Struggles of MGNREGA Workers Low Pay and Unfulfilled Promises in Hazaribagh बोले हजारीबाग :कम और समय पर मानदेय नहीं मिलने से मनरेगाकर्मी हलकान, Hazaribagh Hindi News - Hindustan
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बोले हजारीबाग :कम और समय पर मानदेय नहीं मिलने से मनरेगाकर्मी हलकान

मनरेगा योजना से गांव-गांव तक विकास के कार्य जरूर हो रहे हैं पर मनरेगाकर्मियों की हालत खसता है। पिछले 17 वर्षों से सेवा दे रहे इन मनरेगा कर्मियों को न

Newswrap हिन्दुस्तान, हजारीबागTue, 27 May 2025 02:56 AM
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बोले हजारीबाग :कम और समय पर मानदेय नहीं मिलने से मनरेगाकर्मी हलकान

हजारीबाग । मनरेगा कर्मियों का जीवन संघर्षों से भरा है। उन्हें प्रतिदिन फील्ड में जाकर मजदूरों को काम देना होता है, कार्य का निरीक्षण करना होता है और रिपोर्टिंग भी करनी होती है। इसके बावजूद रोजगार सेवकों को मात्र 8 से 10 हजार रुपये मासिक मानदेय दिया जाता है, जिससे न तो परिवार चल पाता है, न बच्चों की पढ़ाई हो पाती है। दिसंबर 2024 से कई कर्मियों को 6 महीने से मानदेय नहीं मिला है। 8 अक्तूबर 2024 को सरकार ने 30% मानदेय वृद्धि और सामाजिक सुरक्षा की सहमति दी थी, लेकिन आज तक लागू नहीं किया गया। वहीं मजदूरों के लिए ईपीएफ जैसी सुविधा आज तक शुरू नहीं हुई है, जिससे कर्मियों का भविष्य असुरक्षित बना हुआ है।

