामकरण नहीं, बल्कि आध्यात्मिक परंपरा और आधुनिक शिक्षा के बीच एक सेतु बनने की ओर एक सार्थक कदम है।
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