यूनानी कॉलेज व अस्पतालों की संख्या बढ़ाने से होगा सस्ता व असरदार इलाज
कोरोना महामारी के बाद यूनानी चिकित्सा पद्धति के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। डॉक्टरों का कहना है कि यूनानी दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और इलाज सस्ता होता है। इसके बावजूद सरकारी उपेक्षा के कारण...
यूनानी चिकित्सा पद्धति से इलाज कराने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। खासकर कोरोना महामारी के बाद लोगों का रुझान पारंपरिक चिकित्सा की ओर बढ़ा है। इसके बावजूद यूनानी डॉक्टर खुद को सरकारी उपेक्षा का शिकार मानते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि यूनानी दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। इलाज भी सस्ता होता है, फिर भी सरकार इस पद्धति को बढ़ावा देने में पीछे है। डॉ. आई क्यू उस्मानी, डॉ. आदिल अहमद, डॉ. मो. शाकिब मदनी, डॉ. तहजीब कौसर, डॉ. इफ्तेखार अंजुम, डॉ. किश्वर सुलताना, डॉ. मो. नुरुल हक, डॉ. मो. अनवार हुसैन, डॉ. मो. शारिक, डॉ. जुनैद खान सिद्दीकी, प्रो. सुलेमान अहमद और तौसीफ अहमद जैसे डॉक्टरों ने कहा कि यूनानी चिकित्सा पूरी तरह प्राकृतिक है।
इसमें जड़ी-बूटियों से बनी दवाएं दी जाती हैं, फिर भी इसके प्रोत्साहन के लिए योजनाएं नहीं बन रही हैं। डॉक्टरों ने कहा कि बिहार में सिर्फ एक सरकारी यूनानी कॉलेज और अस्पताल है। अगर सरकार यूनानी कॉलेज और अस्पतालों की संख्या बढ़ाए तो न केवल लोगों को सस्ता और असरदार इलाज मिलेगा, बल्कि निजी कॉलेजों से पढ़े डॉक्टरों को भी सेवा का मौका मिलेगा। डॉक्टरों ने कहा कि यूनानी डॉक्टरों और शिक्षकों को भी वही सुविधाएं मिलनी चाहिए जो एलोपैथिक डॉक्टरों को मिलती हैं। डॉक्टरों ने कहा कि निजी यूनानी कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों और डॉक्टरों को उचित व समय पर वेतन और भत्ता नहीं मिल पाता है। सरकार को इसकी निगरानी करनी चाहिए। यूनानी के डॉक्टरों एवं शिक्षकों को आर्थिक सहयोग भी देना चाहिए। डॉक्टरों ने कहा कि यूनानी कॉलेजों में शिक्षा सत्र और परीक्षा सत्र नियमित नहीं है। इससे छात्रों की पढ़ाई समय पर पूरी नहीं हो पाती। सरकार को यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के बीच बेहतर तालमेल बनाना चाहिए। भौतिकता के इस युग में लोग चमक-दमक के पीछे भाग रहे हैं, जबकि यूनानी में आज भी सटीक इलाज मौजूद है। डॉक्टरों ने एक सुर में कहा कि सरकार सहयोग करे तो यूनानी चिकित्सा पद्धति से लाखों लोगों को राहत मिल सकती है। भारत फिर से चिकित्सा के क्षेत्र में दुनिया में नाम कमा सकता है। उन्होंने कहा कि चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखने वाले यूनानी चिकित्सा पद्धति को एक बार फिर से स्थापित किया जा सकता है। बदलते मौसम और रोज नई नई बीमारियों से जूझ रहे लोगों अब पौराणिक एवं पारंपरिक चिकित्सा पद्धति की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे हैं। कोरोना महामारी के बाद से लोगों का विश्वास यूनानी, आर्युवेदिक आदि पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के प्रति बढ़ा है। लेकिन हकीकत यह है कि इस पद्धति के चिकित्सकों को एलोपैथिक के डॉक्टरों से कड़ी प्रतिस्पर्घा करनी पड़ रही है। वहीं दूसरी ओर सरकार की अनदेखी का भी शिकार प्राकृतिक पद्धति के डॉक्टरों को होना पड़ रहा है। हालांकि सरकार ने पिछले कुछ समय में यूनानी, आर्युवेदिक आदि पद्धति से चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए अपने नियमों में बदलाव भी किया है। इसके बावजूद यूनानी चिकित्सा पद्धति के डॉक्टर अपने आप को सरकारी उपेक्षा का शिकार मानते हैं।
-बोले जिम्मेदार-
यूनानी डॉक्टरों की ओर से अभी तक किसी प्रकार की शिकायत मुझे नहीं मिली है। उनके लिए पीएचसी स्तर पर दवा की समस्या के निदान की व्यवस्था की गयी है। वैसे, मंत्रालय से प्राप्त आदेशों का सही से पालन कराने की व्यवस्था की गई है।
-डॉ. अरुण कुमार पासवान, सिविल सर्जन, दरभंगा
यूनानी चिकित्सा पद्धति के बारे में संबंधित विभाग से विस्तृत जानकारी लेंगे। इससे जुड़े डॉक्टरों से भी जानकारी लेंगे। इसके बाद राज्य और जरूरत पड़ी तो केंद्र सरकार के संबंधित अधिकारी से बात कर यूनानी चिकित्सकों की समस्या को दूर करने की दिशा में आवश्यक पहल करेंगे।
- डॉ. गोपाल जी ठाकुर, सांसद
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