गृह पंचायत से दूर पोस्टिंग होने से कर्मियों को मानसिक और शारीरिक कष्ट होता है, फिर भी उन्हें कोई यात्रा भत्ता नहीं दिया जाता। दबंगों से टकराव की स्थिति में सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। कई बार जान का खतरा भी बना रहता है। मनरेगा अब मांग आधारित न होकर टारगेट आधारित बन गया है, जिससे मजदूरों की रुचि और योजनाओं की गुणवत्ता दोनों प्रभावित हो रही हैं। कर्मियों को समय-समय पर नए नियमों के कारण कार्य बाधित होता है। इससे न तो लक्ष्य पूरा होता है, न मजदूरों को समय पर काम मिलता है। महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने वाले ये कर्मी, स्वयं सामाजिक सुरक्षा से वंचित हैं। हजारीबाग में बिरसा खेल मैदान, कुआं निर्माण, डोभा, तालाब, टीसीबी जैसे कार्यों के माध्यम से लोगों को मनरेगा योजना का लाभ मिल रहा है। इस योजना के आने से मजदूरों का पलायन काफी हद तक रुका है। हालांकि, कुछ सरकारी अड़चनों के कारण लोगों को कार्य प्राप्त करने में कठिनाइयां भी होती हैं। विदित हो कि मनरेगा के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का शारीरिक श्रम आधारित रोजगार दिए जाने की गारंटी कही जाती है। यहां के लोगों को रोजगार मिलता है, लेकिन बाजार भाव से कम मजदूरी मिलने के कारण यहां काम करने से मजदूर बचते हैं । मजदूर बताते हैं कि काम करने के बाद मजदूरी के लिए लंबा समय तक इंतजार करना पड़ता है। बाजार में एक दिन की मजदूरी 500 मिलता है तो मनरेगा में 261 रुपए मजदूरी मिलती है। मजदूरी में इतना अधिक फर्क होने के कारण मजदूर मजबूरी में यह रोजगार उस वयस्क व्यक्ति को दिया जाता है, जो स्वेच्छा से इसके लिए तैयार हो।विदित हो कि मनरेगा से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिला है। हजारीबाग में ग्रामीण क्षेत्र के लोग हरित बिरसा बागवानी योजना के तहत आम की बागवानी कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं। युवाओं का बागवानी की ओर बढ़ता रुझान देखते हुए इस वर्ष हजारीबाग जिले में 2500 एकड़ भूमि में आम की बागवानी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को वर्ष 2005 में सरकार ने एक प्रमुख कार्यक्रम के रूप में शुरू किया था। यह अधिनियम गरीबों की जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ा है और समग्र विकास को बढ़ावा देता है। यह विश्व का अपनी तरह का पहला अधिनियम है, जो रोजगार की गारंटी प्रदान करता है। प्रस्तुति: कौशल कुमार बागवानी कर आय बढ़ा रहे लोग मनरेगा योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाए हैं। आज लोग हरित बिरसा बागवानी योजना के तहत आम की बागवानी कर अपनी आय बढ़ा रहे हैं। इससे उनकी हालत सुधरी है। हजारीबाग जिले में इस वर्ष 2500 एकड़ भूमि पर आम बागवानी का लक्ष्य तय किया गया है। वर्ष 2005 में शुरू की गई यह योजना गरीबों की आजीविका सुरक्षा और सतत विकास को बढ़ावा देती है। यह दुनिया की पहली योजना है जो कानूनी रूप से रोजगार की गारंटी देती है। सौ दिन का मिल रहा रोजगार इस अधिनियम के तहत हर ग्रामीण परिवार के एक वयस्क सदस्य को वित्तीय वर्ष में 100 दिन का शारीरिक श्रम आधारित रोजगार देना अनिवार्य है। इसका उद्देश्य टिकाऊ परिसंपत्तियां तैयार करना और आजीविका के साधनों को सशक्त बनाना है। यह सूखा, मृदा क्षरण, वनों की कटाई जैसी समस्याओं से उत्पन्न निर्धनता से लड़ने का भी माध्यम है। मनरेगा अधिकार आधारित योजना है, जिसमें मांग के अनुसार रोजगार देने की गारंटी और 15 दिनों के भीतर भुगतान सुनिश्चित किया गया है। लोगों को डोभा का मिल रहा लाभ हजारीबाग जिले में मनरेगा के तहत 1.55 लाख निबंधित मजदूरों को रोजगार दिया जा चुका है। बिरसा खेल मैदान, कुआं निर्माण, डोभा, तालाब, टीसीबी जैसे कार्यों से लोगों को लाभ हो रहा है। पलायन की दर घटी है, लेकिन सरकारी प्रक्रियाओं की जटिलता के कारण कभी-कभी काम में बाधा आती है। यह योजना गांव में रहकर जीवन सुधारने का सशक्त माध्यम बनी है और सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था सुधार की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। मनरेगाकर्मियों ने कहा-मानदेय कम मिलने से होती है परेशानी 8 अक्टूबर 2024 को हुए समझौते में 30% मानदेय बढ़ोतरी और सामाजिक सुरक्षा की सहमति बनी थी, लेकिन आज तक लागू नहीं हुई। -जितेंद्र कुमार 6 महीने से मानदेय नहीं मिला है। अल्प मानदेय में परिवार चलाना बेहद कठिन हो गया है। शीघ्र भुगतान करना चाहिए। -सुबोध कुमार सिंह अब मांग आधारित न होकर टारगेट आधारित हो गया है, रुचि के अनुसार योजनाओं को चयनित कर क्रियान्वयन हो तो रोजगार बढ़ेगा। -अरुण पासवान नए नियमों से कार्य बाधित होता है। यह गरीबों की योजना है, लचीलापन लाकर कार्य की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है। -विवेक कुमार सिंह मनरेगा विश्व की सबसे बड़ी गरीबों की योजना है। मजदूरों का भुगतान सीधे खातों में होता है। यह कोरोना काल में जीवन रक्षक साबित हुई। -युगेश कुमार न्यूनतम 26,500 रुपये मानदेय मिलना चाहिए। कार्य क्षेत्र भ्रमण के लिए यात्रा और मोबाइल भत्ता भी दिया जाना आवश्यक है। -संजय पासवान मनरेगा कर्मी गांवों में मजदूरों से करीबी संबंध रखते हैं। वे अन्य समस्याओं में भी सहयोग करते हैं और सेवा भाव से काम करते हैं। -रामकुमार कुशवाहा 17 वर्षों से सेवा में रहने के बावजूद कर्मियों का ईपीएफ नहीं कटता है। जॉइनिंग तिथि से ईपीएफ जोड़कर इसका लाभ देना चाहिए। -अनीश कुमार दलपतियों को पंचायत सचिव में समायोजित किया गया, मनरेगा कर्मियों को ग्रामीण विकास विभाग में समायोजित किया जाए। -राजीव कुमार दबंगों से टकराव की स्थिति बनती है। ऐसी परिस्थितियों में संरक्षा की ठोस व्यवस्था होनी चाहिए ताकि कर्मी बिना दबाव काम कर सकें। -बालेश्वर साव 17 वर्षों में महंगाई बढ़ी लेकिन मानदेय नहीं। सम्मानजनक जीवन और जरूरतों के लिए पर्याप्त मानदेय सुनिश्चित करना चाहिए। -नीरज हजारी वर्षों से सेवा दे रहे मनरेगा कर्मियों को हटाना गलत है। सरकार को इस पर रोक लगानी चाहिए और सेवा सुरक्षा की नीति बनानी चाहिए। -लखन रविदास इनकी भी सुनिए मनरेगा कर्मियों की जायज समस्या है। मनरेगाकर्मियों की समस्याओ के संबंध में वरीय अधिकारियों को जानकारी दी गयी है। उम्मीद है उनकी समस्या का जल्द समाधान होगा। जहां तक मजदूरी के निर्धारण की बात है तो यह मनरेगा अधिनियम से तय होता है यहां बाजार मूल्य से मतलब नहीं है। मो इश्तेयाक अहमद डीडीसी हजारीबाग केंद्रांश नहीं मिलने से छह महीने से मानदेय नहीं मिला है पर इस दिशा में कोशिश तेजी से जारी है। 30 प्रतिशत इंक्रीमेंट की बात भी हुई है पर इसकी प्रतीक्षा की जा रही है। मनरेगा कर्मियों की ईपीएफ आदि को लेकर बात आगे चल रही है। प्रभात रंजन डीपीओ मनरेगा हजारीबाग

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