दलित समाज को लंदन घुमाएगी राजस्थान सरकार, बाबा साहेब के घर तक पहुंचेगा काफिला; क्या है योजना
राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक देखने को मिला है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने दलित समाज के लिए ऐसी योजना का ऐलान कर दिया है, जिसने एक झटके में सियासी तापमान बढ़ा दिया है।

राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा मास्टरस्ट्रोक देखने को मिला है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने दलित समाज के लिए ऐसी योजना का ऐलान कर दिया है, जिसने एक झटके में सियासी तापमान बढ़ा दिया है। अब दलित समाज के लोग सरकारी खर्चे पर न सिर्फ भारत में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर से जुड़े स्थलों की यात्रा कर सकेंगे, बल्कि लंदन भी जा सकेंगे- जहां बाबा साहेब ने वकालत की पढ़ाई करते हुए ऐतिहासिक संघर्षों की नींव रखी थी।
इस योजना का नाम है डॉ. भीमराव अंबेडकर पंचतीर्थ योजना, जिसे हाल ही में सीएम ने लॉन्च किया है। इसके तहत चुने गए 1000 लोगों को सरकार की तरफ से विशेष यात्रा कराई जाएगी, वो भी रहने, खाने और यात्रा के पूरे खर्च के साथ। पहले जत्थे को बस से रवाना किया जा चुका है और अब ट्रेन से सफर कराने पर भी मंथन चल रहा है। लेकिन असली सरप्राइज तो है लंदन की विदेश यात्रा!
जी हां! लंदन-बिलकुल मुफ्त में।
पांचवां तीर्थ बनाया गया है वह ऐतिहासिक घर जो लंदन में स्थित है, जहां बाबा साहेब रहते थे और वहीं से उन्होंने लॉ की पढ़ाई की थी। भारत सरकार इस घर को खरीदकर पहले ही एक स्मारक में तब्दील कर चुकी है। अब राजस्थान सरकार चाहती है कि दलित समाज के लोग खुद वहां जाकर उस इतिहास को महसूस करें, जिसने उन्हें सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़नी सिखाई।
लंदन यात्रा के लिए अलग से कोई आवेदन नहीं होगा। जिन लोगों को पंचतीर्थ यात्रा के लिए चुना जाएगा, उन्हीं में से कुछ भाग्यशाली लोग नियमों और दस्तावेजों (जैसे पासपोर्ट, वीजा आदि) के आधार पर विदेश यात्रा पर भेजे जाएंगे। लंदन में क्या सिर्फ बाबा साहेब का घर दिखाया जाएगा या बाकी जगहें भी, इस पर फैसला जल्द ही उच्च स्तरीय बैठक में लिया जाएगा।
योजना को लेकर सामाजिक न्याय मंत्री अविनाश गहलोत का कहना है कि योजना में आवेदन की प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन होगी और सामाजिक न्याय विभाग की वेबसाइट से की जा सकेगी। दलित समाज के किसी भी व्यक्ति के पास अगर राज्य का निवास प्रमाण और स्वास्थ्य संबंधी प्रमाण हैं, तो वो आवेदन कर सकता है।
इस योजना को लेकर दलित समाज में जबरदस्त उत्साह है। इसे सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में एक मजबूत कदम माना जा रहा है। लेकिन साथ ही राजनीति भी गरमाई हुई है, क्योंकि विपक्ष इसे “वोट बैंक साधने की चाल” बता रहा है। फिलहाल, सच यही है कि दलित समाज को अब सरकारी खर्चे पर इतिहास को करीब से देखने और महसूस करने का मौका मिलने जा रहा है।