बोले कटिहारर: गंगोता समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करे सरकार
गंगोता समाज, जो सदियों से गंगा के किनारे जीवन यापन करता आया है, आज पहचान और अधिकार की तलाश में भटक रहा है। कटिहार के फलका क्षेत्र में यह समाज बेघर और बेआवाज़ है। सरकारी योजनाओं से वंचित, शिक्षा और...
प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज, आशीष कुमार सिंह
गंगा के किनारे पला-बढ़ा एक समाज-गंगोता-जिसकी सांसों में नदी की लहरें बसी हैं, आज खुद पहचान की तलाश में भटक रहा है। कटिहार के फलका जैसे इलाकों में जहां कभी इनकी नावें चलती थीं, अब वहां टूटे सपनों और उजड़े घरों की कहानियां बह रही हैं। पीढ़ियों से घाटों की सेवा करने वाला यह समाज आज बिना ज़मीन, बिना सम्मान और बिना हक के जी रहा है। बच्चों के हाथ में कलम की जगह अब भी जाल है, और बुजुर्गों की आंखों में उम्मीद की जगह एक ठहरी हुई उदासी। गंगोता समाज की यह चुप्पी अब टूटी जानी चाहिए।
कटिहार जिले के फलका प्रखंड में गंगोता समाज आज भी विकास के दरवाज़े से बाहर खड़ा है-सदियों से गंगा के घाटों पर अपना जीवन खपा देने वाला यह समाज आज खुद बेसहारा, बेघर और बेआवाज़ बना बैठा है। खेरिया, बरेटा, दलवा, भंगहा, शब्दा और रुचदेव सिमरिया जैसे गांवों में हजारों की आबादी वाली यह जाति अब भी सरकारी योजनाओं और बुनियादी अधिकारों के लिए तरस रही है। गंगोता जाति की पहचान नाव चलाने, घाटों की देखभाल, मछली पालन और तीर्थ यात्रियों की सेवा जैसे पारंपरिक कार्यों से रही है। लेकिन नदियों की धारा ने जब किनारे काटे, तो इनके घर और जमीनें बहा ले गईं। जो बचे, वे भी दस्तावेजों में उलझकर विकास से वंचित हो गए। फलका के बारीपुर निवासी चंद्रशेखर गंगोता कहते हैं कि पर्चा मिला, लेकिन न खतियान में नाम चढ़ा, न मुआवजा मिला। हम आज भी किराए की जमीन पर झोपड़ी में जी रहे हैं।
जातीय पहचान की अस्पष्टता इनकी सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। राज्य सरकार के रिकॉर्ड में यह जाति अब तक स्पष्ट रूप से अनुसूचित जाति में दर्ज नहीं है। फलस्वरूप न तो उन्हें आरक्षण का लाभ मिलता है, न ही सरकारी योजनाओं का समुचित फायदा। बहेरा गांव की राजकुमारी देवी कहती हैं कि हम महादलितों से भी बदतर हालत में हैं। बेटी पढ़ाना हो या इलाज कराना, हर मोड़ पर अपमान और असहायता मिलती है। फलका प्रखंड में गंगोता समाज के बीच शिक्षा की हालत भी चिंताजनक है। अधिकांश बच्चे प्राथमिक विद्यालय से आगे नहीं बढ़ पाते। गरीबी और सामाजिक भेदभाव उन्हें समय से पहले काम में धकेल देता है। स्वास्थ्य सेवाएं तो और भी बदहाल हैं। दलवा गांव में एक भी उपस्वास्थ्य केंद्र नहीं है, गर्भवती महिलाओं को 8–10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। राजनीतिक रूप से भी गंगोता समाज की आवाज नक्कारखाने में तूती बनकर रह गई है। कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, वहां गंगोता समाज के करीब 35 हजार वोटर हैं, लेकिन आज तक उन्हें कोई सशक्त नेतृत्व नहीं मिला। फलका के सामाजिक कार्यकर्ता दीपक मंडल कहते हैं कि गंगोता समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करना वक्त की मांग है। सिर्फ कागजी पट्टा नहीं, उन्हें संवैधानिक अधिकार और मान्यता मिलनी चाहिए। गंगोता समाज की यह पीड़ा केवल कटिहार या फलका की नहीं-यह उस पूरे तंत्र की विफलता है, जो दशकों से वंचितों को केवल गिनती में रखता है, हक में नहीं। अब वक्त है कि इस समाज की आवाज सुनी जाए और उन्हें वह सम्मान मिले जिसके वे असली हकदार हैं।
