Uttar Pradesh Minister s Nephew at Center of Controversy Over License Issuance राजदरबार::राजदरबार:: भांजे की खातिर, Delhi Hindi News - Hindustan
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राजदरबार::राजदरबार:: भांजे की खातिर

उत्तर प्रदेश के एक मंत्री अपने भांजे को लाइसेंस बनाने का कार्य सौंपने के कारण चर्चा में हैं। मंत्री ने नियमों का उल्लंघन करते हुए यह कार्य अपने भांजे को दिया, जिसके चलते लोग 40 किलोमीटर दूर प्रमाण...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 14 June 2025 06:37 PM
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राजदरबार::राजदरबार:: भांजे की खातिर

भांजे की खातिर उत्तर प्रदेश के एक मंत्री इन दिनों अपने भांजे को लेकर खासे चर्चा में हैं। ये मंत्री एक महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, जो काफी संघर्ष के बाद उन्हें मिला है। लेकिन विभाग मिलते ही मंत्री जी ने किसी की भी परवाह नहीं की और नियमों को ताक पर रखकर अपने विभाग में लाइसेंस बनाने का कार्य अपने भांजे को सौंप दिया। जबकि यह कार्य जिला स्तर के अधिकारियों का है। इतना ही नहीं, लोगों को जिले से बाहर 40 किलोमीटर दूर भांजे के पास प्रमाण पत्र लेने के लिए जाना पड़ता है, जिसके बाद लाइसेंस मिलता है।

जिले के अधिकारी मुंह ताकते रह गए और भांजे का धंधा चल निकला है। प्रमाण पत्र जारी करने के लिए भांजे महोदय खासी वसूली करते हैं जिसकी गूंज ऊपर तक होने लगी है। ऐसे में अब नजरें इस बात पर लगी हैं कि मंत्री जी के भांजे का यह गोरखधंधा कब तक चलता है। छुट्टी मंत्री जी की होती है या भांजे की, इसकी भी खूब चर्चाएं हैं। अधूरे ख्वाब उत्तराखंड के एक बड़े राजनीतिक दल का मुखिया बनने का ख्वाब संजोए कई नेताओं की हसरत अभी अधूरी है। यह कब पूरी होगी, इसके भी फिलहाल आसार नहीं दिखाई दे रहे। जबकि दावेदार यह मानकर चल रहे थे कि उनके अच्छे दिन आने वाले हैं। पार्टी मुखिया का ऐलान बीते वर्ष दिसंबर माह में हो जाना चाहिए था। पार्टी के कई नेता इस आस में थे कि यह कुर्सी उनके हाथ लगेगी। लेकिन जब भी नए नेतृत्व की सुगबुगाहट शुरू होती है, तभी देश में कोई न कोई बड़ी घटना हो जाती है। नियुक्ति का मामला फिर टल जाता है। इसके चलते इन दिनों संगठन में पहले वाली रौनक भी नहीं दिखाई दे रही है। पार्टी में फिलहाल नए मुखिया का पता नहीं और पुराने वाले दिन काटने के अंदाज में सुस्त नजर आ रहे हैं। कैसे समझाए कांग्रेस इन दिनों बहुत परेशान है। पार्टी समझ नहीं पा रही है कि आखिर वह अपने नेताओं को किस तरह और किस अंदाज में समझाए। पहले तो कई नेता पार्टी की इजाजत लिए बगैर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल होकर विदेश चले गए। वहां से लौटने के बाद वे जिस तरह सरकार की तारीफ कर रहे हैं, उससे पार्टी परेशान है। इसके उलट कांग्रेस सरकार पर विदेश नीति की विफलता का आरोप लगा रही है, पर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ कई देशों के दौरे से वापस लौटे एक नेता सरकार की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान उस नेता ने कहा कि सरकार ने 11 वर्षों में क्या कमाया है, उन्हें विदेश जाकर पता चला। अब पार्टी उन्हें समझाए तो भी आखिर किस तरह समझाए। तकनीक का सहारा भाजपा ऐसा राजनीतिक दल है, जिसके संगठनात्मक कार्यक्रम लगातार चलते हैं। पार्टी के देशभर में राज्यों के इतने कार्यक्रम होते हैं कि आम कार्यकर्ता की अपनी निजी जिंदगी भी इससे काफी प्रभावित होती है। खासकर नाते-रिश्तेदारी और व्यापार, खेती-किसानी पर सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। भाजपा नेतृत्व भी अब इस स्थिति को गंभीरता से ले रहा है और पार्टी के कार्यक्रमों की संख्या कम करने जा रहा है, ताकि कार्यकर्ताओं पर संगठन के काम का बोझ कम हो। पार्टी के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी ने कहा है कि अब डिजिटल युग है, इसमें फिजिकल उपस्थिति और कामकाज के बजाय तकनीक से ज्यादा काम किया जाएगा। दरअसल, आम लोग भी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं और वह भी संपर्क के इसी मोड को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। देखना होगा कि पार्टी इसे कितना लागू कर पाती है, क्योंकि चर्चा यही है कि कार्यक्रम शायद ही कम हों, केवल मोड बदल सकता है। वह भी हुआ तो काफी राहत होगी। जुबानी जंग बिहार के दोनों गठबंधनों में विधानसभा चुनाव से पहले सीटों को लेकर जुबानी जंग शुरू हो गई है। एक ही जाति समूह के वोट बैंक पर दावा करने वाले एनडीए के दो दल जुबानी जंग की रेस में सबसे आगे हैं। सबसे पहले एक पार्टी के वरिष्ठ नेता ने दूसरी पार्टी के युवा नेता की लोकप्रियता पर सवाल उठा दिया। कहा, युवा नेता के नारे लगाने वाले समर्थक उनके साथ ही गाड़ियों में चलते हैं। गरजने वाले बरसते नहीं। दूसरी पार्टी को बुरा लगा तो उन्होंने ‘जाकी रही भावना जैसी कह कर करारा जवाब दे दिया। अब गठबंधन के दूसरे दल इस लड़ाई का विश्लेषण करने में जुटे हैं। नेताओं का कहना है कि यह पूरी कवायद गठबंधन में मनचाही सीट हासिल करने की है। यही हाल विपक्षी खेमे में समान जमीन की दो पार्टियों में भी देखी जा रही। हमारा क्या होगा? एनसीपी के दोनों धड़ों का विलय होगा या नहीं अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन संभावित चहलकदमी का असर पार्टी के नेताओं पर दिखने लगा है। कुछ आगे की अपनी संभावनाओं को लेकर आशान्वित हैं तो आशंकाएं भी कम नहीं हैं। एक नेता ने कहा कि लॉयल्टी चेक का पैमाना राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण होता है। दोनों धड़े अगर मिलें तो संभावना यही है कि दादा अजीत पवार मजबूत होंगे। ऐसे में जो लोग सुप्रिया सुले के नजदीकी हैं और शरद पवार के साथ रहे उनका क्या होगा। क्या उन्हें उचित सम्मान मिलेगा। नेता चाहते हैं कि जब कभी विलय की बात फाइनल हो तो उनकी भी जरूर सुनी जाए और कुछ भी पूर्वाग्रह से फैसले न हों। लेकिन राजनीति भला इतने सेट फॉर्मूले पर कहां चलती है। इसीलिए कहा जा रहा है, आगे-आगे देखिए होता है क्या?

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