भारत में कैसे बदले महिलाओं के प्रजनन अधिकार
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 30% पुरुष और 26% महिलाएं बच्चा पैदा करने के दबाव का सामना कर चुकी हैं। तीन पीढ़ियों की महिलाओं की कहानियों से पता चलता है कि कैसे प्रजनन अधिकारों...

संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट ने दावा किया है कि भारत में 30 प्रतिशत पुरुषों और 26 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वो जब बच्चा पैदा नहीं करना चाहते थे तब उन्हें बच्चा पैदा करने के दबाव का सामना करना पड़ा.बिहार की रहने वाली सरस्वती देवी की 1976 में 16 साल की उम्र में ही शादी हो गई थी.30 साल की उम्र तक वो पांच बच्चों की मां बन चुकी थीं.उनका कहना है कि उस समय उनके गांव में सभी महिलाएं करीब इतने ही बच्चों की मां बन चुकी थीं.64 साल की सरस्वती कहती हैं कि उस समय अगर कोई महिला इससे कम बच्चों को जन्म देती थी तो लोगों को लगता था कि वो महिला बीमार है.उनकी बहु अनीता देवी की शादी 1990 के दशक में 18 साल की उम्र में हुई.जमाना बदल चुका था.अनीता को परिवार नियोजन के बारे में पता था लेकिन अंत में वह भी छह बच्चों की मां बन गईं.अनीता कहती हैं कि उनके पति और सास और बच्चे चाहते थे, खास कर एक बेटा और इसमें उनकी बात नहीं सुनी गई.पीढ़ियों में बदला प्रजनन का अधिकारअनीता देवी की बेटी पूजा कुमारी ने विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन कर लेने के बाद 22 साल की उम्र में शादी की. 23 साल की उम्र में उनके पहले बच्चे का जन्म हुआ.अगले तीन साल तक उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं से मिले गर्भ-निरोधक उपायों का इस्तेमाल किया.उन्होंने हाल ही में दूसरी बार मां बनने का फैसला किया और अपने पति के साथ मिल कर तय किया कि सिर्फ दो ही बच्चे पैदा करेंगी.एक ही परिवार की तीन पीढ़ी की महिलाओं यह कहानी दिखाती है कि बच्चे पैदा करने के फैसले लेने में महिलाओं की सुनी जाए इसे लेकर समाज में किस तरह के बदलाव आए हैं.सरस्वती देवी के जमाने में परिवार नियोजन की बात ही कम होती थी और गर्भ-निरोध के बारे में तो लोगों को जानकारी ही नहीं थी.सरस्वती देवी ने बताया कि दोस्तों, पड़ोसियों और खास कर उनकी सास का दबाव इतना था कि ना चाहते हुए भी वो ज्यादा बच्चे पैदा करने से मना नहीं कर पाईं.अनीता देवी ने बताया कि उनके समय में भी घर में परिवार नियोजन के बारे में बात करना आसान नहीं था और उनके पति तो गर्भ-निरोध के खिलाफ थे.शायद असली बदलाव पूजा देवी के समय आया जब रात्रि चौपालों के जरिए उन्हें प्रजनन स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकारों के बारे में पता चला.इन चौपालों में रात को गांव के लोग एक साथ बैठ कर इस विषय पर फिल्मों और चर्चाओं के जरिए जानकारी हासिल करते. इन बैठकों से उन्हें आत्मविश्वास मिला और वो गर्भ कब और कितनी बार धारण करेंगी, इस तरह की बातों पर उन्होंने अपने पति के साथ चर्चा की.मनचाहा परिवार नहीं बना पाएसंयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि बच्चा पैदा करना है या नहीं, कब पैदा करना है और किसके साथ पैदा करना है जैसे सबसे महत्वपूर्ण प्रजनन संबंधी फैसले लेने के लोगों के अधिकारों का दुनिया के कई देशों में हनन हो रहा है.इसमें कम बच्चे पैदा करना और ज्यादा बच्चे पैदा करना, दोनों कामनाएं शामिल हैं.यूएनएफपीए ने ब्रिटेन की मार्केट रिसर्च कंपनी "यूगव" के साथ मिलकर 14 देशों में एक सर्वेक्षण करवाया जिसमें लोगों से पूछा गया कि क्या वो वैसा परिवार बना पा रहे हैं, जैसा बनाना चाहते हैं.रिपोर्ट के मुताबिक जितने वयस्कों ने ना में जवाब दिया उनकी संख्या चिंताजनक है.प्रजनन की उम्र तक पहुंच चुके करीब 20 प्रतिशत वयस्कों को ऐसा लगता है कि वो उतने बच्चे नहीं पैदा कर सकेंगे जितने वो चाहते हैं.पूछे गए सवालों में से एक सवाल था कि किन कारणों से आप उतने बच्चे पैदा नहीं कर सके जितने आप चाहते थे.भारत में सबसे ज्यादा (38 प्रतिशत) लोगों ने इसके लिए आर्थिक रुकावटों को जिम्मेदार ठहराया.लेकिन वहीं जब लोगों से पूछा गया कि उनकी राय में एक परिवार में बच्चों की आदर्श संख्या क्या होनी चाहिए तो भारत समेत लगभग सभी देशों में सबसे ज्यादा लोगों ने कहा दो बच्चे. हालांकि इसमें पुरुषों और महिलाओं की प्रतिक्रिया में फर्क है.भारत में, जहां 41 प्रतिशत महिलाओं ने दो बच्चों को आदर्श संख्या बताया, वहीं सिर्फ 33 प्रतिशत पुरुषों ने इस संख्या को आदर्श माना.प्रजनन में इच्छाओं का दमनभारत में 30 प्रतिशत पुरुषों और 26 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वो जब बच्चा पैदा नहीं करना चाहते थे तब उन्हें बच्चा पैदा करने के दबाव का सामना करना पड़ा.34 प्रतिशत पुरुषों और 27 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उनके साथ ऐसा हुआ कि वो गर्भ-निरोध के अपने मनचाहे तरीके का इस्तेमाल नहीं कर पाए.31 प्रतिशत पुरुषों और 25 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उन्हें प्रजनन या गर्भ निरोध से संबंधित स्वास्थ्य सेवाएं या मदद नहीं मिली.रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर तीसरा वयस्क अनअपेक्षित गर्भ का शिकार हुआ है.39 प्रतिशत को लगता है कि पैसों की तंगी ने उन्हें अपने परिवार का मनचाहा आकार रखने से या तो रोका या रोकेगी.हर पांचवें वयस्क को लगता है कि जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण का खराब होना, युद्ध, महामारी आदि जैसी भविष्य की चिंताओं की वजह से वो या तो उतने बच्चे पैदा नहीं कर सके या कर पाएंगे जितने वो चाहते थे.हर चौथे व्यक्ति को लगता है कि वो उस समय बच्चा पैदा नहीं कर पाए जब वो चाहते थे.