इनकी भी सुनिए
हमारा समाज आज भी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है। सरकारें आती हैं, वादे करती हैं, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त वही की वही है। बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन न स्कूल में शिक्षक हैं, न घर में साधन। गंगोता समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करना बेहद जरूरी है।
– नेपाली मंडल
हम नदियों के साथ जीते आए हैं, लेकिन अब वही नदी हमारी ज़मीन और रोज़गार दोनों लील गई। हम विस्थापित हो गए, पर स्थिति नहीं बदली। सरकार ने सिर्फ सर्वे किया, समाधान कुछ नहीं दिया। हम भी इंसान हैं, हमें भी हक और सम्मान चाहिए, ना कि दया।
– गोपाली मंडल
हमारे समाज को हमेशा से हाशिए पर रखा गया। न नौकरी में आरक्षण मिला, न योजनाओं में प्राथमिकता। हम मेहनत करते हैं, लेकिन बदले में अपमान ही मिला। जब तक जाति को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलेगी, तब तक कोई बदलाव संभव नहीं।
– धनेश्वर मंडल
हमारे बच्चों का भविष्य अधर में लटका है। स्कूल की हालत खराब है और शिक्षक भी नहीं आते। जाति प्रमाणपत्र तक नहीं बनता, जिससे योजना का लाभ नहीं मिलता। गंगोता समाज की तकलीफों को गंभीरता से लेना चाहिए, नहीं तो स्थिति और बिगड़ेगी।
– छट्ठू मंडल
हम लोग वर्षों से बाढ़, कटाव और गरीबी झेलते आए हैं। टिन-छप्पर के नीचे जीवन गुजार रहे हैं। प्रधानमंत्री आवास की सूची में नाम आता है, लेकिन मकान नहीं बनता। सरकार से मांग है कि गंगोता समाज को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए।
– जोगी मंडल
हमारी जाति की गिनती तो होती है, पर गिनती में ही रह जाते हैं। सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा-तीनों की हालत बदतर है। जब तक राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं मिलेगी, हमारी आवाज कोई नहीं सुनेगा। हमें भी आगे बढ़ने का अवसर चाहिए।
– महेंद्र मंडल
गंगोता समाज हमेशा शांत रहा, पर अब हम चुप नहीं बैठेंगे। हमारे पुरखों ने घाटों की सेवा की, फिर भी हमें हक नहीं मिला। अब वक्त है कि सरकार हमारी पहचान को माने और संवैधानिक दर्जा दे, जिससे हम भी सम्मानपूर्वक जी सकें।
– चतुरी मंडल
हमारे गांव में इलाज के लिए कई किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है। कोई उपस्वास्थ्य केंद्र नहीं, न डॉक्टर। स्कूल में शिक्षक नहीं, किताबें नहीं। गंगोता बहुल इलाकों के लिए विशेष योजना बनानी चाहिए ताकि हम भी मुख्यधारा में जुड़ सकें।
– दयानंद मंडल
गांव में सभी मेहनती हैं, लेकिन मेहनत का फल नहीं मिलता। योजनाओं में नाम होते हुए भी लाभ नहीं मिलता। हर जगह भेदभाव है। हमारी यही मांग है कि हमें हक मिले, और हमें बराबरी का अधिकार दिया जाए।
– जगदेव मंडल
हमारी सबसे बड़ी समस्या है पहचान की। सरकार को समझना चाहिए कि जब तक जातीय मान्यता नहीं मिलेगी, तब तक हम हाशिए पर ही रहेंगे। हर दफ्तर में धक्के खाने पड़ते हैं। अब बदलाव जरूरी है, सिर्फ आश्वासन नहीं।
– रंजीत मंडल
हमारे समाज ने सदियों से घाटों पर सेवा की, पर अब घाट भी छिन गए और रोजगार भी। सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर चल रही हैं। हमें भी ज़मीन, मकान और शिक्षा जैसी सुविधाएं मिलनी चाहिए, जो हर नागरिक का अधिकार है।
