गुरबत की मार झेल रहे मजदूरों का हाल बेहाल
(पेज पांच की लीड)इस उपलक्ष्य में बंद रहेंगे। लेकिन, असल में जिन मजदूरों के लिए इस दिवस को मनाया जाता है। उन्हे इसका पता ही नहीं है। सरकार की किसी

डेहरी, एक संवाददाता। सूबे की सरकार के साथ केन्द्र सरकार भी गरीब, अशिक्षित, असंगठित कामगार मजदूरों के लिए कई तरह की घोषणाएं करती है। लेकिन, डेहरी प्रखंड व नगर में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे मजदूरों की हालत बदतर है। जान जोखिम में डालकर काम करने वाले इन लोगों का किसी तरह से भला होता नहीं दिख रहा है। प्रत्येक साल की तरह इस साल भी एक मई को मजदूरों के हितार्थ मजदूर दिवस पर सरकारी उपक्रम के साथ निजी संस्थान भी इस उपलक्ष्य में बंद रहेंगे। लेकिन, असल में जिन मजदूरों के लिए इस दिवस को मनाया जाता है। उन्हे इसका पता ही नहीं है। सरकार की किसी भी योजना का लाभ पूरी तरह इन मजदूरों को प्रखंड में नहीं मिल सका है। जिसके कारण ये लोग आज तक बदहाली के आलम में ही जी रहे हैं। डेहरी नगर के मुख्य बाजार बारह पत्थर चौक, न्यू एरिया के शितला मंदिर आदि वैसे स्थान हैं जहां सुबह सात बजे से ही अपने गांवों से तैयार होकर मजदूर चले आते हैं। इस दौरान अधिकांश मजदूरों के पास दोपहर का नाश्ता भी होता है। इसमें प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ नगर के मिस्त्री व मजदूर भी खड़े रहते हैं। यहां इन मजदूरों का मोल भाव भी होता है। 300 रुपये से शुरू होकर 400 रुपये तक में मामला पट जाता है। वहीं मिस्त्री के 600 रुपये से लेकर 700 रुपए तक पर तैयार हो जाते हैं। उम्र, कद-काठी भी इस मोल भाव में देखी जाती है। बाबूलाल, महेन्द्र यादव, बासुदेव राम, बन्हु पड़ित, सरफराज आलम आदि मजदूरों से पूछने पर उन्होने बताया कि हम राज मिस्त्री के साथ, बाग-बगीचे की सफाई, पलदारी के काम के साथ भवन निर्माण के लिए भी काम करते हैं। डेहरी बाजार से मजदूर असानी से मिल जाते हैं। इस बारह पत्थर चौराहे पर आने के बाद अधिकांश मजदूरों को रोज काम मिल जाता है। इन मजदूरों के भी ठेकेदार हैं। जो अपने तो ग्राहकों से ज्यादा रुपए लेते हैं व मिस्त्री को कम दिलवाते हैं। जिसे बाद में कमीशन के रूप में वसूल लेते हैं। कुछ मजदूरों का कहना है कि रोज काम मिल जाने के उम्मीद से इन ठेकेदारों के साथ काम करना पड़ता है। पेट की मार ऐसी होती है कि इनका संगठन बन ही नही सकता है। वैसे निजी संस्थान व सरकारी गोदामों में कार्य कर रहे मजदूरों ने संगठन बना रखा है। लेकिन, भवन, सड़क व अन्य तरह के कार्य करने वाले मजदूर आज भी असंगठित हैं। इसका मुख्य वजह इनके तंग हालात व अशिक्षा ही है। मजदूरों का कहना है कि हड़ताल, काम बंदी करके हम और बेकार हो जाएंगे। 60 वर्षीय जहागिर मिस्त्री जो बाजार में राज मिस्त्री का काम करते हैं। नित्य गांव से आते हैं। उनका कहना है कि महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत सरकार द्वारा मजदूरों को 100 दिन काम देने की बात सुनी थी। आज तक मुझे यह काम मिला ही नही है। रोज अपने चार बेटियों व पत्नी के पेट पालने के लिए सुबह से उठकर डेहरी में काम करने आना पड़ता है। घर में कोई दूसरा पुरूष नहीं है। जो कमाई में हाथ बंटा सके। कुछ इसी तरह की समस्या प्रमोद कुमार के साथ है। जो अपने बेटियों की शादी राज मिस्त्री से कमा कर कर चुके हैं। अब घर में बेटे छोटे- छोटे हैं। जिन्हें काम नही मिलने की स्थिति में चूल्हा जलने पर भी आफत रहती है। यह तो बस एक बानगी है। ऐसे कई मजदूर हैं, जिन्हें मनरेगा या अन्य योजनाओं से भले लाभ ना मिले, किंतु इनके नाम पर मनरेगा कार्यों में भ्रष्टाचार की मोटी परत जमी रहती है। जिस पर अधिकारी चुप्पी साधे रहते हैं। कहते हैं अधिकारी श्रम अधीक्षक सुजीत ने बताया कि मजदूरों के हित के लिए सरकार के तरफ से कई योजनाएं समय-समय पर चलाई जाती है। बुधवार को मजदूर दिवस पर श्रम संसद भवन भवन में मजदूरों के लिए कार्यक्रम व सफल मजदूरों को सम्मानित किया जाएगा।
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