अन्ना यूनिवर्सिटी रेप केस: तेज सुनवाई से मुमकिन है न्याय
चेन्नई की एक निचली अदालत ने बलात्कार के एक मामले में दोषी ए ज्ञानसेकरन को मात्र छह महीने में सजा सुनाई। पीड़िता की शिकायत पर पुलिस ने त्वरित चार्जशीट पेश की। अदालत ने ज्ञानसेकरन को 30 साल की सजा सुनाई...

ऐसे समय में जब भारतीय अदालतें लंबित मामलों की बाढ़ से जूझ रही हैं, वहीं चेन्नई की एक निचली अदालत ने रेप के एक मामले में दोषी को मात्र छह महीने के भीतर सजा सुनाई है.चेन्नई की अन्ना यूनिवर्सिटी के कैंपस में 19 साल की छात्रा से दिसंबर 2024 में रेप की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था.यूनिवर्सिटी कैंपस को छात्रों के लिए सबसे सुरक्षित जगह समझी जाती है.कैंपस के भीतर बलात्कार ने वहां की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े कर दिए.अब चेन्नई की निचली अदालत ने पीड़ित छात्रा को ना केवल समयबद्ध इंसाफ दिया बल्कि दूसरी अदालतों के लिए एक मिसाल भी पेश किया.साथ ही पुलिस ने भी मामले को जल्द निपटाने के लिए बिना देरी के चार्जशीट पेश किए.चेन्नई की महिला अदालत ने अन्ना यूनिवर्सिटी के कैंपस में छात्रा से बलात्कार के दोषी ए ज्ञानसेकरन को सजा सुनाते हुए कहा है कि उसे कम से कम 30 साल जेल में बिताने होंगे.महिला अदालत की जज एम राजलक्ष्मी दोषी को बिना किसी छूट और माफी की संभावना के आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.दोषी पर 90,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है.महिला अदालत ने ज्ञानसेकरन को 28 मई को 11 आरोपों में दोषी पाया था.अदालत ने अभियोजन पक्ष की ओर से उसके खिलाफ साबित किए सभी 11 आरोपों पर सजा सुनाई.अदालत ने कहा कि सजाएं एक साथ चलेंगी.इस हाई प्रोफाइल मामले की जांच के लिए तमिलनाडु पुलिस ने लिए वरिष्ठ महिला आईपीएस अधिकारियों की एक स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन किया. जिसने 24 फरवरी 2025 को 100 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की.ज्ञानसेकरन को भारतीय न्याय संहिता, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम के तहत सभी आरोपों में दोषी पाया गया.हम्पी के पास दो महिलाओं का गैंगरेप और एक पर्यटक की हत्या6 महीने के भीतर सजा का एलान23 दिसंबर 2024 की रात 8 जब 19 साल की पीड़ित छात्रा अपने पुरुष दोस्त के साथ यूनिवर्सिटी कैंपस की पुरानी बिल्डिंग के पास बैठी थी, तभी वहां 37 साल का ज्ञानसेकरन वहां आया और दोनों का वीडियो बनाया, आरोपी ने लड़की के दोस्त को धमकाया और मारपीट कर वहां से उसे भगा दिया.इसके बाद उसने एक सुनसान जगह पर छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न किया और अपने मोबाइल फोन पर इसे रिकॉर्ड कर लिया.इसके बाद उसने उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश की और धमकी दी कि अगर उसने उसकी मांगें पूरी नहीं कीं तो वह वीडियो उसके पिता और कॉलेज के अधिकारियों को भेज देगा.हालांकि छात्रा ने चुप नहीं रहने का विकल्प चुना और अपने परिवार और कॉलेज की मदद से उसने अगले दिन कोट्टूरपुरम ऑल विमेन पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कराई.25 दिसंबर को ज्ञानसेकरन को गिरफ्तार कर लिया गया.आरोपी ज्ञानसेकरन यूनिवर्सिटी कैंपस के पास ही बिरयानी बेचता था.अन्ना यूनिवर्सिटी में बलात्कार ने पूरे राज्य में राजनीति गर्मा दी.विपक्षी दल बीजेपी ने इस घटना के बाद विरोध प्रदर्शन किया.छात्रों ने भी न्याय की मांग को लेकर प्रदर्शन किया.अन्ना यूनिवर्सिटी हाई सिक्योरिटी जोन में आती है.कैंपस के पास ही राजभवन और आईआईटी मद्रास है. बलात्कार की घटना से कैंपस की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हुए.इस मामले ने राष्ट्रीय स्तर पर तब सुर्खियां बटोरीं जब पीड़िता की पहचान वाली एफआईआर आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड की गई, जिसे बाद में मीडियाकर्मियों के बीच प्रसारित किया गया.