ट्रेडिंग इकॉनोमिक्स वेबसाइट के मुताबिक, दिसंबर 2024 की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि सऊदी अरब, मिस्र, कतर, इराक, कुवैत और तुर्किये ऐसे देश हैं जहां सोने का भंडार काफी है।
तुर्किये इस लिस्ट में सबसे ऊपर है। तुर्किये ने बीते कुछ सालों में अपनी सोने की खरीदारी में जबरदस्त इजाफा किया है। इसका मकसद अपने विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करना और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता से खुद को बचाना है। तुर्किये का केंद्रीय बैंक लगातार सोने का भंडार बढ़ा रहा है ताकि डॉलर पर निर्भरता कम की जा सके और मुद्रास्फीति के असर से बचा जा सके।
सऊदी अरब भले ही दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक हो, लेकिन वह अपनी अर्थव्यवस्था को विविधतापूर्ण बनाने के लिए सोने पर भी खास ध्यान दे रहा है। 323 टन सोने के भंडार के साथ यह क्षेत्र में दूसरे स्थान पर है। तेल की कीमतों में गिरावट के खतरे को देखते हुए, सऊदी अरब अपनी वित्तीय सुरक्षा के लिए सोने को एक मजबूत विकल्प मान रहा है।
इराक वर्षों से राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है, लेकिन इसके बावजूद देश ने अपने सोने के भंडार को स्थिर बनाए रखा है। 153 टन सोने के साथ यह मध्य पूर्व का तीसरा सबसे बड़ा गोल्ड रिजर्व वाला देश है। इराक के लिए सोना उसकी अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम सहारा बना हुआ है, जो वैश्विक बाजार की अस्थिरता के बीच वित्तीय संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
प्राचीनकाल में मिस्र सोने की खान के रूप में जाना जाता था और आज भी यह देश सोने के महत्व को समझता है। 127 टन के रिजर्व के साथ मिस्र अपने मुद्रा भंडार को मजबूत करने और विदेशी निवेशकों का भरोसा बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। मिस्र की सरकार अपने सोने के भंडार को धीरे-धीरे बढ़ाने पर ध्यान दे रही है ताकि भविष्य में किसी भी आर्थिक संकट से निपटा जा सके।
कतर अपने छोटे आकार के बावजूद एक समृद्ध देश है और 111 टन सोने का भंडार रखता है। इसकी अर्थव्यवस्था तेल और प्राकृतिक गैस पर आधारित है लेकिन कतर सरकार अब अपनी संपत्ति को विविधता देने के लिए सोने को भी एक अहम रणनीतिक संपत्ति के रूप में देख रही है। वैश्विक बाजार की अस्थिरता से बचने के लिए कतर धीरे-धीरे अपने सोने के भंडार को बढ़ा रहा है।
कुवैत के पास 78.97 टन सोने का भंडार है, जो इसे क्षेत्र में छठा स्थान दिलाता है। कुवैत अपने फाइनेंशियल रिजर्व को मजबूत करने और मुद्रा के मूल्य को बनाए रखने के लिए सोने को एक अहम हथियार मानता है। वैश्विक वित्तीय संकट के समय कुवैत की इस रणनीति से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है।