– डब्लू मंडल
बाढ़ और कटाव के कारण घर उजड़ते जा रहे हैं, लेकिन पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं है। जमीन का पट्टा मिला पर रिकॉर्ड नहीं सुधरा। सरकार को हमारी हालत पर संवेदनशीलता से विचार करना चाहिए और ठोस कदम उठाना चाहिए।
– प्रकाश मंडल
हमारी नई पीढ़ी कुछ कर दिखाना चाहती है, लेकिन साधन नहीं हैं। ना कोचिंग, ना इंटरनेट, ना मार्गदर्शन। अगर हमें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए, तो युवा आगे बढ़ सकते हैं और समाज भी बदल सकता है।
– अभिषेक मंडल
हम मेहनत करते हैं, लेकिन बदले में अपमान और भेदभाव ही झेलते हैं। योजनाओं में शामिल होकर भी लाभ नहीं मिलता। अगर हमें हक और पहचान मिल जाए, तो हम भी स्वाभिमान से जी सकते हैं।
– राजू मंडल
दफ्तरों में हमारे लोगों को तुच्छ समझा जाता है। जातीय प्रमाणपत्र की मांग पर टालमटोल होता है। सरकार से मांग है कि गंगोता समाज को संवैधानिक दर्जा मिले, ताकि हमें भी समाज में बराबरी मिल सके।
– पटवारी मंडल
हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है। न रोजगार है, न शिक्षा। युवा पढ़ना चाहते हैं, लेकिन संसाधनों की कमी है। सरकार से अपील है कि गंगोता समाज को अनुसूचित जाति में शामिल कर हमें अधिकार और अवसर दे।
– शहदेव मंडल
बोले जिम्मेदार
गंगोता समाज का सवाल वाजिब है और मैं बतौर कोढ़ा विधायिका पूरी संवेदनशीलता के साथ इसे उठाने के लिए प्रतिबद्ध हूं। कोढ़ा क्षेत्र में इनकी बड़ी आबादी है, लेकिन अब तक इन्हें सामाजिक मान्यता नहीं मिल पाई, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। मैंने विधानसभा में भी इनकी स्थिति पर बात की है और अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को मजबूती से आगे बढ़ाया है। फलका और अन्य इलाकों में इनकी समस्याओं के समाधान के लिए विशेष पहल की जाएगी। मेरी प्राथमिकता है कि गंगोता समाज को सम्मान, शिक्षा, आवास और अधिकार हर स्तर पर दिलाया जाए।
– कविता पासवान, विधायक, कोढ़ा
शिकायत
1. अब तक गंगोता जाति को अनुसूचित जाति में शामिल नहीं किया गया, जिससे वे आरक्षण व कल्याणकारी योजनाओं से वंचित हैं।
2. बंदोबस्त के तहत मिले पट्टों का अब तक दाखिल-खारिज नहीं हुआ, जिससे ज़मीन पर कानूनी अधिकार नहीं मिला।
3. स्कूल हैं, लेकिन शिक्षक नहीं; पढ़ाई की सुविधा की भारी कमी है, जिससे बच्चे समय से पहले पढ़ाई छोड़ देते हैं।
4. गांवों में न उपस्वास्थ्य केंद्र हैं, न एंबुलेंस सुविधा; गर्भवती महिलाओं और बीमारों को भारी कठिनाई होती है।
5. बड़ी आबादी के बावजूद न पंचायत स्तर पर प्रभावी भागीदारी मिली, न विधानसभा/लोकसभा में कोई प्रतिनिधित्व।
सुझाव
1. सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को देखते हुए गंगोता समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए।
2. जिन परिवारों को बंदोबस्त के तहत जमीन मिली है, उनका अविलंब दाखिल-खारिज कर मालिकाना हक दिया जाए।
3. गंगोता बहुल गांवों में विशेष आवासीय विद्यालय, छात्रवृत्ति और शिक्षकों की बहाली की योजना चलाई जाए।
4. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, मोबाइल हेल्थ वैन और मातृत्व सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं।
5. पंचायत और प्रखंड स्तर पर गंगोता समाज के प्रतिनिधियों को अवसर दिया जाए, ताकि आवाज़ प्रभावी ढंग से उठ सके।
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