बिहार के आंदोलनों में नागार्जुन की अहम भूमिका
दरभंगा में कबीर और नागार्जुन की जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ। प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि नागार्जुन ने सामंती व्यवस्था और स्वार्थी राजनीति के खिलाफ अपनी लेखनी चलाई। उन्होंने महिलाओं के...
दरभंगा। कबीर एवं नागार्जुन के साहित्य में लोक दर्शन का अर्थ लोक जीवन से है। बिहार के महत्वपूर्ण आंदोलनों में नागार्जुन की अहम भूमिका रही है। उन्होंने युग निर्माण और किसान मजदूर के हक में अपनी लेखनी को आधार बनाया। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में नागार्जुन चेयर के तत्वावधान में नागार्जुन जयंती के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष सह मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने ये बातें कही। कबीर और नागार्जुन के साहित्य में लोक दर्शन विषयक संगोष्ठी में बीज वक्ता के रूप में प्रो. सिंह ने कहा कि सामंती व्यवस्था, स्वार्थ जनित राजनीति के प्रति नागार्जुन ने अपनी आवाज बुलंद की।
अपने साहित्य के माध्यम से उन्होंने महिलाओं के जीवन संघर्ष और पीड़ा को यथार्थ रूप से अपनी रचनाओं में व्यक्त किया है। ललित कला संकायाध्यक्ष प्रो. पुष्पम नारायण ने कहा कि आज हमारे जीवन में लोक दर्शन की अहम भूमिका है, जिसे स्वयं के भीतर तलाशने की जरूरत है। कबीर और नागार्जुन के साहित्य में विद्यमान उनके आंतरिक मूल्यों को गहराई से समझने की जरूरत है। असम केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. सत्यदेव प्रसाद ने कहा कि कबीर और नागार्जुन की रचनाओं में आत्मज्ञान का प्रमुख स्थान है। आत्म- चेतस होना आज हमें कई समस्याओं से सुरक्षित रखने में सक्षम है। उन्होंने जनजीवन को अपनी रचनाओं में उतारने का प्रयास किया। अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश कुमार ने कहा कि कबीर और नागार्जुन के विचारों के केंद्र में सामाजिक समरसता, लोक जीवन की व्यापकता, नैतिकता, सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण है, जिसका प्रमाण उनके साहित्य में उपलब्ध है। कबीर व नागार्जुन वैचारिक क्रांति के अग्रदूत थे। डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि भारतवर्ष में सांस्कृतिक जनवाद का परचम कबीर ने लहराया, वहीं आधुनिक काल में नागार्जुन ने उन्हीं परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए स्वार्थलोलुप राजनीति और सत्ता के खिलाफ खुलकर विरोध किया। द्वितीय सत्र में ऑनलाइन जुड़ी पटना से प्रधानाचार्य मधुप्रभा ने कहा कि जन-जन को समझने वाले नागार्जुन और कबीर, दोनों के काव्य में लोक-जीवन की अभिव्यक्ति मिलती है। दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. विजय कुमार ने कहा कि मध्य काल में जिस ज्ञान का विस्फोट हुआ, उसके प्रणेता कबीर थे। नागार्जुन ने इस ज्ञान को आगे फैलाया। डॉ. रासेवक पंडित, डॉ. संजय कुमार, डॉ. आनंद प्रसाद गुप्ता, मारवाड़ी कॉलेज के डॉ. अनिरुद्ध सिंह, शोधार्थी सुभद्रा कुमारी, कंचन रजक, उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. गुलाम सरवर आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संगाष्ठी में कई शिक्षक, शोधार्थी व छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
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