संघ को समझना आसान नहीं; पॉडकास्ट में पाकिस्तान, चीन और ट्रंप पर क्या बोले PM मोदी
पीएम मोदी ने कहा, 'मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं, जिसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे सम्मानित संगठन से जीवन का सार और मूल्यों को सीखा। संघ से जुड़ने के बाद ही मुझे जीवन का उद्देश्य मिला।'

अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रीडमैन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ से संबंध, गुजरात दंगों का सच, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और एआई जैसे तमाम समसामयिक विषयों पर विस्तृत चर्चा की। रविवार को प्रसारित तीन घंटे के पॉडकास्ट में प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के साथ बढ़ती दूरियों को लेकर वहां के नेतृत्व को आईना तो दिखाया ही, उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ रिश्ते को परस्पर विश्वास का बताया। चीन के साथ तनाव के बाद रिश्तों में सुधार को लेकर पीएम ने कहा कि बातचीत ही वो जरिया है जो रिश्तों की डोर को मजबूत बनाने का माध्यम है। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश...
सवाल: आपने जीवन भर देश भारत को ऊपर रखने की बात कही है। आप आठ साल की उम्र में आरएसएस में शामिल हुए। क्या आप आरएसएस के बारे में बता सकते हैं और उसका आपके ऊपर क्या प्रभाव पड़ा। जो विचारक आज भी हैं, उनका आपके विकास पर क्या असर पड़ा।
जवाब: मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं, जिसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे सम्मानित संगठन से जीवन का सार और मूल्यों को सीखा। संघ से जुड़ने के बाद ही मुझे जीवन का उद्देश्य मिला। बचपन में मुझे आरएसएस की शाखाओं में शामिल होना अच्छा लगता था। मेरे मन में हमेशा एक ही लक्ष्य था, देश के काम आना। यही मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सिखाया है। आरएसएस की स्थापना के इस वर्ष 100 साल पूरे हो रहे हैं। दुनिया में आरएसएस से बड़ा कोई स्वयंसेवी संगठन नहीं है। आरएसएस को समझना कोई आसान काम नहीं है, पहले इसके कामकाज को समझना होगा। यह संगठन अपने स्वयंसेवकों को जीवन का उद्देश्य देता है। यह सिखाता है कि राष्ट्र ही सब कुछ है और समाज सेवा ही ईश्वर की सेवा है। हमारे वैदिक संतों और स्वामी विवेकानंद ने जो कुछ भी सिखाया है, संघ भी यही सिखाता है।
सवाल: आपसे एक रोमांचक सवाल पूछते हैं। भारत या पाकिस्तान में किसकी क्रिकेट टीम बेहतर है। दोनों के बीच दुश्मनी के चर्चे सभी ने सुने हैं और जियो पालिटिक्ल तनाव भी है। खेल, खासतौर से क्रिकेट और फुटबॉल देशों के बीच बेहतर संबंध बनाने और आपसी सहयोग बढ़ाने में कैसी भूमिका निभाते हैं।
जवाब: मैं क्रिकेट का विशेषज्ञ नहीं हूं। मैं इस खेल के तकनीकी पक्षों के बारे में भी नहीं जानता, लेकिन नतीजों से पता चलता है कि भारत और पाकिस्तान में कौन सी टीम बेहतर है। कुछ दिन पहले चैंपियंस ट्रॉफी में भारत और पाकिस्तान के बीच मैच खेला गया था। भारतीय क्रिकेट टीम ने अपने अजेय अभियान में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। मुझे लगता है कि खेलों में पूरी दुनिया को ऊर्जावान बनाने की ताकत है। खेल की भावना विभिन्न देशों के लोगों को एक साथ जोड़ती है, इसलिए मैं कभी नहीं चाहूंगा कि खेलों को श्रेय ना दिया जाए। मैं वास्तव में मानता हूं कि खेल मानव विकास में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, वे सिर्फ खेल नहीं हैं। वे लोगों को गहरे स्तर पर जोड़ते हैं। भारत में फुटबॉल की लोकप्रियता के संदर्भ में मैं मध्य प्रदेश के शहडोल की अपनी यात्रा को याद करता हूं, जहां मैंने निवासियों के बीच खेल के प्रति गहरा प्रेम देखा जो अपने क्षेत्र को 'मिनी ब्राजील' कहते थे। इस गांव में चार पीढ़ियों से फुटबॉल खेला जा रहा है। यहां से लगभग 80 राष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल खिलाड़ी निकले हैं और पूरा गांव फुटबॉल के लिए समर्पित है। मेरे पसंदीदा फुटबॉल खिलाड़ी डिएगो माराडोना हैं। 1980 के दशक में में उन्हें एक वास्तविक नायक के रूप में देखा जाता था। अगर आप आज की पीढ़ी से पूछेंगे, तो पसंदीदा खिलाड़ी लियोनल मेस्सी हैं।
