50 foreigners were trapped in a cave and killed like this, Bhagwan Birsa Munda Martyrdom Day गुफा में फंसाकर ऐसे मार डाले 50 फिरंगी, भगवान बिरसा मुंडा के शहादत दिवस पर पढ़िए रोचक किस्से, Jharkhand Hindi News - Hindustan
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गुफा में फंसाकर ऐसे मार डाले 50 फिरंगी, भगवान बिरसा मुंडा के शहादत दिवस पर पढ़िए रोचक किस्से

स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज, लंदन यूनिवर्सिटी के लिए किए गए शोध में सुरेश सिंह ने पीपी हेम्ब्रोम का उल्लेख करते हुए लिखा, लोककथाओं में बिरसा मुंडा महान योद्धा और चतुर सेनानी थे।

Ratan Gupta हिन्दुस्तान, रांचीMon, 9 June 2025 07:22 AM
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गुफा में फंसाकर ऐसे मार डाले 50 फिरंगी, भगवान बिरसा मुंडा के शहादत दिवस पर पढ़िए रोचक किस्से

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा का शहादत दिवस नौ जून को मनाया जाता है। बिरसा मुंडा से जुड़ी कई रोचक घटनाएं लोककथाओं में मिलती हैं। स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज, लंदन यूनिवर्सिटी के लिए किए गए शोध में सुरेश सिंह ने पीपी हेम्ब्रोम का उल्लेख करते हुए लिखा, लोककथाओं में बिरसा मुंडा महान योद्धा और चतुर सेनानी थे।

हेम्ब्रोम के अनुसार, एक बार बिरसा जब जमगई वन में छिपे थे, तब 50 की संख्या में ब्रिटिश सैनिकों की टुकड़ी वहां पहुंची। ब्रिटिश सैनिक बिरसा को चेहरे से नहीं पहचानते थे, यही वजह है कि खुद ब्रिटिश सैनिकों ने बिरसा के बारे ही उनसे पूछा। इस पर उन्होंने अज्ञानता जाहिर की। तब सैनिकों ने उन्हें पैसे का प्रलोभन देकर बिरसा के बारे में बताने को कहा। तब ब्रिटिश सैनिकों को चकमा देते हुए उन्होंने कहा कि बिरसा एक गुफा में छिपे हैं। इसपर सैनिक गुफा के अंदर चले गए।

सैनिकों के अंदर जाते ही बिरसा ने चालाकी से बड़े चट्टान से गुफा का दरवाजा बंद कर दिया। काफी दिनों तक ब्रिटिश सैनिक गुफा में फंसे रहे और भूखे-प्यासे मर गए। हालांकि घटना का प्रमाण नहीं हैं। दूसरी ओर द्वितीय विश्व युद्ध के समय 1939-45 के बीच जब मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने बिरसा रेजीमेंट के लिए आदिवासियों की भर्ती कराई तब वहां बिरसा का जयघोष कराया था। कर महायुद्ध की तैयारी में मदद की, तब पहली बार बिरसा का नाम एक जयघोष के रूप में प्रयोग में लाया गया था।

धरती आबा की मौत का कारण आजतक अनसुलझा

रांची में 9 जून 1900 में उनकी मृत्यु का कारण हैजा का प्रकोप बताया जाता है, पर शोधकर्ता और इतिहासकार आजतक यह स्पष्ट नहीं कर पाए हैं। जनवरी 1998 में बिहार जनजातीय कल्याण शोध संस्थान मोरहाबादी के ‘शहीद’ विशेषांक में तत्कालीन सहायक निदेशक सोमवा सिंह मुंडा ने लिखा था कि उनकी मृत्यु का एक कारण हैजा तो कहा जा रहा है, लेकिन यह भी आशंका जताई गई कि उनकी मृत्यु जहर देने से हुई थी।

हालांकि यह भी प्रमाणिक तथ्य नहीं है। भगवान बिरसा की मृत्यु की पहली खबर जर्मन मिशनरियों के द्वारा शुरू की गई गोस्सनर एंवेजिकल लूथरन चर्च की पत्रिका ‘घर बंधु’ में प्रकाशित हुई थी। इसके अलावा किसी पत्र-पत्रिका व पुस्तक में बिरसा मुंडा की मृत्यु की खबर नहीं छपी थी। इसलिए आज भी उनके मृत्यु के कारणों पर इतिहासकारों में बहस जारी है।

जन्म स्थान और जन्म वर्ष को लेकर अभी भी बहस

भगवान बिरसा मुंडा के जन्म को सरकार के आंकड़े में 15 नवंबर 1875 को स्वीकृत कर लिया गया है। जबकि कई इतिहासकारों में उनके जन्म और स्थान को लेकर बहस जारी है। कुमार सुरेश सिंह अपने पुस्तक बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन 1872-1901 में लिखते हैं कि रेव्ह मैथ्यू द्वारा बर्लिन में प्राप्त एक लिखित दस्तावेज से पता चलता है कि बिरसा का जन्म 22 जुलाई 1872 को हुआ था। जिनका बपस्तिमा 11 अगस्त को किया गया था। जबकि भरमी मुंडा ने भी 1872 का उल्लेख किया।

वहीं इससे जुड़े तथ्य बुर्जु चर्च में नहीं मिले। चाईबासा मिशन से मिले दस्तावेज में बिरसा के ईसाई के रूप में पुष्टि 10 मार्च 1886 को हुई थी, जो संभवत सोमवार का दिन पड़ता है। वहीं दूसरा तर्क यह भी है कि उनका जन्म बृहस्पतिवार को हुआ था। दूसरी ओर सरकारी स्तर पर बिरसा का पैतृक गांव उलिहातू जन्मस्थली के रूप में मान्यता दे दी गई। जबकि ग्राम कुंदी को जन्म स्थल के रूप में जांचने के बाद यह स्पष्ट नहीं हो पाया। दूसरी ओर चाईबासा मिशन के रिकॉर्ड में उन्हें बंबा का रहने वाला बताया गया है।