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हजार करोड़ खर्च करके फिर भी नहीं हुए स्मार्ट

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी परियोजना को अलीगढ़ में लागू हुए सात साल बीत चुके हैं, लेकिन शहरवासी अब भी बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं। वर्ष 2017-18 में सिविल लाइन क्षेत्र को फोकस करते हुए स्मार्ट सिटी योजना स्वीकृत हुई थी।

Sunil Kumar हिन्दुस्तानFri, 23 May 2025 06:00 PM
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हजार करोड़ खर्च करके फिर भी नहीं हुए स्मार्ट

इसके अंतर्गत 42 कार्यों की रूपरेखा बनी और 2018 में निर्माण शुरू हुआ, लेकिन अधिकांश प्रोजेक्ट आज तक अधूरे पड़े हैं। नतीजतन, आमजन के मन में यह सवाल घर कर गया है क्या अलीगढ़ कभी स्मार्ट बन पाएगा।

बोले अलीगढ़ अभियान के तहत गुरुवार को हिन्दुस्तान की टीम ने बारहद्वारी क्षेत्र में लोगों से बातचीत की। स्थानीय निवासी और व्यापारी सरकार की कार्यप्रणाली से खासे नाराज नजर आए। लोगों ने बताया कि पुराने शहर के व्यस्त बाजारों में दिनभर जाम की स्थिति रहती है। रामघाट रोड से लक्ष्मीबाई मार्ग तक की सड़कें टूट चुकी हैं। क्वार्सी, एटा चुंगी, सूतमिल, और नादा पुल चौराहों पर दिन-रात ट्रैफिक जाम आम है। डिवाइडर टूटे हुए हैं और चौराहों की स्थिति अस्त-व्यस्त है। लोगों का कहना है कि एक हजार करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद न तो बुनियादी ढांचा सुधरा और न ही शहर की तस्वीर बदली।

लोगों ने बताया कि बात केवल सड़कों तक सीमित नहीं है। थोड़ी सी बारिश होते ही जलभराव की समस्या खड़ी हो जाती है। जल निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है। वेडिंग जोन जो कि ठेला और खोमचा चालकों के लिए तय किए गए थे, वो आज भी खाली पड़े हैं जबकि बाजारों में अतिक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है। आम नागरिकों का कहना है कि जो व्यवस्था शहर को सुव्यवस्थित करने के लिए लाई गई थी, वह अब अव्यवस्था का कारण बनती जा रही है। कहा कि उन्होंने सोचा था कि स्मार्ट सिटी का मतलब होगा बेहतर सड़कें, ट्रैफिक नियंत्रण और साफ-सफाई। लेकिन सात साल बाद भी हालात पहले से बदतर हैं। हर गली में उखड़ी सड़कें हैं। चौराहों पर रोज जाम लगता है और कहीं भी ठेला खोमचे वालों को शिफ्ट नहीं किया गया। अगर यही स्मार्ट सिटी है, तो हम तो ऐसे शहर में रहने को मजबूरी कहेंगे, सुविधा नहीं। व्यापारी वर्ग का कहना था कि बड़ी-बड़ी बातें होती रहीं स्मार्ट सिटी के नाम पर, लेकिन ग्राउंड पर कुछ नहीं बदला। लाखों-करोड़ों खर्च हो गए, फिर भी आज भी एक बारिश में सड़कों पर नाव चलाने की नौबत आ जाती है। प्रशासन ने केवल बोर्ड लगाए, विकास जमीन पर नहीं दिखा। सात साल बाद भी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को लेकर जनता में संतोष नहीं है। अधूरे प्रोजेक्ट, बेहाल सड़कें, ट्रैफिक जाम, जलभराव और अतिक्रमण यह सब शहर के स्मार्ट होने पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं। अब अलीगढ़ की जनता को उम्मीद है कि सिर्फ घोषणाएं नहीं। जमीनी बदलाव भी नजर आएंगे।

