अजमेर शरीफ दरगाह के खातों का नहीं होगा CAG ऑडिट,दिल्ली HC ने क्यों लगा दी रोक?
CAG के लिए पेश हुए वकील ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता का ऑडिट उसके बाद भी अभी तक शुरू नहीं हुआ है। 21 मई को उपलब्ध कराए गए आदेश में कहा गया है कि अंतरिम उपाय के तौर पर,यह निर्देश दिया जाता है कि अगली सुनवाई की तारीख तक,CAG की ओर से 30 जनवरी, 2025 के संचार के बाद कोई और कदम नहीं उठाया जाएगा।

दिल्ली हाई कोर्ट ने अजमेर शरीफ दरगाह के खातों के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के प्रस्तावित ऑडिट पर रोक लगा दी है। जस्टिस सचिन दत्ता ने राजस्थान में अंजुमन मोइनिया फखरिया चिश्तिया खुद्दाम ख्वाजा साहिब सैयदजादगन दरगाह शरीफ और एक अन्य पंजीकृत सोसायटी की याचिकाओं पर अंतरिम रोक लगाई है। कोर्ट ने अपने 14 मई के आदेश में याचिकाकर्ताओं के इस तर्क में विश्वसनीयता पाई कि CAG अधिनियम की धारा 20 के तहत आवश्यकताओं को इस मामले में लागू या पूरा नहीं किया गया था। यह प्रावधान कुछ प्राधिकरणों या निकायों के खातों के ऑडिट से संबंधित है।
CAG के लिए पेश हुए वकील ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता का ऑडिट उसके बाद भी अभी तक शुरू नहीं हुआ है। 21 मई को उपलब्ध कराए गए आदेश में कहा गया है कि अंतरिम उपाय के तौर पर यह निर्देश दिया जाता है कि अगली सुनवाई की तारीख तक,CAG की ओर से 30 जनवरी, 2025 के संचार के बाद कोई और कदम नहीं उठाया जाएगा। न्यायालय ने इसके बाद मामले को 28 जुलाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
कैग ने दरगाह के खातों के ऑडिट की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि उसने कानून की प्रक्रिया का विधिवत पालन किया है। कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था जिनमें बिना किसी सूचना या जानकारी के याचिकाकर्ताओं के कार्यालय परिसर में CAG अधिकारियों द्वारा गैरकानूनी तलाशी या दौरे का आरोप लगाया गया था,जो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 और सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के प्रावधानों के विपरीत था।
कैग ने अपने जवाब में कहा कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने 14 मार्च,2024 को ही याचिकाकर्ता को सूचित कर दिया था कि दरगाह मामलों के प्रबंधन में सुधार के लिए केंद्रीय प्राधिकरण ने ऑडिट का प्रस्ताव किया है और ऐसे ऑडिट के खिलाफ प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान किया है।
इसमें कहा गया कि यह रिकॉर्ड का विषय है कि याचिकाकर्ता की ओर से विधिवत अभ्यावेदन दिया गया था जिसमें उन्होंने CAG द्वारा प्रस्तावित ऑडिट पर अपनी आपत्तियां प्रस्तुत की थीं और वही आधार जो इस याचिका में परिकल्पित किए जा रहे हैं,उसमें उल्लिखित थे। प्रतिवादी यानी केंद्रने 17 अक्टूबर, 2024 के पत्र के माध्यम से याचिकाकर्ता की आपत्तियों का निपटारा किया और इस प्रकार अधिनियम के जनादेश का विधिवत पालन किया गया है।
CAG ने कहा कि भारत के राष्ट्रपति का प्राधिकरण प्राप्त हो चुका है और वित्त मंत्रालय द्वारा इस वर्ष 30 जनवरी के पत्र के माध्यम से CAG को सूचित किया गया था. हालांकि,याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ऐसे ऑडिट के लिए अनिवार्य वैधानिक प्रक्रिया,जैसा कि CAG अधिनियम में निर्धारित है,यह निर्धारित करती है कि संबंधित मंत्रालय को CAG को एक संचार भेजना चाहिए।
इसमें कहा गया है कि संचार में याचिकाकर्ता समाज का CAG द्वारा ऑडिट करने की मांग होनी चाहिए,जिन नियमों और शर्तों के आधार पर ऑडिट किया जाना चाहिए, वे CAG और संबंधित मंत्रालय के बीच सहमत होने चाहिए और बाद में नियमों और शर्तों को याचिकाकर्ता को प्रदान किया जाना चाहिए। इसके बाद उसे संबंधित मंत्रालय को एक अभ्यावेदन देने का अधिकार है। इसमें यह भी आवश्यक है कि ऑडिट की शर्तों पर सहमति बनने से पहले राष्ट्रपति या राज्यपाल की सहमति हो।