सवाल: आप और शी जिनपिंग एक-दूसरे को दोस्त मानते हैं। हाल के तनावों को कम करने और चीन के साथ संवाद फिर से शुरू करने में उस दोस्ती को फिर से कैसे शुरू किया जा सकता है।
जवाब: मैं मानता हूं कि भारत और चीन के बीच मतभेद स्वाभाविक हैं लेकिन मजबूत सहयोग दोनों पड़ोसियों के हित में है और यह वैश्विक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है। भारत और चीन सीमा पर 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर झड़पों से पहले वाली स्थितियों को बहाल करने के लिए काम कर रहे हैं। वर्ष 1975 के बाद पहली बार दोनों देशों के बीच टकराव ने संघर्ष का रूप ले लिया था। इस संघर्ष में दोनों पक्षों के जवानों की मौत हुई थी। पिछले साल अक्तूबर में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बैठक के बाद हमने सीमा पर सामान्य स्थिति की वापसी देखी है। हम अब 2020 से पहले की स्थितियों को बहाल करने के लिए काम कर रहे हैं। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन निश्चित रूप से विश्वास, उत्साह और ऊर्जा वापस आनी चाहिए। इसमें कुछ समय लगेगा, क्योंकि पांच साल हो गए हैं।
मेरी सोच है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है, हम चाहते हैं कि भारत और चीन स्वस्थ और स्वाभाविक तरीके से प्रतिस्पर्धा करें। प्रतिस्पर्धा बुरी चीज नहीं है, लेकिन इसे कभी संघर्ष में नहीं बदलना चाहिए। भारत और चीन के बीच संबंध नए नहीं हैं क्योंकि दोनों देशों की संस्कृति और सभ्यताएं प्राचीन हैं। हम आधुनिक दुनिया में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यदि आप ऐतिहासिक रिकॉर्ड को देखें तो सदियों से भारत और चीन ने एक-दूसरे से सीखा है और हमेशा वैश्विक भलाई में योगदान दिया है। पुराने रिकॉर्ड बताते हैं कि एक समय भारत और चीन अकेले दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा रखते थे। अगर हम सदियों पीछे मुड़कर देखें तो भारत और चीन के बीच संघर्ष का कोई वास्तविक इतिहास नहीं है। एक समय चीन में बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव था और उस दर्शन का उद्भव भारत में हुआ। मेरी इच्छा है कि भविष्य में भी हमारे संबंध उतने ही मजबूत रहने चाहिए और आगे बढ़ते रहने चाहिए। जब दो पड़ोसी देश होते हैं, तो कभी-कभी असहमति होती है। इसलिए हम सक्रिय रूप से बातचीत की दिशा में काम कर रहे हैं। विवाद के बजाय, हम बातचीत पर जोर देते हैं, क्योंकि केवल बातचीत के माध्यम से हम एक स्थायी सहकारी संबंध का निर्माण कर सकते हैं जो दोनों देशों के सर्वोत्तम हितों को पूरा करता है।
सवाल: भारत और पाकिस्तान का टकराव जटिल रहा है। दोनों ही परमाणु शक्ति हैं और विचारधारा काफी अलग हैं। आप शांति चाहते हैं और दूर की सोचने वाले नेता हैं। आप भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती और शांति का क्या रास्ता देखते हैं।