सात साल बीत गए, सड़कें आज भी धूल फांक रही हैं

लोगों ने बताया कि जब स्मार्ट सिटी परियोजना की शुरुआत हुई थी, तो लगा था कि अब अलीगढ़ की तस्वीर बदल जाएगी। लेकिन आज हालत पहले से बदतर हैं। रामघाट रोड से लक्ष्मीबाई मार्ग तक गड्ढों और धूल का अंबार है। बारिश में कीचड़ और गर्मी में धूल उड़ती है। व्यापारी परेशान हैं, ग्राहक लौट जाते हैं। सरकार ने एक हजार करोड़ खर्च कर दिए, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि एक भी सड़क ढंग से पूरी नहीं हो पाई। स्मार्ट सिटी के नाम पर सिर्फ बोर्ड लगे हैं, असल में शहर आज भी उसी पुराने ढर्रे पर चल रहा है।

न प्लानिंग दिखी, न प्रगति

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जो 42 कार्य तय किए गए थे, उनमें से कई या तो अधूरे हैं या फिर कहीं नजर ही नहीं आ रहे। एटा चुंगी से लेकर नादा पुल तक हर चौराहे पर जाम लगा रहता है। वेडिंग जोन बन तो गए लेकिन उनका उपयोग नहीं हो रहा। अतिक्रमण हटाया गया लेकिन व्यवस्थित पुनर्वास नहीं हुआ। नालियों की सफाई नहीं होती, जलभराव आम समस्या बन चुका है। साफ है कि योजनाएं सिर्फ कागज़ों तक सीमित रहीं। जनता की जरूरतों को ध्यान में रखकर कोई ठोस प्लानिंग नहीं की गई।

अधूरे कामों की मार झेलता बाज़ार

व्यापारियों का कहना है कि स्मार्ट सिटी योजना के नाम पर बारहद्वारी और उसके आसपास की गलियों में खुदाई तो हुई। लेकिन काम पूरा नहीं हुआ। सीवर के पाइप बिछा दिए गए पर ऊपर की सड़क नहीं बनी। गंदगी और धूल की वजह से दुकानों तक ग्राहक ही नहीं आ पाते। व्यापार लगभग ठप है। नगर निगम से शिकायत करो तो कहते हैं स्मार्ट सिटी लिमिटेड का मामला है। दोनों एजेंसियां एक-दूसरे पर दोष डालती रहती हैं। लेकिन भुगतना आम आदमी और दुकानदार को पड़ रहा है।

बुजुर्गों के लिए नहीं है ये स्मार्ट सिटी

बुजुर्गों का कहना है कि पार्कों की हालत जर्जर है। कहीं बैठने की व्यवस्था नहीं, कई जगह तो पेड़ तक नहीं बचे। गांधी पार्क में स्ट्रीट लाइट्स नहीं जलतीं है। इसके अलावा घास और पेड़ पानी की आस में सूखे पड़े हैं। कहा कि टूटी सड़कों पर चलना खतरे से खाली नहीं। स्मार्ट सिटी का मतलब था कि बुजुर्गों, बच्चों और महिलाओं के लिए बेहतर सुविधाएं हों। लेकिन यहां तो लगता है जैसे हम किसी निर्माणधीन शहर में जी रहे हों। जहां योजना है, पर जमीन पर कुछ नहीं।

सिर्फ पोस्टर-बैनर बदले, शहर नहीं

व्यापारियों ने बताया कि हर चौराहे पर बड़े-बड़े पोस्टर लगे हैं कि अलीगढ़ अब स्मार्ट सिटी है। लेकिन अगर आप एक बार भी शहर में निकल जाएं, तो सच्चाई सामने आ जाती है। सूतमिल, क्वार्सी, नौरंगाबाद, सारसौल, ऊपरकोट हर जगह जाम है। सड़कें टूटी हैं और गंदगी फैली है। पानी की निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। हर बारिश के बाद नाले उफन जाते हैं। डिजिटल इंडिया की बात करते हैं, लेकिन ट्रैफिक सिग्नल तक काम नहीं करते। लगता है स्मार्ट सिटी सिर्फ प्रचार की एक गाड़ी है, जो अब पटरी से उतर चुकी है।

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