बोले हजारीबाग : खेल मैदान और प्रशिक्षक की कमी से जूझ रहे विवि के खिलाड़ी
विनोबा भावे विश्वविद्यालय में खेल मैदान और प्रशिक्षक की कमी से खिलाड़ी तैयार नहीं हो रहे हैं। एक ही व्यक्ति को तीन-चार खेलों का प्रशिक्षक बना देना सि

हजारीबाग । हजारीबाग के विनोबा विश्वविद्यालय में खेल मैदान और प्रशिक्षकों की कमी के कारण विवि के खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का मौका नहीं मिल रहा है। विश्वविद्यालय में करोड़ों रुपये की लागत से बनाया गया जिम महज एक शोपीस बनकर रह गया है। यह अंडरग्राउंड जिम बारिश के पानी से बर्बाद हो चुका है। कोरोना से पहले ही जलजमाव के कारण चार ट्रेड मिल और कई इलेक्ट्रिक उपकरण खराब हो चुके हैं। वर्षों से शिकायतें की जा रही हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं। जिम और खेल अलग मुद्दे हैं, लेकिन विश्वविद्यालय ने इन्हें एक ही व्यक्ति के कंधों पर लाद दिया है।
जिम ट्रेनर को तीन-चार खेल भी सौंप दिए गए हैं। नतीजा यह है कि न जिम की हालत सुधर रही है, न खेलों की। वहीं विश्वविद्यालय में खेल कोच की भी कमी है। जब कोई प्रतियोगिता नजदीक आती है, तब तात्कालिक तौर पर कोच बुलाए जाते हैं। यानी तैयारी भी तदर्थ, और प्रदर्शन भी। अगर स्थायी नियुक्तियां की जाएं, तो खिलाड़ियों को नियमित प्रशिक्षण मिल सकता है और पदक जीतना कोई सपना नहीं रहेगा।यहां आने वाले लगभग 70% छात्र सिर्फ पढ़ाई के लिए आते हैं। 20% सिर्फ डिग्री के लिए और केवल 10% ही खेल के प्रति गंभीर होते हैं। इन 10 प्रतिशत में से योग्य खिलाड़ी को चुनना, प्रशिक्षित करना और दो साल में पदक दिलवाना] यहां के ढांचे में लगभग असंभव है। मास्टर्स कोर्स पूरा होते ही विद्यार्थी या तो नौकरी की तैयारी में लग जाते हैं या शहर छोड़ देते हैं। पूर्व छात्र बनने के बाद नियम-कानून बदल जाता है और प्रशिक्षक उन्हें नहीं संभाल पाते। सेमेस्टर प्रणाली से खेल पर पड़ता है असर: सेमेस्टर प्रणाली खेल गतिविधियों की सबसे बड़ी दुश्मन साबित हो रही है। साल में दो बार परीक्षा, परीक्षा से पहले की तैयारी, नामांकन, परिणाम की प्रतीक्षा, छुट्टियां इन सब कारणों से खेलों के लिए समय ही नहीं बचता। पहले वार्षिक परीक्षा प्रणाली थी, तो छात्रों को पढ़ाई और खेल दोनों के लिए पर्याप्त समय मिलता था। खेलों से अधिक नौकरी का दबाव: यहां के छात्र खेल की बजाय सरकारी नौकरी की दौड़ में शामिल हैं। उन्हें पास होना है, नेट, जेआरएफ, पीएससी, एसएससी, बैंक, रेलवे जैसी परीक्षाओं की तैयारी करनी है। इस मानसिकता के साथ खेल में न तो समय है, न ऊर्जा। वहीं विश्वविद्यालय प्रशासन खेल को प्राथमिकता नहीं देता। प्रशासनिक और शैक्षणिक कार्य ही सब कुछ हैं। जब तक कोई वरिष्ठ अधिकारी व्यक्तिगत रुचि नहीं लेता, तब तक खेल विभाग पूरी तरह उपेक्षित रहता है। जबकि खिलाड़ियों को भी उसी तरह की सुविधाएं मिलनी चाहिए जैसी शिक्षा के क्षेत्र में दी जाती है। हॉकी का मैदान नहीं होने से होती है परेशानी : विश्वविद्यालय में हॉकी के लिए मैदान नहीं है। इससे हॉकी खिलाड़ी को अभ्यास करने में परेशानी होती है। मैदान नहीं होने के कारण हॉकी के खिलाड़ियों को खुले मैदान में अभ्यास करना पड़ता है। इससे उन्हें चोट लगने का भय रहता है। लड़कियों की भागीदारी बहुत कम: झारखंड के गुमला, खूंटी, लातेहार जैसे क्षेत्रों में जहां लड़कियां खेल में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं, वहीं विश्वविद्यालय में लड़कियों की भागीदारी लगभग नगण्य है। जिम में भी उनके लिए अलग बैच हैं, लेकिन वहां भी संसाधनों की भारी कमी है। कोचिंग और संसाधन की कमी विनोबा भावे विश्वविद्यालय में खेलों के लिए मैदान और जिम तो हैं, लेकिन प्रशिक्षकों की भारी कमी है। एक ही व्यक्ति कई खेलों का कोच है और स्थायी कोच की नियुक्ति नहीं हुई है। किसी भी प्रशिक्षक का राष्ट्रीय अनुभव नहीं है, जिससे उच्चस्तरीय प्रतियोगिताओं में प्रदर्शन प्रभावित होता है। प्रतियोगिता के समय कुछ हफ्तों के लिए अस्थायी कोच बुलाए जाते हैं, लेकिन स्थायी कोचिंग व्यवस्था की अनुपस्थिति में खिलाड़ियों का विकास बाधित