मद्रास हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और एफआईआर के लहजे और कैंपस में सुरक्षा चूक के लिए तमिलनाडु पुलिस को फटकार लगाई.कम समय में सजा, एक नजीर अदालतों में मामले के निपटान के लिए पुलिस, वकील, जांच एजेंसियां और गवाह अहम किरदार निभाते हैं.हालांकि यही किरदार देश में करोड़ों मुकदमों के लंबित होने का कारण भी बन रहे हैं.कई मामलों में पुलिस समय पर चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाती तो कई मामलों में वकील भी पेश नहीं होते.निचली अदालत से लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम तक में मामले लंबे अरसे तक सुनवाई के इंतजार में रहते हैं.वर्तमान में मामलों के निपटारे के लिए कोई निर्धारित समय-सीमा नहीं है क्योंकि अदालतें वकीलों की अनुपस्थिति के कारण सुनवाई नहीं कर पाती हैं.अन्ना यूनिवर्सिटी मामले में बिना किसी छूट के उम्र कैद की सजा का अदालत का फैसला दुर्लभ है.महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इतने कम समय में सजा सुनाना एक नजीर पेश करता है.पीपल अगेंस्ट रेप्स इन इंडिया (पीएआरआई) की संस्थापक योगिता भयाना कहती हैं, "इंसाफ के लिए न्यायपालिका के बहुत चक्कर लगाने पड़ते हैं, सालों साल अदालतों में सुनवाई होती है.यह बात तो पीड़िता को भी पता होती है, लेकिन अगर इस तरह से सुनवाई होगी तो पीड़िता का मनोबल बढ़ेगा और आरोपी का मनोबल गिरेगा, क्योंकि उसे लगेगा कि अदालतें जल्द फैसला सुना रही हैं"अदालतों में लंबित मामलेयोगिता भयाना ने डीडब्ल्यू से कहा, "चेन्नई की महिला अदालत ने एक समय सीमा के भीतर अपना फैसला सुना दिया लेकिन मैं चाहती हूं कि ऐसे मामलों में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की भी समय सीमा तय होनी चाहिए.अगर इस मामले दोषी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाता है तो हो सकता है कि मामला वहां अटक सकता है"भयाना दिल्ली के कुछ मामलों का उदाहरण देती हैं कि कैसे निचली अदालत ने फैसला सुना दिया लेकिन ऊपरी अदालतों में मामला जाकर अटक गया. उन्होंने कहा, "निचली अदालतें समय पर फैसला तो दे रही हैं लेकिन हाई कोर्ट और खासकर सुप्रीम कोर्ट में मामले लंबित हो जाते हैं.हम चाहते हैं कि इस तरह के मामलों की सुनवाई तीनों अदालतों में एक तय सीमा के भीतर हो"निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में लंबित मामलों की सूची लगातार बढ़ रही है.नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड के आंकड़ों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 83 हजार के पार हो गई है.ई-कोर्ट सर्विसेज के आंकड़ों में बताया गया है कि देश की तमाम अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पांच करोड़ के पार है.भारत: कम ही बलात्कार के मामलों में साबित होता है दोषभारत में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसामहिलाओं के खिलाफ हिंसा की खबर आए दिन भारत के किसी ना किसी शहर या गांव से आती है.एक तथ्य यह भी है कि बलात्कार जैसे अपराधों के कम ही मामलों में दोष साबित होता है या फिर दोषी को सजा मिलती है.कई बार पीड़ित या उसका परिवार दबाव में आकर पुलिस को अपनी शिकायत भी नहीं देता.साल 2023 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 के मुकाबले 2022 में महिलाओं के प्रति अपराध में चार प्रतिशत का इजाफा हुआ.देश में अपराध के 58 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए, जिनमें महिलाओं के प्रति अपराध के करीब साढ़े चार लाख मामले थे.एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में देश में पुलिस ने यौन हिंसा के 31,516 मामले दर्ज किए.2021 की तुलना में यह संख्या 20 फीसदी ज्यादा थी.माना जाता है कि ये संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है, क्योंकि कई मामलों में महिलाएं या उनके परिजन शर्म या पुलिस के प्रति अविश्वास के कारण शिकायत दर्ज नहीं करते हैं.