लू हवाले शहर
आजकल गर्मी से तपते उत्तर भारत के ज्यादातर शहरों के लिए यह एक बुरा अनुमान है कि इनमें से अनेक शहरों में लू चलने के दिन दोगुने हो जाएंगे। मात्र पांच वर्ष के समय में न केवल लू के दिन बढ़ जाएंगे, बल्कि बारिश भी अनियमित हो जाएगी। जो लोग अभी तक बढ़ती गर्मी…

आजकल गर्मी से तपते उत्तर भारत के ज्यादातर शहरों के लिए यह एक बुरा अनुमान है कि इनमें से अनेक शहरों में लू चलने के दिन दोगुने हो जाएंगे। मात्र पांच वर्ष के समय में न केवल लू के दिन बढ़ जाएंगे, बल्कि बारिश भी अनियमित हो जाएगी। जो लोग अभी तक बढ़ती गर्मी या बिगड़ते जलवायु के प्रति सचेत नहीं हैं, उन्हें यह जरूर जान लेना चाहिए कि साल 2030 तक दिल्ली, पटना, मुंबई, चेन्नई, सूरत, ठाणे, हैदराबाद और भुवनेश्वर जैसे बड़े शहरों में लू के दिन दोगुने हो जाएंगे। आईपीई ग्लोबल और एसरी इंडिया द्वारा किया गया यह अध्ययन हमारे लिए बड़ी चिंता का विषय होना चाहिए। अभी भी हम गर्मी या गर्मी के दिनों पर अंकुश लगाने के लिए ईमानदारी से प्रयास नहीं कर रहे हैं। शहरों में पेड़ों की बेरहम कटाई और जलस्रोतों-जलाशयों की घोर उपेक्षा का क्रम जारी है। हमारे शहर अपनी पवित्र नदियों को भी बचाने में नाकाम हो रहे हैं। गौर करने की बात है कि गर्मी की समस्या एकतरफा नहीं है। इसका एक परिणाम यह होगा कि देश के दस में से आठ जिलों में जरूरत से ज्यादा बारिश दर्ज की जा सकती है। मतलब, न केवल गर्मी का कहर बढ़ेगा, अत्यधिक बारिश भी वार करेगी।
यह याद रखने की जरूरत है कि साल 1993 से 2024 के बीच भारत में लू के दिन 15 गुना बढ़े हैं, अत: आगामी पांच वर्ष में अगर लू के दिन दोगुने हो जाएं, तो आश्चर्य नहीं। विगत तीन दशक में पर्यावरण के बिगड़ने की रफ्तार तेज रही है और इससे केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर असर पड़ा है। हमें सावधान हो जाना चाहिए कि गर्मी के चलते ग्रीनलैंड की बर्फ औसत से 17 गुना अधिक तेजी से पिघली है। हमें यह भी समझना चाहिए कि जलवायु में परिवर्तन कोई भविष्य की समस्या नहीं है, यह आज की समस्या है और इसने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन से जलवायु में होने वाले बदलाव व्यापक प्रभाव डाल रहे हैं। खबरें बार-बार बता रही हैं कि ग्लेशियर और बर्फ की चादरें सिकुड़ रही हैं। ठंडे देशों में नदी और झील की बर्फ समय से पहले ही पिघल जा रही है। प्राकृतिक स्थिरता खो गई है। अब पौधों और जानवरों की भौगोलिक सीमाएं भी बदलने लगी हैं। पौधों और पेड़ों को भी जल्दी मची है। फूल-फल भी जल्दी खिलने-पकने लगे हैं। विश्व स्तर पर यह ज्यादा चिंता की बात है कि समुद्री बर्फ में कमी आ रही है, जिससे समुद्री जल स्तर में तेज वृद्धि हो रही है। इससे अनेक द्वीपों के डूबने का खतरा बढ़ा है। इसी अनुपात में लू या गर्म दिनों में भी वृद्धि हो रही है।
मतलब, विश्व स्तर पर जलवायु बचाव के बड़े उपाय आजमाने की जरूरत है। देश और दुनिया के जिम्मेदार लोग और संस्थाएं भले ही मुंह चुराएं, मगर वैज्ञानिक प्रमाण बिल्कुल स्पष्ट हैं। जलवायु परिवर्तन पूरे जीव-जगत के कल्याण और हमारे ग्रह के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। हमें कतई इंतजार नहीं करना चाहिए कि आपदाएं हमारे द्वार पर आ खड़ी हों, तभी हम जागेंगे। बेशक, भारत सीएफएल बल्ब और हरित वाहनों के मामले में बहुतआगे निकल चुका है, पर पर्यावरण के बचाव के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। हरित ऊर्जा पर हमें ज्यादा ध्यान देना चाहिए। अपने स्वार्थ की रक्षा के लिए आंखें मूंदे रहने से आपदाएं नहीं टला करतीं। और जब हमें पता है कि हमारे शहर आने वाले वर्षों में ज्यादा आपदाएं झेलने वाले हैं, तो हमें ज्यादा सचेत होकर बचाव के उपाय करने चाहिए। निस्संदेह, शहरों को उनके अपने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण-संवर्द्धन से बचाना होगा।
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