ईरान-इजरायल जंग का घरेलू शेयर मार्केट पर क्या होगा असर, क्या करें निवेशक?
विशेषज्ञों की सलाह है कि घबराने के बजाय सतर्क रहें और बाजार में गिरावट को लंबी अवधि के निवेश के लिए अच्छा मौका समझें।

बुधवार को भारतीय शेयर बाजार ने दिलचस्प मोड़ लिया। इजरायल-ईरान में जंग और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण दुनिया भर के बाजारों में सावधानी का माहौल था। वहीं, सुबह करीब 9:43 बजे, बीएसई सेंसेक्स 264 अंक (0.33%) की बढ़त के साथ 81,854 पर पहुंच गया। निफ्टी 50 भी 81 अंक (0.32%) चढ़कर 24,932 पर कारोबार कर रहा था। खास बात यह रही कि सेंसेक्स ने दिन के सबसे निचले स्तर 81,304 से 550 अंकों की शानदार वापसी की, लेकिन बहुत जल्द ही इसने यू-टर्न ले लिया। सेंसेक्स 81267 के दिन के निचले स्तर तक आ गया। दोपहर पौने दो बजे के करीब 254 अंक नीचे 81328 पर था। निफ्टी 71 अंक नीचे 24782 पर था।
तनाव के बीच निवेश रणनीति क्या हो?
विश्लेषकों का मानना है कि अभी तक तनाव उस सीमा तक नहीं पहुंचा है जहां बाजार में तेज प्रतिक्रिया हो, लेकिन वे चेतावनी देते हैं कि अगर तनाव और बढ़ता है, तो बाजार में एक बड़ी गिरावट आ सकती है।
वीएसआरके कैपिटल के निदेशक स्वप्निल अग्रवाल सलाह देते हैं, "हालांकि, ऐसी किसी भी गिरावट को 'डिप पर खरीदारी' का मौका मानना चाहिए, क्योंकि अर्थव्यवस्था की मूलभूत स्थितियां अभी भी मजबूत हैं। अगर भू-राजनीतिक तनाव फिर से भड़कता है, तो इसका सबसे तत्काल प्रभाव तेल बाजार पर पड़ने की संभावना है।"
रघुनाथ कैपिटल के एमडी सौरव चौधरी कहते हैं, "तेल और भू-राजनीतिक खतरे अभी भी मौजूद हैं, लेकिन वैश्विक बेचैनी के बीच निफ्टी की मजबूती बताती है कि इस संघर्ष को निवेशक एक अल्पकालिक घटना के रूप में देख रहे हैं, न कि कोई बड़ा खतरा। वे भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक मजबूत कहानी पर फोकस कर रहे हैं। हर गिरावट को खरीदारी का मौका समझा जा रहा है।"
बोनंजा के वरिष्ठ रिसर्च एनालिस्ट अनुभव संगल भी मानते हैं कि बाजार इस संघर्ष को सीमित रहने वाली घटना मानकर चल रहा है, न कि लंबे समय तक चलने वाले युद्ध के रूप में। हालांकि, वे सतर्क करते हैं, "भारतीय शेयर बाजार ने इस युद्ध के प्रभाव को आंशिक रूप से ही अपनाया है। यहां कमजोरी भी दिखी है और मजबूती भी। लेकिन यह अपनाना अभी पूरा नहीं हुआ है और शर्तों के साथ है।"
तेल और सोने की कीमतों में उछाल
जहां एक ओर मजबूत आर्थिक विकास, घटती महंगाई, सकारात्मक मौद्रिक नीति और विदेशी निवेशकों की दोबारा बढ़ती दिलचस्पी ने बाजार को सहारा दिया है, वहीं विश्लेषक मानते हैं कि कच्चे तेल की कीमतों में अचानक तेजी बड़ा जोखिम बनी हुई है।
हालिया हमलों के बाद कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई है। ब्रेंट क्रूड का भाव लगभग 5 महीने के उच्च स्तर 76 प्रति बैरल डॉलर के पास पहुंच गया है। भारत के लिए यह चिंता का विषय है, क्योंकि देश बड़ी मात्रा में तेल आयात करता है। मास्टर ट्रस्ट ग्रुप के निदेशक पुनीत सिंघानिया बताते हैं कि इस स्थिति से महंगाई बढ़ेगी, रुपया कमजोर होगा और आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी पड़ सकती है।
इस नए मध्य पूर्व संघर्ष के बीच कच्चे तेल की कीमतें पहले ही 10% बढ़ चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर तनाव और बढ़ता है, तो कीमतों में और 8-9% का उछाल आ सकता है। मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के ग्रुप सीनियर वाइस प्रेसिडेंट और कमोडिटीज रिसर्च हेड नवनीत दमानी कहते हैं, "इजरायल के ईरान पर हवाई हमलों ने आपूर्ति में रुकावट का डर पैदा कर दिया है, जिससे क्रूड ऑयल की कीमतें बढ़ गई हैं। चिंता यह है कि यह स्थिति एक पूर्ण क्षेत्रीय संकट में बदल सकती है, जिसका वैश्विक तेल आपूर्ति पर गंभीर असर होगा।"
इधर, सोने की कीमतें भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। इजरायल के ईरान पर हमले के बाद बढ़े मध्य पूर्व तनाव के कारण निवेशक सुरक्षित निवेश विकल्पों की ओर भागे। इसका नतीजा यह हुआ कि घरेलू बाजार में सोना पहली बार एक लाख रुपये प्रति 10 ग्राम के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी सोना 3500 डाॅलर प्रति औंस के आसपास पहुंच गया।