बिहार की दूसरी टिशू कल्चर लैब पर फंड का ग्रहण
सुपौल के बीएसएस कॉलेज में 2018 में स्थापित बिहार की दूसरी सबसे बड़ी टिशू कल्चर लैब अब फंड की कमी के कारण बंद हो गई है। मंत्री बिजेन्द्र यादव की पहल पर शुरू हुई इस लैब ने अब तक बांस उत्पादक किसानों को...

बीएसएस कॉलेज में 2018 में हुई थी शुरू, तीन साल बाद से ही बंद पड़ी भागलपुर स्थित टीएनबी कॉलेज के बाद सूबे की दूसरी सबसे बड़ी लैब मंत्री बिजेन्द्र यादव की पहल पर हुई थी शुरुआत, अब दम तोड़ रही लैब से अबतक बांस उत्पादक किसानों एक लाख पौधे बांटे जा चुके लैब में तैयार किये जा रहे थे बैंब्यूसा बालकुआ (बरौत) प्रजाति के बांस सुपौल। सुपौल के भारत सेवक समाज (बीएसएस) कॉलेज स्थित बिहार की दूसरी सबसे बड़ी टिशू कल्चर लैब फंड के अभाव में बंद पड़ी है। दो करोड़ 10 लाख की राशि से नर्मिति इस लैब का उद्घाटन तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने एक अगस्त 2018 को किया था।
एक साल तक इस लैब में वैज्ञानिकों ने शोध कर बांस की उन्नत कस्मि की प्रजातियां तैयार कीं। इसके बाद साल 2019 से वन विभाग के माध्यम से सुपौल समेत कोसी प्रमंडल के अन्य दो मधेपुरा और सहरसा जिले के किसानों को भी पौधे का वितरण किया गया। जबकि तीन साल के लिए सरकार से हुई करार मार्च 2022 में खत्म होने के बाद से ही लैब अभी तक बंद पड़ी है। इस बाबत पूर्व प्राचार्य संजीव कुमार का कहना है कि बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने के कारण कोसी इलाके में बांस का खासा महत्व है। बांस बाढ़ रोकने में काफी कारगर होता है। इसको देखते हुए ही यहां टिशू कल्चर लैब की स्थापना का प्रस्ताव सरकार ने मंजूर भी किया था। लेकिन अब फंड के अभाव में यह लैब बंद पड़ी है। एक बार फिर से इस लैब को चालू कराने को लेकर बीएसएस कॉलेज प्रबंधन व वन विभाग पहल करेगा। गौरतलब है कि तत्कालीन वत्ति और ऊर्जा मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव की पहल पर कॉलेज में इस लैब की स्थापना हुई थी। जबकि अभी तक प्रदेश में दो ही टिशू कल्चर लैब बनाई गई हैं। इनमें पहली भागलपुर जिले के टीएनबी कॉलेज तो दूसरी सुपौल के बीएसएस कॉलेज में स्थित है। लैब में तैयार हो रही थी बांस की चार मुख्य प्रजातियां बीएसएस कॉलेज के पूर्व प्राचार्य संजीव कुमार ने बताया कि सुपौल की इस टिशू कल्चर लैब में बैंब्यूसा बालकूआ (बरौत) प्रजाति के बांस के पौधे तैयार किये जा रहे थे। इनमें चार मुख्य प्रजातियां बैंब्यूसा बालकूआ (हरौत बांस), बैंब्यूसा तुल्दा (चाभ बांस), बैंब्यूसा न्यूटंस (मकोर बांस) और बैंब्यूसा बंबोस (कटाहा बांस) थीं। उन्होंन बताया कि इस लैब से 50 हजार से लेकर एक लाख बांस के पौधे के वितरण का लक्ष्य सरकार ने रखा था। इसके ऐवज में लैब से करीब 1.20 लाख किसानों को बांस के पौधों को वितरण किया गया था। वहीं लैब की शुरुआत चार वैज्ञानिक और चार तकनीसियन के साथ-साथ अन्य कर्मियों समेत कुल 16 लोगों की टीम के साथ हुई थी। फिर फंड की कमी के कारण 10 लोग बचे बाद में फिर छह और फिर तीन लोगों की टीम बची थी। पूर्व प्राचार्य संजीव ने बताया कि तीन साल के लिए सरकार से हुई इस करार के बाद लगातार फंड नहीं मिला। इस बीच कई बार लैब चालू कराने को लेकर वन विभाग के माध्यम से प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हो सका। फिर भी लैब के दोबारा शुरू होने की उम्मीद में बीते दो सालों से एक कर्मचारी को निजी खर्चे पर लैब की देखरेख के लिए रखा है, लेकिन अब उनकी उम्मीद भी जवाब दे रही है। इसके अलावा उनका अब ट्रांसफर भी मधेपुरा के बीएनएमवी कॉलेज हो गया है। क्या है टिशू कल्चर लैब, जानिये टिशू कल्चर या ऊतक संवर्धन एक प्रयोगशाला तकनीक है। इसमें जीवित ऊतकों (पौधे या जानवर) के छोटे टुकड़ों को उनके प्राकृतिक वातावरण से अलग कर एक कृत्रिम माध्यम में उगाया जाता है। इसे इन-वट्रिो या इन-सेल में भी कहा जाता है। यह तकनीक व्यापक रूप से जीव वज्ञिान, चिकत्सिा, कृषि, और बागवानी में उपयोगी होती है। इसके कई लाभ भी हैं जैसे नए पौधों का उत्पादन, पौधों के जीन में बदलाव, पौधों के रोगों का पता लगाना और पौधों की गुणवत्ता में सुधार करना। इसके अलावा ऊतक संवर्धन तकनीक का उपयोग करके नए पौधों को विकसित किया जा सकता है। ऐसे पौधे जल्दी और अधिक मात्रा में फसल पैदा कर सकते हैं। बीएसएस कॉलेज के पूर्व प्राचार्य ने लैब संचालन के लिए प्रस्ताव दिया था। वर्तमान प्राचार्य भी लैब संचालन को लेकर प्रस्ताव बनाकर दें, हम उसे सरकार को भेज देंगे। लैब की शुरुआत के लिए हरसंभव कोशिश की जाएगी। -प्रतीक आनंद, डीएफओ, सुपौल लैब शुरू कराने को वन विभाग को प्रस्ताव भेजेंगे। इसके संचालन को बॉटनी के प्रोफेसर को को-ऑर्डिनेटर बना उन्हें जम्मिेदारी सौंपेंगे। लैब की शुरुआत हो तो यह कॉलेज के साथ जिला और प्रदेश के लिए भी अच्छा होगा। -सुधीर कुमार सिंह, प्राचार्य, बीएसएस कॉलेज
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