जवाब: पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने का मेरा पहला प्रयास सद्भावना का संकेत था, जब मैंने नवाज शरीफ को शपथ ग्रहण समारोह के लिए निमंत्रण भेजा था। यह कूटनीतिक कदम था, जो दशकों में नहीं देखा गया। जिन्होंने कभी विदेश नीति के प्रति मेरे दृष्टिकोण पर सवाल उठाया था, वे उस समय अचंभित रह गए, जब उन्हें पता चला कि मैंने दक्षेस देशों के सभी राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरण में उस ऐतिहासिक भाव को खूबसूरती से उकेरा है। इस पहल ने दुनिया को शांति और सद्भाव के लिए भारत की प्रतिबद्धता के बारे में स्पष्ट संदेश भेजा, लेकिन हमें वांछित परिणाम नहीं मिले। मेरा मानना है कि पाकिस्तान के लोग भी शांति चाहते हैं क्योंकि वे भी संघर्ष, अशांति और निरंतर आतंक में रहते हुए थक गए होंगे। वहां मासूम बच्चे भी मारे जाते हैं और अनगिनत जिंदगियां बर्बाद हो जाती हैं।
सवाल: ट्रंप ने कहा कि आप उनसे ज्यादा बेहतर मोलभाव करते हैं। यह बात उन्होंने आपकी यात्रा के दौरान कही। एक वार्ताकार के तौर पर आप उनके बारे में क्या सोचते हैं और इसका क्या मतलब था कि आप बेहतर मोलभाव करते हैं।
जवाब: मैं और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बेहतर तरीके से एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं, क्योंकि हम दोनों ही हर चीज से ऊपर अपने राष्ट्रीय हितों को रखने में विश्वास करते हैं। ट्रंप एक साहसी व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपने फैसले खुद किए। वे अमेरिका के प्रति अटूट रूप से समर्पित हैं। हाल में ही संपन्न अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रंप की टीम से मुझे मिलने का अवसर मिला। मेरा मानना है कि ट्रंप ने मजबूत और सक्षम टीम बनाई है और वे अपने दृष्टिकोण को लागू करने में पूरी तरह सक्षम हैं। ट्रंप के पहले कार्यकाल में मैं सितंबर 2019 में ह्यूस्टन में आयोजित 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम को याद करता हूं कि किस तरह ट्रंप ने दर्शकों के बीच बैठकर मेरा भाषण सुना था। यह उनकी विनम्रता है। जब मैं मंच से बोल रहा था तब अमेरिका के राष्ट्रपति श्रोताओं के बीच बैठे थे। यह उनका शानदार भाव था। मैंने उस वक्त दृढ़ ट्रंप को भी देखा जब अमेरिकी चुनाव अभियान के दौरान उन पर गोली चलाई गई थी। गोली छूकर निकल जाने के बाद भी वह अमेरिका के लिए अटूट रूप से समर्पित रहे। इस घटना ने उनकी अमेरिका फर्स्ट भावना को दिखाया, जैसे मैं राष्ट्र प्रथम में विश्वास करता हूं। मेरे लिए भारत सबसे पहले है। यही वजह है कि हम एक-दूसरे से इतने अच्छे से जुड़े। ये ऐसी चीजें हैं जो वास्तव में प्रतिध्वनित होती हैं।
सवाल: आपने भारत के इतिहास में कई कठिन हालात देखे हैं। 2002 में गुजरात दंगा भारत के लिए सबसे कठिन समय था। उस समय के हालात से आपने क्या सीखा। सुप्रीम कोर्ट ने दो बार फैसला दिया। उस वक्त आपने सबसे बड़ी चीज क्या सीखी।
जवाब: गुजरात में 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों को लेकर झूठी कहानी गढ़ने की कोशिश हुई थी। केंद्र में सत्ता में बैठे उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी चाहते थे कि मुझे सजा मिले, लेकिन अदालत ने निर्दोष करार दिया। अगर 2002 से पहले के आंकड़ों की समीक्षा करेंगे तो देखेंगे कि गुजरात में लगातार दंगे हुए। कहीं-न-कहीं कर्फ्यू लगता रहा था। पतंगबाजी प्रतियोगिता या यहां तक कि साइकिल की टक्कर जैसे मामूली मुद्दों पर सांप्रदायिक हिंसा भड़क जाती थी। 1969 में गुजरात में दंगे छह महीने से अधिक समय तक चले थे। गोधरा ट्रेन अग्निकांड की घटना गुजरात विधानसभा के लिए उनके विधायक चुने जाने के महज तीन दिन बाद हुई। उन्होंने कहा, यह अकल्पनीय त्रासदी थी, लोगों को जिंदा जला दिया गया। गोधरा की बड़ी घटना ही हिंसा का कारण बनी। अब पिछले 22 वर्षों में गुजरात में एक भी बड़ा दंगा नहीं हुआ है। गुजरात पूरी तरह से शांतिपूर्ण है।
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