होता है। विवि का जिम भी है खस्ताहाल करीब डेढ़ करोड़ की लागत से बना जिम अब उपेक्षा का शिकार है। बरसात में पानी भरने और बिजली की खराब वायरिंग से करीब 20 लाख की मशीनें खराब हो चुकी हैं। शोल्डर प्रेस, लेग प्रेस, बटरफ्लाई जैसी मशीनें बेकार पड़ी हैं। कई बार अधिकारियों को सूचित करने के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ। जिम में शीशे, वाटर कूलर और बिजली कनेक्शन जैसे बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं, इससे इसका उपयोग सीमित रह गया है। साथ ही खिलाड़ियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। खेलों के प्रति कम है छात्रों की रुचि विश्वविद्यालय में 70 प्रतिशत छात्र केवल पढ़ाई के लिए आते हैं। वहीं 20 फीसदी विद्यार्थी डिग्री पाने के लिए आते हैं। इसमें मात्र 10 प्रतिशत विद्यार्थी ही खेलों के प्रति रुचि रखते हैं। इन विद्यार्थियों में से भी ज्यादातर छात्र पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तैयारी में लग जाते हैं। खिलाड़ियों की पहचान और प्रशिक्षण का समय सीमित होता है। इससे वे राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के लिए तैयार नहीं हो पाते हैं। छात्र खेल के बजाय सरकारी नौकरी की तैयारी में ज्यादा ध्यान देते हैं। विद्यार्थियों ने कहा-खेल के लिए संसाधन हो उपलब्ध खेल के संबंध में नोटिस कब निकलता है पता ही नहीं चलता है। न वाट्सएप ग्रुप में कभी नोटिस आया न विभाग के सूचना बोर्ड पर दिखता है। -संजय कुमार यादव पहले जिन खेल प्रतियोगिता में भाग लिया और पदक पाया, उसका प्रमाण पत्र अभी तक नहीं मिला है। -देवनाथ राज खेल का कार्यक्रम केवल खानापूर्ति के लिए हो रहा है। जब भी खेल का कोई सामान मांगने जाते हैं तो बताया जाता है ऊपर से पूछ कर देंगे। -ज्ञानेंद्र सेमेस्टर सिस्टम के कारण खेल का मौका कम मिलता है। साल में दो बार परीक्षा के कारण खेल का समय घटता है। -सोनू कुमार बड़ी प्रतियोगिता के कुछ सप्ताह पहले कुछ खेलों में प्रशिक्षक को बुलवाकर ट्रेनिंग दी जाती है। स्थायी प्रशिक्षक होने चाहिए। - प्रमोद कुमार एक ही व्यक्ति तीन चार खेल के प्रशिक्षक का काम करते हैं। इससे साफ समझ में आता है वो हर खेल के औसत प्रशिक्षक साबित होंगे। -अरविंद महतो खेल का मैदान तो है पर हर खेल के लिए उसके माप के हिसाब से स्थायी मैदान नहीं है। हॉकी का कोई विशेष मैदान नहीं है। - आत्मानंद पांडे जिम में सामान तो है पर जितना एक साथ जरूरत पड़ता है उतना नहीं मिल पाता है। जिम में रखी बहुत सी चीजें प्रयोग के लायक नहीं है। -आदिल खान चार ट्रेड मिल है। चारों लंबे समय से खराब है। कई बार इस संबंध में शिकायत किया, परन्तु आज तक ठीक नही हुआ। -निकेत कुमार जिम में वाटर कूलर नहीं लगा है। लोग अपने साथ पानी लेकर आते हैं। जिम में शीशा होना चाहिए। यहां नहीं है।-शैलेश प्रथम ज्यादातर बच्चे खेल में अभी भी कोई करियर नहीं देखते हैं। बस फिट रहने के लिए खेलते हैं। इस कारण प्रतियोगिता में कम बच्चे देखते हैं। - इंद्रजीत कुमार विवि प्रशासन मुख्य रूप से शैक्षणिक और प्रशासनिक कार्यों को प्रमुखता देता है। इसका असर खेल गतिविधियों पर भी पड़ता है। -नोबेल प्रकाश पंडित इनकी भी सुनिए विनोबा भावे विश्वविद्यालय में खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। हमारे बच्चे कई प्रतिस्पर्धा में पदक भी लाए हैं। जो भी कमी है उस पर गम्भीरता से चर्चा कर आने वाले समय में दूर कर दी जाएगी, ताकि प्रतियोगिता में यहां के खिलाड़ी और बेहतर प्रदर्शन कर सके। प्रो राखोहरी, खेल निदेशक, विनोबा भावे विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय में खेल संसाधनों की कोई कमी नहीं है और यहां के विद्यार्थियों ने पहले भी अंतर विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया है। नए कुलपति की भी यही मंशा है कि यहां खेल कूद की गतिविधियां फिर से शुरू हो। राष्ट्रीय स्तर पर हम कोई ट्रॉफी जीतें, यह उनके प्राथमिकता में है। -डॉ अविनाश, पूर्व खेल सचिव, पी जी एथेलेटिक्स क्लब, विभावि
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।