Hindustan nazariya column 09 June 2025 शहरी विकास ने मानसून को खलनायक बना दिया, Nazariya Hindi News - Hindustan
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शहरी विकास ने मानसून को खलनायक बना दिया

पिछला पखवाड़ा मेरे लिए बारिश से हुए नुकसान की बुरी खबरों से भरा रहा। मानसून की शुरुआत बाढ़ और भूस्खलन की डरावनी सुर्खियों के साथ हुई। मैं तमिलनाडु में ऊटी-मेट्टुपलायम मार्ग पर मोटरसाइकिल से सफर कर रही थी…

Hindustan लाइव हिन्दुस्तानSun, 8 June 2025 11:15 PM
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शहरी विकास ने मानसून को खलनायक बना दिया

शालिनी उमाचंद्रन, एडिटर, मिंट लॉन्ज

पिछला पखवाड़ा मेरे लिए बारिश से हुए नुकसान की बुरी खबरों से भरा रहा। मानसून की शुरुआत बाढ़ और भूस्खलन की डरावनी सुर्खियों के साथ हुई। मैं तमिलनाडु में ऊटी-मेट्टुपलायम मार्ग पर मोटरसाइकिल से सफर कर रही थी। चारों ओर समुद्र सरीखा मंजर था। बारिश का पानी घरों, सड़कों, यहां तक कि एक्वा लाइन मेट्रो स्टेशन पर भी भर गया था।

भारत में गर्मी चाहे जैसी भी पड़े, बारिश का मौसम आते ही बदलाव आ जाता है। बारिश में हम चाय-पकौड़े के साथ इसका लुत्फ उठाते हैं, हमारी त्वचा पर ठंडी हवा के स्पर्श हमें रोमांचित करते हैं और बादलों से भरा आसमान हमें आनंदित करता है।

बचपन में हमें मौसम की पहली बारिश में भींगने को कहा जाता था, ताकि हम अपने चेहरे और हथेलियों पर बूंदों को महसूस कर सकें। महीनों से तप रही धरती पर जब बारिश की पहली बूंद पड़ती, तो उसे उठी सोंधी खुश्बू के साथ हम बरसात के मौसम का आनंद उठाते रहे हैं। बादलों को लेकर हमारे यहां न जानें कितनी कविताएं रची गई होंगी। कालिदास ने मेघदूतम् में घुमड़ते बादलों को लेकर विरह के सौ से अधिक श्लोक लिखे हैं। मेघों को लेकर हिन्दुस्तानी में मेघ और मल्हार से लेकर कर्नाटक में अमृतवर्षिणी तक कई शास्त्रीय राग हैं। बारिश के दृश्य पुरानी फिल्मों का जरूरी हिस्सा हुआ करते थे। तब मूसलाधार बारिश में हमारी सारी झिझक भी बह जाया करती थी। देश भर में मानसून के आगमन के साथ ही त्योहारों के मौसम भी आ जाते हैं। देश की हर भाषा में क्षेत्र विशेष की विशिष्ट बारिश के प्रकारों का वर्णन करने के लिए कई-कई शब्द हैं।

लेकिन रुकिए। भारत की अर्थव्यवस्था और हमारे जीवन में मानसून की इतनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद इसकी शुरुआती राहत अब जल्दी ही चिंता में बदल जाती है, जब बारिश के साथ जीवन की वास्तविकता सामने आती है। प्रकृति से बिल्कुल कटे और बेढब बुनियादी ढांचे वाले शहरों में हम अब आसमान को घबराहट के साथ देखने लगे हैं। अच्छे-खासे बसाए गए शहरों की वायरिंग को शॉर्ट-सर्किट करने के लिए बस कुछ घंटों की बारिश ही काफी है। शहरों के बीच प्राकृतिक रूप से मौजूद ताल-तलैयों को कंक्रीट के जंगल से भर दिया गया है। सड़कों के चौड़ीकरण के लिए पहाड़ों को काट दिया गया है और पानी के कुदरती प्रवाह और पानी को सोखने वाले स्रोतों को नष्ट कर दिया गया है। बारिश के पानी को पहले धरती सोख लेती थी। लेकिन यह अब सड़कों पर भरता है और उनको तालाब बना देता है। सड़कों पर भरा पानी यातायात को भी रोकता है।

देश के शहरों में बड़ी संख्या में लोग जर्जर और छोटे मकानों में रहते हैं। बारिश का पानी उनके सामान पर टपकता है, जो उनके मन की शांति के साथ-साथ कीमती सामान को भी नष्ट कर देता है। पहाडों की पारिस्थितिकी पर ध्यान दिए बिना हमने उनको छुट्टियां मनाने की जगह और रिसॉर्ट्स के तौर पर उपयोग करना शुरू कर दिया है। लेकिन इस मौसम के दौरान पहाड़ों में भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन ने भी मानसून की चाल को बिगाड़ा है। पहले जो बारिश हफ्तों में हुआ करती थी, वह जलवायु परिवर्तन के कारण अब कुछ ही घंटों में हो जा रही है। 2009 के बाद इस साल मानसून समय से बहुत पहले आया है। यह 24 मई को केरल में प्रवेश कर गया। हाल के वर्षों में सामान्य वर्षा होने के बावजूद इसका वितरण विभिन्न क्षेत्रों में अनिश्चित रहा है। कई बार अत्यधिक बारिश, तो कई बार सूखे ने जान-माल और आजीविका के साधनों को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है।

मानसून कभी हमारे लिए प्रेरणा और चिंतनशील विचारों का स्रोत था। लेकिन हमने इसे एक विनाशकारी, अप्रत्याशित शक्ति में बदल दिया है। बारिश एक तरफ पेड़ों और झाड़ियों पर जमी गंदगी को धो देती है, तो दूसरी ओर यह प्रकृति के प्रति हमारी घोर लापरवाही, शहरी नियोजन के प्रति आपराधिक शिथिलता और पर्यावरण के प्रति घोर उपेक्षा को भी उजागर करती है। मानसून अभी भी हमारे जीवन के केंद्र में है, लेकिन एक खलनायक के रूप में। और इसे खलनायक बनाने के जिम्मेदार हम ही हैं।

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