कर्नाटक में मुसलमानों को ठेकेदारी में मिल पाएगा आरक्षण का लाभ? क्या-क्या अड़चनें
- Karnataka Muslim Reservation: कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने मार्च 2023 में OBC के 3A और 3B श्रेणियों को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा।

Karnataka Muslim Reservation: कर्नाटक सरकार द्वारा मुस्लिम ठेकेदारों के लिए सरकारी ठेकों में 4% आरक्षण का प्रस्ताव राजनीतिक और कानूनी संघर्ष का कारण बन गया है। कांग्रेस इसे सकारात्मक बता रही है, वहीं बीजेपी इसे तुष्टिकरण की राजनीति करार दे रही है। कांग्रेस का कहना है कि मुस्लिम ठेकेदारों को 4% आरक्षण देना एक तरह से समाज के इस हिस्से को मुख्य धारा में लाने की कोशिश है। पार्टी के नेता इसे समाज के पिछड़े वर्ग के उत्थान के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि यह कदम सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है ताकि मुस्लिम समुदाय को सरकारी ठेकों में समान अवसर मिल सकें।
वहीं बीजेपी इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध कर रही है। पार्टी का आरोप है कि कांग्रेस सरकार मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण देकर हिंदू वोटों को खोने से बचने के लिए 'समझौता नीति' अपना रही है। बीजेपी का कहना है कि यह निर्णय संविधान की भावना के खिलाफ है और इसे सिर्फ एक राजनीतिक दांव के तौर पर देखा जा रहा है ताकि कांग्रेस चुनावी लाभ उठा सके।
क्या हैं इसके कानूनी पहलू?
इस प्रस्ताव को लेकर कानूनी विवाद भी शुरू हो गया है। कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि आरक्षण का यह कदम राज्य सरकार के अधिकारों से बाहर जा सकता है, क्योंकि यह मसला केवल समाज के पिछड़े वर्ग से संबंधित है। इसमें धार्मिक आधार पर आरक्षण देना संवैधानिक विवाद उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा इस प्रस्ताव से संबंधित कई पहलुओं को लेकर चुनौती दी जा सकती है, जिसमें यह सवाल भी उठाया जा सकता है कि क्या इस तरह के आरक्षण का कोई कानूनी आधार है।
कांग्रेस को इससे क्या फायदा?
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक में मुस्लिमों की जनसंख्या 12.9% है। राज्य में OBC के लिए 32% आरक्षण है, जिसमें से 4% का आरक्षण मुस्लिमों के लिए निर्धारित किया गया है। यह विवाद कर्नाटक में आगामी चुनावों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कांग्रेस का यह कदम मुस्लिम समुदाय को लुभाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जबकि बीजेपी इसे एक चुनावी हथकंडा मान रही है। दोनों पार्टियां इस मुद्दे पर जोरदार तरीके से अपनी-अपनी स्थिति को लेकर बयानबाजी कर रही हैं, और यह देखा जाएगा कि यह प्रस्ताव राज्य की राजनीति पर किस तरह प्रभाव डालता है।
मुस्लिमों को OBC श्रेणी में लाने के लिए आयोग
1975 में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एल.जी. हवणुर ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें मुस्लिमों को आरक्षण के पात्र माना गया था। इसके बाद मुस्लिमों को अन्य पिछड़े वर्गों के साथ वर्गीकृत किया गया और उन्हें आरक्षण प्रदान किया गया। 1977 में एक निर्देश जारी किया गया, जिसमें मुस्लिमों को पिछड़ी जातियों में शामिल किया गया। इसके बाद आयोगों जैसे कि वेंकट स्वामी और न्यायमूर्ति ओ. चिनप्पा रेड्डी ने भी मुस्लिमों को पिछड़ी जातियों में शामिल करने की पुष्टि की। वर्तमान में 36 मुस्लिम समुदायों को केंद्रीय OBC सूची में शामिल किया गया है, जिनमें 1 और 2A श्रेणियां शामिल हैं।
वीरप्पा मोइली और एचडी देवगौड़ा का योगदान
रेड्डी आयोग ने मुस्लिमों को OBC सूची में श्रेणी 2 में रखने का प्रस्ताव दिया था। अप्रैल 1994 में मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली ने इस सिफारिश को मंजूरी दी और मुस्लिमों, बौद्धों और ईसाई धर्मांतरितों के लिए 6% आरक्षण घोषित किया। इसके तहत मुस्लिमों के लिए 4% आरक्षण निर्धारित किया गया था। इस फैसले के खिलाफ कानूनी चुनौतियां आईं। सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में एक अंतरिम आदेश दिया, जिसमें कुल आरक्षण को 50% तक सीमित कर दिया गया था। इसके बाद, एच.डी. देवगौड़ा ने मुख्यमंत्री के रूप में इस फैसले को लागू किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उसमें कुछ समायोजन किए गए।
बीजेपी का आरक्षण हटाने का असफल प्रयास
कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने मार्च 2023 में OBC के 3A और 3B श्रेणियों को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा। इसके बदले उन्होंने 2C और 2D नामक नई श्रेणियां बनाई, जिसमें प्रत्येक के लिए 2% आरक्षण था, और मुस्लिमों को 10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के तहत शामिल करने का सुझाव दिया। हालांकि, इस प्रस्ताव का विरोध हुआ और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसके बाद इसे स्थगित कर दिया गया। 13 अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को "प्रारंभिक रूप से अस्थिर बताते हुए इस फैसले को निलंबित कर दिया और मौजूदा आरक्षण व्यवस्था को बनाए रखा।