जच्चा-बच्चा की संभालतीं जिम्मेदारी आशा को नहीं मिल रहा दर्जा सरकारी
समस्तीपुर में आशा कार्यकर्ता स्वास्थ्य योजनाओं के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। लेकिन उन्हें समय पर मानदेय नहीं मिलता, जिससे आर्थिक संकट पैदा हो रहा है। उन्होंने सरकार से नियमित वेतन...
समस्तीपुर। स्वास्थ्य विभाग में एक जमाने में जितनी सरकारी योजनाएं आती थीं, उनके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी एएनएम के कंधे पर होती थी। समय बदला और मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए गर्भवती महिलाओं की देखभाल से लेकर संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए गांव-गांव आशा कार्यकर्ता रखी गईं। धीरे-धीरे अब ज्यादातर स्वास्थ्य योजनाओं के धरातल पर क्रियान्वयन का भार आशा कार्यकर्ताओं को मिल चुका है। इनकी शिकायत है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं करते हैं। समय से मानदेय भी नहीं मिलता है। कई बार तो उसमें कटौती भी कर दी जाती है,जिससे आर्थिक संकट बना रहता है।
आशा कार्यकर्ता ग्रामीण और शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं। गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल से लेकर आशा वर्कर सरकार की विभिन्न योजनाओं को घर-घर तक पहुंचाती हैं। कोरोना काल में भी उन्होंने जमीनी स्तर पर काम कर स्थितियों को संभालने मेंअहम भूमिका निभाई। इसके बाद आशाओं को सरकार की तरफ से निराशा ही हाथ लगी है। उनकी मानदेय बढ़ाने सहित अन्य कई मांगें लंबे समय से पूरी नहीं हो पाई हैं। आशा कार्यकर्ता अपनी समस्याओं को लेकर आवाज उठाती रही हैं। उनका कहना है कि उन्हें कम वेतन के साथ अधिक जिम्मेदारियां सौंपी जा रही हैं। उन्होंने सरकारी कर्मचारी का दर्जा और मानदेय बढ़ाने की मांग की है। आशा कार्यकर्ताओं ने ‘बोले समस्तीपुर कार्यक्रम के दौरान हिन्दुस्तान से खुलकर अपनी समस्याओं पर चर्चा की। आशा कार्यकर्ता दीपशिखा, पवन कुमारी आदि ने बताया कि मिशन टीबी उन्मूलन, एड्स नियंत्रण और तंबाकू नियंत्रण जैसे अभियानों में भी उनकी भूमिका अहम है, लेकिन इन कार्यों के बावजूद उन्हें नियमित मानदेय नहीं मिलता। वे प्रत्येक केस के हिसाब से मानदेय पाती हैं, जो महंगाई के चलते ऊंट के मुंह में जीरा महसूस होता है। सभी योजनाओं के क्रियान्वयन में दिन-रात जुटी आशाएं अस्पतालों में अभद्र व्यवहार का सामना करने से भी व्यथित हैं। मुन्नी देवी, आशा कुमारी आदि कहतीं हैं कि मिशन टीबी उन्मूलन 2025, एड्स नियंत्रण और तंबाकू नियंत्रण जैसे कार्यक्रमों में इनकी सक्रियता से स्वास्थ्य सेवाएं सुदूर गांवों तक पहुंच रही हैं। वे टीबी मरीजों को नि:शुल्क इलाज दिलाने, एचआईवी मरीजों को सरकारी इलाज की ओर प्रेरित करने और तंबाकू के सेवन को छोड़ने के लिए लोगों को जागरूक कर रही हैं। इसके अलावा, आयुष्मान आरोग्य मंदिरों जैसी योजनाओं का लाभ भी वे लोगों तक पहुंचाती हैं। हालांकि, अपनी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाने के बावजूद आशा कार्यकर्ता आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं। उन्हें महीने की कोई निर्धारित तनख्वाह नहीं मिलती, जबकि वे प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करती हैं। उनकी पीड़ा यह है कि सरकार उन्हें स्वास्थ्य योजनाओं का प्रमुख अंग मानते हुए भी, उनका आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। आशाएं चाहती हैं कि उन्हें प्रति केस मिलने वाले मानदेय में वृद्धि हो और उन्हें एक न्यूनतम वेतन मिले, ताकि वे अपनी सेवाएं देने में पूरी तरह से सक्षम हो सकें। वर्षों से कोई न्यूनतम वेतन न होने का सह रही दंश जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित आयुष्मान आरोग्य पर उपलब्ध चिकित्सा सेवाओं का लाभ उठाने के लिए लोगों को प्रेरित और प्रोत्साहित करने में भी आशा कार्यकत्रियों की भूमिका अहम है। आजीविका को लेकर मायूसी और पीड़ा आशाओं की जुबां पर छलक रही है। उन्होंने अपनी पीड़ा बताई है। कई समस्याओं को बयां करने के साथ आशाओं ने अपने लिए महीने की तनख्वाह मिलने की व्यवस्था नहीं होने को सबसे बड़ी पीड़ा बताया। आशाओं की जुबां पर एक स्वर से यही आवाज उठी कि चाहे धनराशि कम ही सही हो, लेकिन उन्हें महीने की कुछ निर्धारित तनख्वाह तो मिले। प्रस्तुति : अविनाश/ ऋषि राज बोले-जिम्मेदार चिकित्सा सेवाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए आशा कार्यकर्ता जिम्मेदारी निभा रही हैं। स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने में उनके अतुलनीय योगदान को महसूस करके ही उन्हें नई जिम्मेदारियां दी भी जा रही हैं। अलग-अलग केस की प्रोत्साहन राशि व मानदेय इन्हें दिया जा रहा है। इसे बढ़ाने समेत उनकी जो भी अपेक्षाएं हैं, उन्हें इनके मांग पत्र आदि के आधार पर उचित कार्रवाई के लिए स्वास्थ्य विभाग को भेज दिया जाता है। मानदेय बढ़ाने संबंधित अन्य फैसला सरकार की ओर से लिया जाएगा। - डॉ. एसके चौधरी, सिविल सर्जन, समस्तीपुर।
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