वो परिवार जो कल तक बुन रहे थे सपने, आज सिर्फ आंकड़ों में दर्ज
अहमदाबाद से उड़ान भरते ही प्लेन AI-171 जब दुर्घटनाग्रस्त हुआ, तो महज एक हादसा नहीं हुआ… एक झटके में छह परिवारों की हंसी-खुशी, उनके सपने, उनकी पहचान—सब राख में बदल गए। जो लोग कल तक ज़िंदगी के नए सफर की तैयारी कर रहे थे,

अहमदाबाद से उड़ान भरते ही प्लेन AI-171 जब दुर्घटनाग्रस्त हुआ, तो महज एक हादसा नहीं हुआ… एक झटके में छह परिवारों की हंसी-खुशी, उनके सपने, उनकी पहचान—सब राख में बदल गए। जो लोग कल तक ज़िंदगी के नए सफर की तैयारी कर रहे थे, वो आज सरकारी आंकड़ों में दर्ज ‘दुर्घटना के मृतक’ बन चुके हैं।
राजस्थान के बांसवाड़ा, उदयपुर, बालोतरा और बीकानेर जिलों से ताल्लुक रखने वाले 11 लोग इस विमान हादसे में जान गंवा बैठे। इनमें डॉक्टर पति-पत्नी से लेकर उनके मासूम बच्चे, एक नवविवाहित जोड़ा और बुजुर्ग दंपत्ति तक शामिल हैं। कुछ घूमने निकले थे, कुछ इलाज के लिए विदेश जा रहे थे, तो कोई अपने बच्चों से मिलने… लेकिन कोई वापस नहीं लौटेगा।
बांसवाड़ा का 'सपनों का परिवार' अब नहीं रहा
डॉ. कोनी व्यास और उनके पति डॉ. प्रदीप व्यास, जो बांसवाड़ा में सेवा दे रहे थे, अपने तीन बच्चों के साथ प्लेन में सवार थे। बच्चों की उम्र 6 से 14 साल के बीच थी। पूरा परिवार लंदन रवाना हो रहा था, जहां उन्हें एक कॉन्फ्रेंस में भाग लेना था और साथ ही बच्चों की छुट्टियों को एंजॉय करना था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक झटके में पूरा परिवार खत्म हो गया। वो हंसी, वो खिलखिलाते चेहरे… अब सिर्फ तस्वीरों में हैं।
उदयपुर के डॉ. प्रतीक जोशी का परिवार भी नहीं बचा
पेसिफिक हॉस्पिटल के मशहूर चिकित्सक डॉ. प्रतीक जोशी भी अपने माता-पिता, पत्नी और बेटे के साथ फ्लाइट में थे। जोशी परिवार हमेशा समाज सेवा के लिए जाना जाता रहा है। उनके साथ उनका बेटा आरव भी था, जो केवल 10 साल का था और इंग्लैंड में पढ़ाई शुरू करने वाला था। ये यात्रा एक नई शुरुआत होने वाली थी, जो अब एक अंत बन गई।
'अब तो लौट आओ' कहती रह गई दीवारें
जिन घरों की दीवारों पर बच्चों की ऊंचाई मापी जा रही थी, जहां फ्रिज पर टूरिस्ट मैगनेट चिपकाए जा रहे थे, जहां सूटकेस में नए कपड़े और अरमान रखे जा रहे थे—वो घर अब शोक में डूबे हैं। पड़ोसियों की आंखें नम हैं, और रिश्तेदारों को यकीन नहीं हो रहा कि उनके अपने अब कभी दरवाज़े पर दस्तक नहीं देंगे।
दुर्घटना के बाद की चुप्पी और लापरवाही के सवाल
सरकार की ओर से हादसे की जांच के आदेश दे दिए गए हैं, मुआवजे की घोषणाएं भी हो चुकी हैं। लेकिन जिनके अपने जा चुके हैं, उनके लिए मुआवजा सिर्फ एक औपचारिकता है। सवाल ये भी है कि क्या इस हादसे को टाला जा सकता था? टेकऑफ के कुछ ही मिनटों बाद तकनीकी खराबी से गिरे इस विमान को उड़ान से पहले ठीक से जांचा क्यों नहीं गया?
सपने मरे हैं… सिर्फ लोग नहीं
यह हादसा एक बार फिर हमें याद दिलाता है कि हवाई यात्रा जितनी सहज लगती है, उतनी ही संवेदनशील भी है। इस बार सिर्फ लोग नहीं मरे… वो सपने भी मरे हैं जो उनके साथ जुड़े थे। किसी की बेटी की शादी, किसी का एमबीए, किसी की पहली विदेश यात्रा… सब अधूरे रह गए।
आज इन परिवारों की पहचान उनके नाम से नहीं, उनकी मौत के क्रमांक से की जा रही है। और ये सबसे बड़ा शोक है—जब जिंदा लोग भी आंकड़ों में तब्दील हो जाएं।
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