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कैश कांड में फंसे जस्टिस वर्मा से वापस लिए गए न्यायिक कार्य, दिल्ली HC ने जारी किया सर्कुलर

दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने सोमवार को जस्टिस यशवंत वर्मा को तत्काल प्रभाव से न्यायिक कर्तव्यों से हटा दिया। इसकी जानकारी दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को जारी सर्कुलर के जरिए दी।

Sneha Baluni लाइव हिन्दुस्तानMon, 24 March 2025 11:57 AM
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कैश कांड में फंसे जस्टिस वर्मा से वापस लिए गए न्यायिक कार्य, दिल्ली HC ने जारी किया सर्कुलर

दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने सोमवार को जस्टिस यशवंत वर्मा को तत्काल प्रभाव से न्यायिक कर्तव्यों से हटा दिया। इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा के आवास पर बड़ी मात्रा में कैश मिलने की कथित घटना के आरोपों के बाद की जांच के लिए शनिवार को तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सोमवार को जारी एक सर्कुलर में कहा गया, "हाल की घटनाओं के मद्देनजर, माननीय श्री यशवंत वर्मा से न्यायिक कार्य अगले आदेश तक 'तत्काल प्रभाव' से वापस ले लिया गया है।"

यह फैसला शनिवार को सीजेआई खन्ना द्वारा न्यायमूर्ति वर्मा को फिलहाल कोई न्यायिक कार्य न सौंपे जाने की सिफारिश के बाद लिया गया है। इन-हाउस कमेटी में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस अनु शिवरामन शामिल हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय द्वारा न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच की सिफारिश के बाद सीजेआई खन्ना ने यह फैसला लिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा देर से जारी की गई रिपोर्ट में जस्टिस उपाध्याय ने कहा, "मेरी पहली नजर में राय है कि पूरे मामले की गहन जांच की जरूरत है।"

जस्टिस वर्मा तब सुर्खियों में आए जब 14 मार्च को रात करीब 11:35 बजे तुगलक रोड पर जज के आधिकारिक आवास में आग लग गई। दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस) ने तुरंत कार्रवाई की और कुछ ही मिनटों में आग बुझा दी गई। हालांकि, माना जाता है कि सबसे पहले बचाव दल- जिसमें डीएफएस और संभवतः पुलिस के कर्मचारी शामिल थे- उन्हें स्टोररूम में ढेर सारे पैसे मिले, जिनमें से कुछ कथित तौर पर जले हुए थे। उस समय जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी भोपाल में थे।

20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने की सिफारिश की, जो उनका पैरेंट हाईकोर्ट है। हालांकि, विचार-विमर्श के दौरान कम से कम दो सदस्यों ने तर्क दिया कि केवल ट्रांसफर ही पर्याप्त नहीं है और तत्काल आंतरिक जांच की मांग की।