Sona s Air Quality Deteriorates Due to Sand Mining Agencies Stockpiling Sand हवा में उड़ती रेत के कारण दूषित वातावरण में जीने को मजबूर है मार्ग किनारे बसे आवादी, Supaul Hindi News - Hindustan
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हवा में उड़ती रेत के कारण दूषित वातावरण में जीने को मजबूर है मार्ग किनारे बसे आवादी

बालू खनन एजेंसियों द्वारा सोनो में मुख्य मार्ग के किनारे रेत के बड़े ढेर लगाए जा रहे हैं, जिससे हवा में धूल और जहरीली गैसें फैल रही हैं। इससे स्थानीय निवासियों को सांस संबंधी समस्याओं का सामना करना...

Newswrap हिन्दुस्तान, सुपौलTue, 27 May 2025 06:06 PM
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हवा में उड़ती रेत के कारण दूषित वातावरण में जीने को मजबूर है मार्ग किनारे बसे आवादी

बालू खनन एजेंसियों द्वारा मुख्य मार्ग के किनारे खड़ी कर दी गई रेत की दर्जनों पहाड़ सोनो। निज संवाददाता हवा में उड़ती धूल व रेत ही सोनो की पहचान बन गई है।बालू खनन एजेंसियों द्वारा मुख्य मार्ग के किनारे स्टॉक किये गये रेत का ढेर हवा के साथ वातावरण में विखर जा रहा है जिससे लोगों वातावरण में फैले जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हो रहें है।लगातार दूषित हवा के संपर्क में रहने के कारण मार्ग किनारे रह रहे आवादी सांस संबंधी रोगों के चपेट म आ रहे हैं। कभी सोने की पहचान से मशहूर रहा सोनो अब रेत नगरी बन गया है।

बरनार नदी की छाती को दिन-रात छलनी कर बालू कारोबारी हर दिशा में रेत के अंबार खड़ा कर रहे हैं। आधुनिक मशीनों और हाइवा ट्रकों से निकाली जा रही रेत को प्रखंड मुख्यालय के आसपास डंप किया जा रहा है। लिहाजा पंचपहाड़ी से लेकर औरैया तक दर्जनों जगहों पर रेत का विशाल पहाड़ बन चुका है।एनएच 333 के झाझा-सोनो मार्ग पर पंचपहाड़ी के पास आधा दर्जन से ज्यादा जगहों पर भारी रेत का भंडारण है। पेनवाजन स्थित मॉडल स्कूल के पास रेत का पहाड़ स्कूल भवन तक को ढक चुका है। सोनो-चकाई मार्ग के औरैया और चाननटांड इलाकों में भी यही हाल है। चारों ओर सिर्फ धूल और बालू के टीले नजर आते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य पूरी तरह खत्म हो चुका है।रेत के भंडारण ने हवा को इतना भारी बना दिया है कि सांस लेना मुश्किल हो गया है। आसपास के गांवों और राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बसे लोगों की जिंदगी धूलकणों से भरी हवा में घुट रही है। खिड़कियां बंद करने के बाद भी राहत नहीं मिल रही। राहगीरों और बाइक चालकों को चेहरा ढक कर चलना पड़ रहा है। गर्मी में जब तेज हवाएं चलेंगी, तो हालात और बिगड़ेंगे।चिकित्सा पदाधिकारी डा. शशिभूषण चौधरी ने बताया कि धूलकणों का लंबे समय तक सांस के जरिए शरीर में प्रवेश गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। इससे फेफड़े, हृदय, मस्तिष्क और आंखें विशेष रूप से प्रभावित होती हैं।

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