प्राचीनकाल में ब्रह्म स्थान को खुला और निर्माण-मुक्त रखा जाता था, ताकि सूर्य की किरणें और हवा का प्रवाह बना रहे। आज के आधुनिक दौर में, विशेष रूप से शहरों में, यह संभव नहीं हो पाता, लेकिन वास्तु के कुछ आसान उपायों से ब्रह्म स्थान की शक्ति को जागृत किया जा सकता है।
ब्रह्म स्थान घर का मध्य भाग होता है, जिसे वास्तु में सूर्य स्थान भी कहते हैं। यह आकाश तत्व का प्रतीक है और पूरे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। प्राचीन घरों में इसे खुला आंगन के रूप में रखा जाता था। वास्तु के अनुसार, ब्रह्म स्थान में कोई पिलर या भारी निर्माण नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह रुकता है, जिससे स्वास्थ्य और समृद्धि पर असर पड़ता है।
ब्रह्म स्थान आकाश तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। यह पंच तत्वों के संतुलन का केंद्र है, जो घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है। इसे सूर्य की ऊर्जा से जोड़ा जाता है।
घर के नक्शे को 9 आयताकार भागों में बांटें। बीच का आयत ही ब्रह्म स्थान है। यह 81 वास्तु पदों में मध्य के 9 स्थानों को दर्शाता है। आधुनिक फ्लैटों में ब्रह्म स्थान को खुला रखना मुश्किल है। ऐसे में पिरामिड वास्तु का उपयोग करें, जो पंच तत्वों को संतुलित करता है।
ब्रह्म स्थान पर खुला जाल या आंगन होना चाहिए, ताकि सूर्य प्रकाश और हवा का प्रवाह बना रहे। यह स्वास्थ्य और सकारात्मकता बढ़ाता है। ब्रह्म स्थान को हमेशा साफ और अव्यवस्थित रखें। अगर आंगन संभव ना हो, तो ईशान, पूर्व या उत्तर दिशा को खुला रखें।