कर्नाटक में कांग्रेसी वोट बैंक में सेंधमारी का क्या है BJP का नया दांव, इंटरनल कोटा पर हंगामा क्यों?
राजनीति के इसी दांव-पेंच में राज्य की बसवराज बोम्मई सरकार ने पिछले साल यानी अक्टूबर 2022 में सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में नामांकन में अनुसूचित जाति का कोटा 15 फीसदी से बढ़ाकर 17% कर दिया।

कर्नाटक में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव आयोग ने तारीखों का भी ऐलान कर दिया है। इसके साथ ही राज्य में जातीय गोलबंदी और धार्मिक ध्रुवीकरण का दौर तेज हो चला है। सत्तारूढ़ बीजेपी जहां कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश कर रही है, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है।
राजनीति के इसी दांव-पेंच में राज्य की बसवराज बोम्मई सरकार ने पिछले साल यानी अक्टूबर 2022 में सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में नामांकन में अनुसूचित जाति का कोटा 15 फीसदी से बढ़ाकर 17 फीसदी कर दिया।
SC आरक्षण का चार हिस्सों में बंटवारा:
इसके बाद इस साल 24 मार्च को राज्य सरकार ने इस आरक्षण को चार हिस्सों में बांट दिया। फैसले के तहत 6 फीसदी आरक्षण SC (लेफ्ट) के लिए, 5.5 फीसदी SC (राइट), 4.5 फीसदी SC टचेबल्स के लिए और बाकी बचा एक फीसदी अन्य अनुसूचित जाति के लोगों के लिए रखा गया है। आंतरिक आरक्षण की मांग लंबे समय से की जा रही थी। इस विभाजन का सबसे ज्यादा लाभ मडिगा,समुदाय को हो सकता है, जिसकी आबादी राज्य की 17 फीसदी अनुसूचित जाति की आबादी का 6 प्रतिशत हैं।
एक रणनीति के तहत मडिगा समुदाय को बढ़ावा:
राज्य में अनुसूचित जाति के अंतर्गत करीब 101 उप जातियां आती हैं। अनुसूचित जातियों पर कांग्रेस पार्टी की लंबे समय से पकड़ रही है। कांग्रेस की इसी पारंपरिक पकड़ को तोड़ने की रणनीति के तहत बीजेपी ने मडिगा समुदाय को एक रणनीति के तहत समर्थन और बढ़ावा दिया है।
बीजेपी ने कर्नाटक चुनावों को ध्यान में रखते हुए ही मडिगा समुदाय से नारायणस्वामी को केंद्र सरकार में राज्यमंत्री बनाया था। इनके अलावा गोविंद मकथप्पा करजोल को राज्य सरकार में जल संसाधन विभाग में राज्यमनंत्री बनवाया। ये दोनों मडिगा समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं।
दूसरी उप जातियों पर भी डोरे:
बीजेपी ने राज्य में अनुसूचित जाति की अन्य उप-जातियों, जैसे एससी (राइट) की होलेयस, एससी (टचेबल) की लम्बानी और भोवी को भी अपने साथ खींचने की कोशिश की है, जो पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के साथ हुआ करते थे। बीजेपी मडिगा समेत इन उप-जातियों के लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस ने उसके हिस्से के लाभ से उन्हें वंचित रखा हा जबकि, बीजेपी उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए वचनबद्ध है।
30 मार्च को कर्नाटक के लोकल अखबारों में बीजेपी ने मडिगा समुदाय के दोनों मंत्रियों की तस्वीर के साथ एक बड़ा विज्ञापन भी छपवाया था, जिसमें समुदाय की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राज्य के मुख्यमंत्री को धन्यवाद दिया गया था।
फिर भी बीजेपी को क्यों सता रहा डर?
कांग्रेस भी लंबे समय से राज्य के दलितों के बीच अपना आधार मजबूत करती रही है। इसी कड़ी में कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राज्य के नेताओं के एच मुनियप्पा और जी परमेश्वर जैसे प्रमुख एससी (राइट) नेताओं को ऊंचे पदों पर बैठाया है। कांग्रेस ने तो एक कदम आगे चलते हुए इसी समुदाय के मल्लिकार्जुन शड़गे को अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया है। बीजेपी को इसी बात की चिंता है कि कहीं कांग्रेस का दांव बीजेपी पर भारी न पड़ जाए और दलित वोटों का रुझान खड़गे की तरफ न हो जाय। इसके लिए बीजेपी और आक्रामक हो गई है।
इंटरनल कोटा का विरोध कौन कर रहा?
बोम्मई सरकार के इस फैसले का एक समुदाय विरोध भी कर रहा है। यह लंबानी और बंजारा समुदाय है। सरकार ने बंजारा, लंबानी, गोवी, कोरमा और कोर्चा उप जातियों को एससी टचेबल्स के अंतर्गत रखा है, जिसके लिए 4.5 फीसदी कोटा तय किया गया है। बंजारा समुदाय अनुसूचित जाति को मिल रहे आरक्षण का सबसे बड़ा लाभार्थी समुदाय रहा है। पहले उन्हें 10 फीसदी तक लाभ मिलता रहा है लेकिन नई व्यवस्था में यानी इंटरनल कोटा सिस्टम में उन्हें सिर्फ 4.5 फीसदी ही आरक्षण मिल सकेगा। इसलिए ये समुदाय बीजेपी के खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहा है।